विज्ञापन

युवाओं में बढ़ा हार्ट अटैक का खतरा, अस्पताल में लंबे इलाज के बाद भी मौत सबसे ज्यादा

शोध के अनुसार, 90 दिनों के अंदर मृत्यु दर युवाओं में 12.6%, मध्यम आयु वर्ग में 13.4% और बुजुर्गों में 19% रही है. इसका साफ मतलब है कि लंबे समय में बुजुर्गों पर बीमारी का प्रभाव कहीं ज्यादा गंभीर है.

युवाओं में बढ़ा हार्ट अटैक का खतरा, अस्पताल में लंबे इलाज के बाद भी मौत सबसे ज्यादा
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
  • भारतीय हार्ट फेल्योर रजिस्ट्री के शोध में बताया गया कि युवाओं में हार्ट अटैक से मृत्यु दर वयस्कों से अधिक है
  • शोध में पांच राज्यों के बड़े अस्पतालों के 6,018 मरीजों पर जून 2018 से मार्च 2022 तक अध्ययन किया गया
  • युवाओं में दिल की बीमारी का कारण मुख्य रूप से इस्केमिक हार्ट डिजीज पाया गया जो उम्र के साथ बढ़ता है
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

हॉस्पिटल में लंबे समय तक रुकने के बाद भी हार्ट अटैक (Heart Attack) से युवाओं की मौत सबसे ज्यादा हो रही है. यह जानकारी भारतीय हार्ट फेल्योर रजिस्ट्री पर आधारित एक शोध में सामने आई है. यह शोध इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (IJMR) में प्रकाशित हुआ है, जिसे नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने पहली बार राष्ट्रीय रजिस्ट्री के जरिए देश के पांच अलग-अलग राज्य कर्नाटक, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु के बड़े अस्पतालों में कराया है. 

युवाओं की मृत्यु दर अधिक

शोध के अनुसार, 90 दिनों के अंदर मृत्यु दर युवाओं में 12.6%, मध्यम आयु वर्ग में 13.4% और बुजुर्गों में 19% रही है. इसका साफ मतलब है कि लंबे समय में बुजुर्गों पर बीमारी का प्रभाव कहीं ज्यादा गंभीर है. यहां खास बात ये है कि स्वस्थ और कम सह बीमारियों के युवा लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती हैं. इसके बावजूद उनकी मृत्यु दर व्यस्क और बुजुर्गों की तुलना में अधिक है. शोधकर्ताओं की मानें तो अस्पताल पहुंचने में देरी और वक्त पर इलाज नहीं मिलना इसके पीछे की वजह हो सकती है.

आईसीएमआर ने यह शोध जून 2018 से मार्च 2022 तक पांच शहरों के अस्पतालों में किया. इसमें 6,018 मरीजों को शामिल किया जिनमें 10. 2% युवा 16 से 40 साल, 53.3% वयस्क 41 से 64 साल और 36.5% बुजुर्ग 65 साल से ऊपर शामिल थे. अध्ययन में पता चला कि 52.4% युवा, 75.1% वयस्क और 76.9% वृद्धों में हार्ट फेल्योर का सबसे बड़ा कारण इस्केमिक हार्ट डिजीज पाया गया. यह दिखाता है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, दिल की धमनियों में ब्लॉकेज और उससे जुड़ी समस्याएं हार्ट फेल्योर के पीछे प्रमुख कारक बन जाती हैं.

युवाओं में बढ़ रहा बीमारी का खतरा

शोध में पता चला कि युवा मरीज अक्सर गंभीर लक्षणों के साथ देर से इलाज कराने अस्पताल पहुँचते हैं. उनकी जीवनशैली (धूम्रपान, मोटापा, अस्वस्थ खान पान और चेकअप नहीं कराना) बीमारी को गंभीर स्थिति में पहुंचा देती है. यही वजह है कि उन्हें औसतन अस्पताल में ज्यादा दिन भर्ती रहना पड़ता है और कई लोगों को आईसीयू की जरूरत पड़ती है.

बुजुर्गो के लिए लंबी लड़ाई 

आईसीएमआर की शोध के मुताबिक, बुजुर्ग मरीजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की समस्या और अन्य बीमारियां उनकी इलाज को और कठिन बना देती है. यही वजह है कि उनकी मृत्यु दर 90 दिनों के भीतर सबसे अधिक (19%) रही.

ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली मरीजों के सामने चुनौती बड़ी 

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में बताया है कि दिल की बीमारी को लेकर भारत में अभी भी इलाज और असमान है. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीज अक्सर देर से अस्पताल पहुंचते हैं जिसकी वजह से उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में हार्ट फेल्योर की पहचान और इलाज की सुविधा न के बराबर है. दवाई भी हर वक्त उपलब्ध नहीं है. यही वजह है कि गांव से आने वाले मरीज को शहर के अस्पताल में भर्ती होने तक उसकी स्थिति बिगड़ जाती है

महिलाओं में तेजी से बढ़ रही बीमारी 

आमतौर पर दिल की बीमारी को शहर और पुरुषों की समस्या माना जाता था. लेकिन रजिस्ट्री में साफ तौर पर बताया गया है कि यह बीमारी महिलाओं में भी तेजी से बढ़ रही है. महिलाएं अक्सर अपने लक्षणों (थकान, सांस फूलना, सूजन ) को नजरअंदाज करती हैं और देर से अस्पताल जाती हैं. यही वजह है कि जब वह अस्पताल पहुंचती हैं तब उनकी बीमारी गंभीर रूप ले चुकी होती है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com