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पांच साल बाद राज्यसभा में फिर गूंजेगी जम्मू-कश्मीर की आवाज, तीन सांसद 1 दिसंबर को लेंगे शपथ

नए चुनाव और शपथ प्रक्रिया को जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक ढांचे में बड़े बदलावों के बाद संसद में उसके प्रतिनिधित्व की बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

पांच साल बाद राज्यसभा में फिर गूंजेगी जम्मू-कश्मीर की आवाज, तीन सांसद 1 दिसंबर को लेंगे शपथ
  • जम्मू-कश्मीर के लिए करीब पांच साल बाद राज्यसभा में प्रतिनिधित्व बहाल होने जा रहा है
  • नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन नव-निर्वाचित सांसद शम्मी ओबेराय, सज्जाद अहमद किचलू और चौधरी मोहम्मद रमजान शपथ लेंगे
  • जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल फरवरी 2021 में समाप्त हुआ था
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जम्मू-कश्मीर के लिए एक अहम राजनीतिक पड़ाव है. करीब पांच साल के अंतराल के बाद राज्यसभा में प्रदेश का प्रतिनिधित्व बहाल होने जा रहा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के नव-निर्वाचित तीन सांसद 1 दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन शपथ लेंगे.

तीन नेता लेंगे शपथ

जानकारी के अनुसार, शम्मी ओबेराय, सज्जाद अहमद किचलू और चौधरी मोहम्मद रमजान को उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा सभापति सी.पी. राधाकृष्णन शपथ दिलाएंगे. यह समारोह 2019 में राज्य के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के राज्यसभा प्रतिनिधित्व की औपचारिक वापसी को चिन्हित करेगा.

ये तीनों नेता पिछले महीने हुए पहले राज्यसभा चुनावों में चुने गए थे. चार सीटों पर हुए इस चुनाव में नेकां ने तीन सीटें जीतीं, जबकि भाजपा उम्मीदवार सत शर्मा एकमात्र सीट पर विजयी रहे और पहले ही शपथ ले चुके हैं.

चौधरी मोहम्मद रमजान कई बार विधायक और मंत्री रह चुके अनुभवी नेता हैं. सज्जाद अहमद किचलू किश्तवाड़ से पूर्व मंत्री रहे हैं, जबकि शम्मी ओबेराय पार्टी के कोषाध्यक्ष के रूप में नेकां को ऊपरी सदन में प्रतिनिधित्व देंगे.

जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यसभा सदस्यों—गुलाम नबी आजाद, नजीर अहमद लावे, फैयाज अहमद मीर और शमशेर सिंह मन्हास—का कार्यकाल 2 फरवरी 2021 को समाप्त हुआ था. विधानसभा भंग होने और नई विधानसभा न चुने जाने के कारण सीटें तब से रिक्त थीं, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 80 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार राज्यसभा चुनावों के लिए निर्वाचित विधानसभा का होना अनिवार्य है.

माना जा रहा अहम कदम

नए चुनाव और शपथ प्रक्रिया को जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक ढांचे में बड़े बदलावों के बाद संसद में उसके प्रतिनिधित्व की बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. नए सांसद अब अपनी जिम्मेदारियाँ सँभालेंगे और शीतकालीन सत्र में विधायी कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाएंगे.

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