
ओला और उबर की मनमानी की कहानी लगभग हर शहर में कुछ एक जैसी है. ऐसे में हमने यूपी की राजधानी लखनऊ में भी पड़ताल की तो यहां कोई आम जनता नहीं, बल्कि हमारे रिपोर्टर ही इन कंपनियों के शिकार बन गए. पहले ओला और फिर उबर बुक करने की कोशिश की गई. ओला ने बुकिंग से पहले कैब टाइम सात मिनट दिखाया. बुकिंग कन्फर्म करने पर ये टाइम नौ मिनट हो गया. बुकिंग कन्फर्म हो गई और ड्राइवर समेत गाड़ी के सारे डिटेल्स और ओटीपी मोबाइल स्क्रीन पर आ गई. इसके पंद्रह मिनट तक इंतज़ार करने के बाद ओला ने सॉरी वाला मैसेज भेजकर बताया कि फ़िलहाल वो सर्विस नहीं दे पाएंगे.
उबर का भी यही हाल
फिर उबर में कैब बुक की. कैब अराइवल टाइम 6-10 मिनट दिखाया. हमने अपना डेस्टिनेशन अमीनाबाद डाला था. बुकिंग के कन्फर्म होने के दो मिनट बाद ही ड्राइवर ने उबर के ऑफिसियल नंबर से कॉल किया. नंबर दिल्ली का था. ड्राइवर ने कॉल करते ही पहले हमारी लोकेशन पूछी और उसके बाद बताने लगा कि अमीनाबाद बाज़ार का एक हिस्सा आज बंद होता है. हमने कहा हमें मार्केट से क्या करना है, आप हमें अमीनाबाद तक पहुंचा दीजिए. ड्राइवर से सीधा ये कहते हुए मना कर दिया कि राइड कैंसिल कर दीजिए. बेहद ख़राब व्यवहार करते हुए उसने फ़ोन काट दिया. फिर दस मिनट तक उबर ने राइड सर्च की, लेकिन कोई कैब ना दे सका.
इसी तरह एक मई को रिपोर्टर ने लखनऊ के गवारी चौक से ऑफिस तक के लिए कैब बुक की. पंद्रह मिनट के इंतज़ार के बाद राइड कैंसिल करनी पड़ी. कुछ ऐसा ही उबर ने किया था. लगभग आधे घंटे ख़राब करने के बाद रिपोर्टर ने एक बैटरी रिक्शा बुक की और ऑफिस तक पहुंचा.
ओला-उबर ड्राइवर्स क्या कह रहे
लखनऊ में ओला और उबर दोनों की सेवा एक ही गाड़ी से देने वाले बहादुर कहते हैं कि दस किलोमीटर के मात्र 100-110 रुपये मालिक और ड्राइवर को मिलते हैं. इतने कम में ख़र्च नहीं निकलता. इसलिए बुकिंग लेकर भी कैंसिल करना पड़ता है. उनका दावा है कि कंपनी उनकी शिकायतों को नहीं सुनती. जब कोई कस्टमर दूर का मिलेगा, वो तभी जाएंगे. बहादुर ने बताया कि सात लाख की गाड़ी ले ली और अब कमाई के नाम पर कुछ हासिल नहीं हो रहा है. इसलिए जबतक ईएमआई देनी है, तब तक गाड़ी चलायेंगे और उसके बाद किसी ट्रैवल एजेंसी से जुड़ने का प्लान है.
इसी तरह उबर ड्राइवर सुरेश 2017 से लखनऊ में कैब चला रहे हैं. दावा करते हैं कि सुबह से सिर्फ़ दो राइड मिली और पैसे आए 135 रुपये और लगभग इतने खर्च हो गए. उन्होंने दावा किया कि ढाई घंटे से खड़े हैं, लेकिन कोई ऐसा कस्टमर नहीं आया, जिससे कमाई हो सके. सुरेश दावा करते हैं कि यूनियन ने हड़ताल की, सरकार से शिकायत की और यहां तक की कंपनी में भी कई बार संपर्क किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
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