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This Article is From Feb 27, 2024

Explainer : गगनयान मिशन के लिए चुने गए 4 पायलटों में कोई महिला क्यों नहीं?

गगनयान मिशन भारत द्वारा शुरू किया गया अब तक का सबसे महंगा वैज्ञानिक मिशन है और इस पर लगभग 10,000 करोड़ रुपये की लागत आने वाली है.

नई दिल्ली:

भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन गगनयान के लिए वायु सेना के चार पायलटों के चयन और उन्हें बधाई देने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अंतरिक्ष अभियानों में महिला वैज्ञानिकों के अपार योगदान की तारीफ की. उन्होंने बताया कि कैसे न तो चंद्रयान और न ही गगनयान उनके बिना संभव होता.

हालांकि, जैसे ही ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर, अजीत कृष्णन, अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला के नामों की घोषणा की गई, कई लोगों को आश्चर्य हुआ कि अंतरिक्ष उड़ान के लिए किसी महिला पायलट को क्यों नहीं चुना गया. इससे पहले अंतरिक्ष में जाने वाले चार भारतीय मूल के व्यक्तियों में से दो महिलाएं थीं. दिवंगत कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स राष्ट्रीय प्रतीक हैं और उन्होंने पीढ़ियों को प्रेरित किया है. फिर भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए किसी महिला को क्यों नहीं चुना गया?

एनडीटीवी को पता चला कि इसका उत्तर अंतरिक्ष उड़ान के लिए नामांकित अंतरिक्ष यात्रियों को चुनने की विधि में है. दुनिया भर में, पहले मिशन के लिए नामित अंतरिक्ष यात्री परीक्षण पायलटों के एक समूह से चुने जाते हैं. चयन के समय भारत के पास कोई महिला टेस्ट पायलट नहीं थी. टेस्ट पायलट अत्यधिक कुशल एविएटर होते हैं, जिन्हें उनके विशेष कौशल के लिए चुना जाता है और आपातकाल के दौरान भी शांत रहने के लिए जाने जाते हैं, वे वायु योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ होते हैं.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने एनडीटीवी से कहा है कि उन्हें आने वाले समय में महिला अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष उड़ानों पर भेजने में खुशी होगी. सोमनाथ ने एनडीटीवी से कहा, "बहुत जल्द भारत को मिशन विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी और महिलाओं को अंतरिक्ष यात्रियों के रूप में उस भूमिका में अच्छी तरह से समायोजित किया जा सकता है, लेकिन चालक दल वाले गगनयान के पहले कुछ मिशन स्पष्ट रूप से उस चालक दल को ले जाएंगे, जिन्हें चुना और प्रशिक्षित किया गया है."

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक और भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक प्रमुख खिलाड़ी डॉ. उन्नीकृष्णन नायर कहते हैं, "भविष्य में महिलाओं को इसमें शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इसरो लिंग में कोई भेद नहीं करता है, केवल प्रतिभा ही मायने रखती है."

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हालांकि 2025 के लिए प्रस्तावित गगनयान मिशन से पहले अगर सभी परीक्षण सफल रहे तो एक भारतीय महिला के लिए भी अंतरिक्ष में उड़ान भरने का अवसर अभी भी हो सकता है. इसके अलावा, इस साल के अंत में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए नासा-इसरो का आगामी मानव अंतरिक्ष मिशन है और भारतीय वायुसेना की कुशल महिला लड़ाकू पायलटों में से एक को स्थान दिया जा सकता है. हो सकता है कि वे परीक्षण पायलट न हों, लेकिन फिर भी वे वायु योद्धा हैं, लेकिन इसरो चयनित चार पुरुष अंतरिक्ष यात्रियों में से एक को भेजने के लिए अधिक इच्छुक है, क्योंकि उन्हें प्रशिक्षित किया गया है.

गगनयान मिशन भारत द्वारा शुरू किया गया अब तक का सबसे महंगा वैज्ञानिक मिशन है और इस पर लगभग 10,000 करोड़ रुपये की लागत आने वाली है. इस मिशन से कई गेम-चेंजिंग तकनीकों को विकसित करने में मदद मिलने की उम्मीद है. सफल होने पर भारत स्वदेश निर्मित रॉकेट से किसी अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. ये बड़ी उपलब्धि अब तक केवल अमेरिका, चीन और सोवियत रूस ने ही हासिल की है. अपनी क्षमताओं के दम पर मानव अंतरिक्ष उड़ान में आखिरी बार प्रवेश चीन ने 2003 में किया था.

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में गहरी रुचि लेने के लिए जाने जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत वैश्विक क्रम में अपना विस्तार कर रहा है और इसे उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी देखा जा सकता है.

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तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मिशन के लिए चुने गए चार अंतरिक्ष यात्री सिर्फ चार नाम या चार लोग नहीं हैं. उन्होंने कहा, "वे चार शक्तियां हैं जो 140 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को अंतरिक्ष में ले जाएंगी. चालीस साल बाद, कोई भारतीय अंतरिक्ष में जा रहा है, लेकिन इस बार, समय, काउंटडाउन और रॉकेट हमारा है." इससे पहले, विंग कमांडर राकेश शर्मा (सेवानिवृत्त) 1984 में एक सोवियत मिशन के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष में गए थे.

प्रधानमंत्री ने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की सफलता न केवल युवा पीढ़ी में वैज्ञानिक स्वभाव के बीज बो रही है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति दिखाकर 21वीं सदी में एक गतिशील वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने में भी मदद कर रही है।.

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