छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख आदिवासी चेहरे विष्णु देव साय राज्य के मुख्यमंत्री होंगे. उन्हें रविवार को यहां पार्टी के 54 नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक के दौरान विधायक दल का नेता चुना गया. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले महीने कुनकुरी निर्वाचन क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मतदाताओं से विष्णु देव साय को विधायक चुनने का आग्रह किया था और वादा किया था कि अगर पार्टी राज्य में सत्ता में आती है तो साय को 'बड़ा आदमी' बना दिया जाएगा.
हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 54 सीट जीती हैं. कांग्रेस ने 2018 के पिछले चुनाव में 68 सीट जीती थी , इस बार वह 35 सीट पर सिमट गई.
साल 2018 में भाजपा को आदिवासी बहुल सीट पर भारी झटका लगा था, लेकिन पार्टी ने इस बार अच्छा प्रदर्शन करते हुए अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 29 में 17 सीट जीत लीं.
भाजपा ने आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र में सभी 14 विधानसभा क्षेत्रों और एक अन्य आदिवासी क्षेत्र बस्तर में 12 में से आठ सीट पर जीत हासिल की है.
दो आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की व्यापक विजय ने विधानसभा चुनावों में उसकी शानदार जीत और पांच साल के अंतराल के बाद राज्य में सत्ता में वापसी में योगदान दिया.
विष्णु देव साय ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत एक गांव के सरपंच के रूप में की थी. उन्होंने पार्टी में महत्वपूर्ण संगठनात्मक पदों को प्राप्त करते हुए केंद्रीय मंत्री और लोकसभा सांसद भी बने.
राज्य की आबादी में आदिवासियों की संख्या लगभग 32 फीसदी है तथा सरगुजा क्षेत्र के जशपुर जिले से आने वाले विष्णु देव साय भाजपा की कार्ययोजना में बिल्कुल फिट बैठते हैं. आदिवासी राज्य में ओबीसी के बाद दूसरा सबसे प्रभावशाली सामाजिक समूह है.
अपने परिवार की समृद्ध राजनीतिक विरासत और केंद्रीय मंत्री रहते हुए महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के बावजूद, 59 वर्षीय आदिवासी नेता विष्णु देव साय अपनी विनम्रता, सरल स्वभाव, काम के प्रति समर्पण और लक्ष्यों को प्राप्त करने के दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते हैं.
विष्णु देव साय ने तीन बार भाजपा की छत्तीसगढ़ इकाई का नेतृत्व किया है, जो उनके संगठनात्मक कौशल में केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास को दर्शाता है.
एक गुमनाम गांव के सरपंच के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले विष्णु देव साय तेजी से आगे बढ़े और 2014 में केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली मंत्रिपरिषद के सदस्य बने.
विष्णु देव साय आदिवासी बहुल जशपुर जिले के एक छोटे से गांव बगिया के एक किसान परिवार से हैं तथा राजनीति उन्हें विरासत में मिली है.
विष्णु देव साय के दादा स्वर्गीय बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनीत विधायक थे. उनके 'बड़े पिता जी' (उनके पिता के बड़े भाई) स्वर्गीय नरहरि प्रसाद साय जनसंघ (भाजपा के पूर्ववर्ती) के सदस्य थे. वह (नरहरि प्रसाद साय) दो बार ( 1962-67 और 1972-77) विधायक रहे तथा सांसद (1977-79) के रूप में चुने गए। उन्होंने जनता पार्टी सरकार में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था.
विष्णु देव साय के पिता के एक अन्य बड़े भाई केदारनाथ साय भी जनसंघ के सदस्य थे और तपकारा से विधायक (1967-72) चुने गए थे.
विष्णु देव साय ने कुनकुरी के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और स्नातक की पढ़ाई के लिए अंबिकापुर चले गए. लेकिन उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और 1988 में अपने गांव लौट आए. 1989 में उन्हें बगिया ग्राम पंचायत के 'पंच' के रूप में चुना गया और अगले साल वह निर्विरोध सरपंच बन गए.
ऐसा कहा जाता है कि भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव ने उन्हें 1990 में चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया था. उसी वर्ष, विष्णु देव साय अविभाजित मध्य प्रदेश में तपकरा (जशपुर जिले में) से भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए थे. साल 1993 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने यह सीट बरकरार रखी.
साल 1998 में उन्होंने निकटवर्ती पत्थलगांव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे.
बाद में, वह लगातार चार बार - 1999, 2004, 2009 और 2014 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए.
सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा ने विष्णुदेव साय को 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में पत्थलगांव सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वह दोनों बार हार गए.
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद विष्णु देव साय को इस्पात और खनन राज्य मंत्री बनाया गया था.
वह छत्तीसगढ़ के उन 10 मौजूदा भाजपा सांसदों में से थे, जिन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए टिकट देने से इनकार कर दिया गया था.
इन आदिवासी राजनेता ने 2006 से 2010 तक और फिर जनवरी-अगस्त 2014 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.
2018 में राज्य में भाजपा की हार के बाद उन्हें 2020 में फिर से छत्तीसगढ़ में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई.
विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2022 में उनकी जगह ओबीसी नेता अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
इस साल नवंबर माह में चुनावों से पहले, साय को जुलाई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नामित किया गया था. चुनाव में उन्हें कुनकुरी (जशपुर जिला) से मैदान में उतारा गया, जहां उन्होंने कांग्रेस के मौजूदा विधायक यू डी मिंज को 25,541 वोटों के अंतर से हराकर जीत हासिल की.
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