
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत वसीयत को चुनौती देने के मामले संपत्ति विवादों का प्रमुख विषय होते हैं
- दिवंगत संजय कपूर की संपत्ति के मामले में उनकी एक्स वाइफ करिश्मा कपूर के बच्चों ने वसीयत को दी है चुनौती
- कोर्ट संदिग्ध परिस्थितियों जैसे जाली हस्ताक्षर या अनुचित प्रभाव के आधार पर वसीयत को अमान्य कर सकता है
दिल्ली हाईकोर्ट में करिश्मा कपूर के बच्चों के पिता की वसीयत को चुनौती देने के मामले में सुनवाई जोरों पर है. वहीं इस केस ने वसीयत को लेकर लोगों में दिलचस्पी पैदा की है. चल-अचल संपत्ति पर हक को लेकर अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं, ऐसे में वसीयत को लेकर क्या नियम कानून है, आइए जानते हैं. दरअसल भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत वसीयत (Will) को चुनौती देने के मामले अक्सर संपत्ति विवादों का केंद्र होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में कई उल्लेखनीय फैसले दिए हैं, जो वसीयत की वैधता, संदिग्ध परिस्थितियों , मानसिक क्षमता और प्रमाण के बोझ जैसे मुद्दों पर स्पष्टता प्रदान करते हैं. ये फैसले बताते हैं कि वसीयत को साबित करने का दायित्व वसीयत को प्रस्तुत करने वाले पर होता है और अगर कोई संदेह हो तो चुनौती देने वाले को मजबूत सबूत देने पड़ते हैं. कुछ सुप्रीम कोर्ट केस हैं, जो वसीयत चुनौती के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं, जो कानूनी सिद्धांतों को मजबूत करते हैं.
1. वेकेंटाचला अयंगर बनाम बी एन थिम्माजम्मा (1959)
इसमें मुख्य मुद्दा था वसीयत की प्रामाणिकता और संदिग्ध हालातों का परीक्षण. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वसीयत को साबित करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 68 के तहत कम से कम एक गवाह की गवाही जरूरी है. अगर वसीयत के चारों ओर संदिग्ध परिस्थितियां हों, जैसे अचानक बदलाव या अनुचित प्रभाव तो वसीयत प्रस्तुत करने वाले को इन संदेहों को दूर करने का बोझ उठाना पड़ता है. कोर्ट ने संतुष्टि का विवेक का सिद्धांत स्थापित किया, यानी कोर्ट को वसीयत पर विश्वास होना चाहिए. यह केस वसीयत चुनौती का आधारभूत फैसला है। अगर गवाहों की गवाही विरोधाभासी हो, तो वसीयत अमान्य हो सकती है. चुनौती देने वाले को संदिग्ध परिस्थितियों का प्रमाण देना चाहिए, लेकिन प्रस्तुत करने वाले को आखिरकार साबित करना पड़ता है
2. जसवंत कौर बनाम अमृत कौर (1977)
संदिग्ध परिस्थितियों में वसीयत की वैधता मुख्य मुद्दा था. कोर्ट ने कहा कि वसीयत में संदेह हो (जैसे टेस्टेटर की मानसिक स्थिति या अनुचित प्रभाव) तो प्रस्तुत करने वाले को कोर्ट के विवेक को संतुष्ट करना होगा. रजिस्टर्ड वसीयत भी संदिग्ध परिस्थितियों में चुनौती दी जा सकती है. इसने "Arm Chair Rule" को मजबूत किया, जहां कोर्ट टेस्टेटर की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इरादा समझता है. संदेह दूर न करने पर वसीयत अमान्य मानी जाती है, भले ही रजिस्टर्ड हो.
3. इंदू बाला बोस बनाम मनिंद्र चंद्र बोस (1982)
इसमें मुख्य मुद्दा था संदिग्ध परिस्थितियां और अनुचित प्रभाव. कोर्ट ने वसीयत को अमान्य ठहराया क्योंकि इसमें असामान्य वितरण था और गवाहों की गवाही अविश्वसनीय थी. इसमें कहा गया कि संदिग्ध परिस्थितियां जैसे गोपनीयता या अचानक लाभार्थी बदलना वसीयत को संदिग्ध बनाती है. यह केस अनुचित प्रभाव के आरोपों में प्रमाण की भूमिका पर जोर देता है.
4. कविता कंवर बनाम पामेला मेहता (2020)
इस चर्चित मामले में मुख्य मुद्दा था वसीयत की प्रोबेट (Probate) और संदिग्ध परिस्थितियों का परीक्षण. सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत फैसले में कहा कि वसीयत साबित करने के लिए धारा 63, उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सही निष्पादन (Execution) और गवाहों की उपस्थिति जरूरी है. अगर संदेह हो तो प्रस्तुत करने वाले को अतिरिक्त प्रमाण देना पड़ता है. कोर्ट ने 'संदिग्ध परिस्थितियों' को परिभाषित किया, जैसे जाली हस्ताक्षर या टेस्टेटर की कमजोर स्थिति. यह फैसला प्रोबेट प्रक्रिया को सरल बनाता है लेकिन संदेह पर सख्ती बरतता है.
5. मीना प्रधान बनाम कमला प्रधान (2021)
इस केस में मुख्य मुद्दा था वसीयत की सत्यापन (Attestation) और मानसिक क्षमता. कोर्ट ने वसीयत को अमान्य ठहराया क्योंकि गवाहों ने सही से सत्यापन नहीं किया और टेस्टेटर की मानसिक स्थिति संदिग्ध थी. अदालत ने इसमें धारा 63 और 68 का सख्त पालन जरूरी बताया. जाली या अस्वाभाविक वसीयतों पर कोर्ट की "न्यायिक विवेक" की भूमिका पर जोर दिया गया. अगर टेस्टेटर बीमार या प्रभावित था, तो चुनौती मजबूत आधार देती है.
6. जसबीर कौर बनाम अमृत कौर (2021)
इस मामले में मुख्य मुद्दा था रजिस्टर्ड वसीयत की चुनौती और संदिग्ध परिस्थितियां. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रजिस्ट्री वसीयत को प्रामाणिकता का अनुमान देती है, लेकिन संदिग्ध परिस्थितियों (जैसे अस्वाभाविक वितरण) में चुनौती दी जा सकती है. बोझ चुनौती देने वाले पर होता है. रजिस्टर्ड वसीयत को मजबूत लेकिन अजेय नहीं माना गया. कहा गया कि रजिस्ट्रेशन जालसाजी से बचाता है, लेकिन सबूतों से चुनौती संभव है.
7. मेकपल्ली लेसबम बाई बनाम मेतपल्ली मुथैय्या (2025)
इसमें मुख्य मुद्दा था रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता और बोझ का उल्टा होना. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रजिस्टर्ड वसीयत में सही निष्पादन और प्रामाणिकता का मजबूत अनुमान होता है. चुनौती देने वाले को संदिग्ध परिस्थितियां साबित करनी पड़ती हैं. इस केस में हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया गया क्योंकि चुनौती अपर्याप्त थी. ये हाल का फैसला है जो रजिस्टर्ड वसीयतों को मजबूत सुरक्षा देता है. अगर वसीयत रजिस्टर्ड है और हस्ताक्षर स्वीकार हैं, तो चुनौती कठिन है.
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