मुंबई:
बीएसएफ जवान तेजबहादुर यादव के पहले भी कई दूसरे जवान अपना दर्द बयान कर चुके हैं. साल 2011 में भी एनएसजी के एक कमांडो ने अफसर के घर चाकरी कराने का विरोध किया था. लेकिन आज वह कहां है खुद उसके घरवालों को नहीं पता. अब एक बार फिर जवानों का मुद्दा उठने के बाद गायब हो चुके कमांडो ओमप्रकाश शुक्ला के परिवार की उम्मीद जगी है.
ओमप्रकाश का एक बेटा और एक बेटी है. जब घर से श्रीनगर में सीआरपीएफ की अपनी रेजिमेंट में ड्यूटी पर गए थे तब बेटी तीन साल की थी. आज वह 8 साल की हो चुकी है और पापा को तस्वीरों में ढूंढती है. बेचारी मां भी क्या जवाब दे, दिलासा देती है कि पिता देश की सुरक्षा में लगे हैं जल्द ही घर आएंगे और तुम्हें लाड़ करेंगे.
ओमप्रकाश की पत्नी सुधा शुक्ला बेटी को तो बहला देती हैं, लेकिन दिल हमेशा आशंका से घिरा रहता है क्योंकि 3 नवंबर 2011 से उनके पति का कुछ भी पता नहीं चला है. सुधा शुक्ला के मुताबिक वे कई बार श्रीनगर में फोन कर पति के बारे में पूछ चुकी हैं लेकिन हर बार एक ही जवाब मिलता है कि वे बिना बताए कहीं चले गए. सुधा कहती हैं जब वे वहां सीआरपीएफ की ड्यूटी में थे तो उनकी जिम्मेदारी बनती है कि मेरे पति कहां हैं य बताएं.
साल 2003 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए ओमप्रकाश 2009 में एनएसजी में कमांडो बने. साल 2011 में मुंबई के एनएसजी केंद्र में मेजर मोहम्मद इज़राइल ने उन्हें कमाडो से अर्दली बना दिया. देश के लिए मर मिटने का जज्बा रखने वाले कमांडो को यह गंवारा नहीं था. उसने न सिर्फ वरिष्ठों को चिट्ठी लिख अपना विरोध दर्ज कराया बल्कि एनडीटीवी इंडिया पर भी खुलकर अपना दर्द बयान किया था. ओमप्रकाश का कहना था कि वे कमांडो हैं, नौकर नहीं.
खबर का असर हुआ...आरोपों की जांच के लिए ओमप्रकाश को दिल्ली बुलाया गया. ओमप्रकाश के पिता फूलचंद्र कहते हैं कि उसके बाद से ही उनके बेटे के बुरे दिन शुरू हो गए. दिल्ली से वापस आने के बाद से ओमप्रकाश बदले-बदले से रहे. गांव में कुछ महीने दिमागी इलाज भी चला, फिर जुलाई 2011 में वे वापस श्रीनगर में अपने मूल कैडर सीआरपीएफ की 144 रेजिमेंट में चले गए.
इसके बाद वे वापस नहीं आए. सीआरपीएफ से पता चला कि वे बिना बताए ही कहीं चले गए...लेकिन कहां और कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं है ? हमने ईमेल के जरिए इस खबर पर सीआरपीएफ से प्रतिक्रिया भी मांगी है पर जवाब का इंतजार है.
अब पांच साल बाद सोशल मीडिया पर बीएसएफ जवान तेजबहादुर का वीडियो वायरल होने के बाद कमांडो ओमप्रकाश की याद ताजा हो गई है.
इस बीच थलसेना प्रमुख ने सोशल मीडिया को दुधारी तलवार बताते हुए जवानों को उस पर अपनी बात रखने से चेताया है. लेकिन जवानों को ऐसे करने के लिए मजबूर करने वालों पर भी क्या कोई कार्रवाई होगी?
ओमप्रकाश का एक बेटा और एक बेटी है. जब घर से श्रीनगर में सीआरपीएफ की अपनी रेजिमेंट में ड्यूटी पर गए थे तब बेटी तीन साल की थी. आज वह 8 साल की हो चुकी है और पापा को तस्वीरों में ढूंढती है. बेचारी मां भी क्या जवाब दे, दिलासा देती है कि पिता देश की सुरक्षा में लगे हैं जल्द ही घर आएंगे और तुम्हें लाड़ करेंगे.
ओमप्रकाश की पत्नी सुधा शुक्ला बेटी को तो बहला देती हैं, लेकिन दिल हमेशा आशंका से घिरा रहता है क्योंकि 3 नवंबर 2011 से उनके पति का कुछ भी पता नहीं चला है. सुधा शुक्ला के मुताबिक वे कई बार श्रीनगर में फोन कर पति के बारे में पूछ चुकी हैं लेकिन हर बार एक ही जवाब मिलता है कि वे बिना बताए कहीं चले गए. सुधा कहती हैं जब वे वहां सीआरपीएफ की ड्यूटी में थे तो उनकी जिम्मेदारी बनती है कि मेरे पति कहां हैं य बताएं.
साल 2003 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए ओमप्रकाश 2009 में एनएसजी में कमांडो बने. साल 2011 में मुंबई के एनएसजी केंद्र में मेजर मोहम्मद इज़राइल ने उन्हें कमाडो से अर्दली बना दिया. देश के लिए मर मिटने का जज्बा रखने वाले कमांडो को यह गंवारा नहीं था. उसने न सिर्फ वरिष्ठों को चिट्ठी लिख अपना विरोध दर्ज कराया बल्कि एनडीटीवी इंडिया पर भी खुलकर अपना दर्द बयान किया था. ओमप्रकाश का कहना था कि वे कमांडो हैं, नौकर नहीं.
खबर का असर हुआ...आरोपों की जांच के लिए ओमप्रकाश को दिल्ली बुलाया गया. ओमप्रकाश के पिता फूलचंद्र कहते हैं कि उसके बाद से ही उनके बेटे के बुरे दिन शुरू हो गए. दिल्ली से वापस आने के बाद से ओमप्रकाश बदले-बदले से रहे. गांव में कुछ महीने दिमागी इलाज भी चला, फिर जुलाई 2011 में वे वापस श्रीनगर में अपने मूल कैडर सीआरपीएफ की 144 रेजिमेंट में चले गए.
इसके बाद वे वापस नहीं आए. सीआरपीएफ से पता चला कि वे बिना बताए ही कहीं चले गए...लेकिन कहां और कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं है ? हमने ईमेल के जरिए इस खबर पर सीआरपीएफ से प्रतिक्रिया भी मांगी है पर जवाब का इंतजार है.
अब पांच साल बाद सोशल मीडिया पर बीएसएफ जवान तेजबहादुर का वीडियो वायरल होने के बाद कमांडो ओमप्रकाश की याद ताजा हो गई है.
इस बीच थलसेना प्रमुख ने सोशल मीडिया को दुधारी तलवार बताते हुए जवानों को उस पर अपनी बात रखने से चेताया है. लेकिन जवानों को ऐसे करने के लिए मजबूर करने वालों पर भी क्या कोई कार्रवाई होगी?
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