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Emergency in India : 25 जून 1975 को आजाद भारत के इतिहास का सबसे काला दिन कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इसी दिन संविधान को ताक पर रखकर आपातकाल मतलब इमरजेंसी की घोषणा कर दी गई थी. यह फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लिया था और इसी के साथ आजाद भारत के लोग सरकार के गुलाम बनकर रह गए थे. आम लोगों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई थी और सरकार तय करने लगी थी कि वे कितने बच्चे पैदा करेंगे, क्या बोलेंगे, क्या देखेंगे...आम लोग तो छोड़ ही दें, 21 महीनों तक विपक्ष के सभी नेता या तो जेल में बंद कर दिए गए थे या फिर वे फरार थे. इंदिरा गांधी इमरजेंसी लगाकर बहुत ज्यादा ताकतवर हो चुकी थीं. संसद, अदालत, मीडिया किसी में उनके खिलाफ बोलने की ताकत नहीं रह गई थी. आज केंद्र सरकार ने इसी तारीख को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है.
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कैसे इंदिरा हुईं इतनी पावरफुल?
1967 से 1971 के बीच ही इंदिरा गांधी ने कांग्रेस और सरकार को अपने नियंत्रण में कर लिया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल की बजाय प्रधानमंत्री का कार्यालय ही सारे निर्णय लेने लगा था. आने वाले वर्षों में इंदिरा का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह कांग्रेस विधायक दल द्वारा निर्वाचित सदस्यों की बजाय राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में अपने वफादारों को चुनने लगीं. उन्होंने जुलाई 1969 में प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और सितम्बर 1970 में राजभत्ते समाप्त कर दिया. ये राजभत्ते राजाओं को मिलते थे. ये फैसले अध्यादेश के माध्यम से अचानक किये गए थे. इससे उनकी छवि गरीब समर्थक की बनी. 1971 के आम चुनावों में गरीबी हटाओ का इंदिरा का नारा लोगों को इतना पसंद आया कि वह 518 में से 352 सीटें जीत गईं. दिसंबर 1971 में भारत ने पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलवाई. विपक्ष भी उनके इस कदम की तारीफ किए बगैर न रह सका. अगले महीने ही इंदिरा गांधी ने खुद को भारत रत्न से सम्मानित कर लिया.
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क्यों लगाया आपातकाल?
1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था. इसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था, लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी. उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किय. अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया.इंदिरा गांधी ने इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई. आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी." "
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विरोधियों को कर लिया गिरफ्तार
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आम लोगों पर कार्रवाई
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ऐसे हटा आपातकाल
आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी. चुनाव में आपातकाल लागू करने का फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ. खुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं. जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद देश में किसी गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ. हालांकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण 1977 में गिर गई.
आपातकाल से जुड़ीं 7 अहम बातें
- 12 जून, 1975: इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली में हुए चुनाव के दौरान की गई गड़बड़ी का दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया. जनता पार्टी के नेता राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में चुनाव में हारने के बाद अदालत में शिकायत की थी.
- 24 जून, 1975: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां भी इंदिरा गांधी को झटका लगा और फैसले को बरकरार रखा लेकिन साथ ही इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने की इजाजत दे दी गई.
- 25 जून, 1975: कांग्रेस के नेता रहे जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफे की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत की जिसे 'संपूर्ण क्रांति' कहा गया और देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गए.
- 25 जून, 1975: राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई. संवैधानिक प्रावधानों के तहत प्रधानमंत्री की सलाह पर वह हर छह महीने बाद 1977 तक आपातकाल की अवधि बढ़ाते रहे.
- सितंबर, 1976: अनिवार्य पुरुष नसबंदी की गई. लोगों को इससे बचने के लिए लंबे समय तक छिपने पर मजबूर होना पड़ा.
- 18 जनवरी, 1977: इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर दिया और मार्च में आम चुनाव की घोषणा की. सभी नेताओं को रिहा कर दिया गया.
- 23 मार्च, 1977: आपातकाल समाप्त हो गया.
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सरकार ने क्या किया आज ऐलान?
अमित शाह ने आज ऐलान किया कि सरकार ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. उन्होंने कहा कि ‘संविधान हत्या दिवस' उन सभी लोगों के महान योगदान को याद करेगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को सहन किया. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तानाशाही मानसिकता का परिचय देते हुए देश पर आपातकाल थोपकर हमारे लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था. लाखों लोगों को बिना किसी गलती के जेल में डाल दिया गया और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा, "25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाना इस बात की याद दिलाएगा कि क्या हुआ था, जब भारत के संविधान को कुचल दिया गया था. यह हर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने का भी दिन है, जो आपातकाल की ज्यादतियों के कारण पीड़ित हुए थे, जो भारतीय इतिहास में कांग्रेस द्वारा लाया गया काला दौर था."
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अधिसूचना जारी कर दी गई
25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने को लेकर भारत सरकार की ओर से एक अधिसूचना भी जारी कर दी गई है. अधिसूचना में लिखा गया है, "25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई थी, उस समय की सरकार ने सत्ता का घोर दुरुपयोग किया था और भारत के लोगों पर ज्यादतियां और अत्याचार किए थे. भारत के लोगों को देश के संविधान और भारत के मजबूत लोकतंत्र पर दृढ़ विश्वास है. इसलिए, भारत सरकार ने आपातकाल की अवधि के दौरान सत्ता के घोर दुरुपयोग का सामना और संघर्ष करने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' घोषित किया है और भारत के लोगों को भविष्य में किसी भी तरह से सत्ता के घोर दुरुपयोग का समर्थन नहीं करने के लिए पुनः प्रतिबद्ध किया है." पढ़ें- मोदी सरकार का बड़ा फैसला, हर साल 25 जून को मनाया जाएगा 'संविधान हत्या दिवस'
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