स्पेशल मेरिज एक्ट के तहत समलैंगिक लोगों की शादी को भी मान्यता देने के मामले का सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. इसके साथ ही अटार्नी जनरल को भी नोटिस भेजकर चार हफ्ते में जवाब मांगा है. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या फिर नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है. इस पर वकील एन के कौल ने कहा कि केंद्र सरकार ने केरल हाईकोर्ट को बताया है कि वो सुप्रीम कोर्ट में सारे केसों को ट्रांसफर करने की अर्जी लगाएगी. CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मामले पर सुनवाई की.
समलैंगिंक युवकों के दो जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर समलैंगिक लोगों की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट में शामिल करने की मांग की है. हैदराबाद में रहने वाले दो समलैंगिक पुरुषों ने विशेष विवाह अधिनियम यानी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की है.
याचिकाकर्ता सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग करीब 10 साल से एक-दूसरे के साथ हैं. उनके रिश्ते को उनके माता-पिता, परिवार और दोस्तों ने भी समर्थन दिया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विशेष विवाह अधिनियम भारत के संविधान के विपरीत है. यह समान लिंग के जोड़ों और विपरीत लिंग के जोड़ों के बीच भेदभाव करता है. ये समान लिंग वाले जोड़ों को कानूनी अधिकारों के साथ-साथ सामाजिक मान्यता और स्थिति से वंचित करता है, जो विवाह से प्रवाहित होती है.
एक अन्य जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की है. इसमें एलजीटीबीक्यू समुदाय के सभी सदस्यों को मान्यता देने की मांग की गई है. पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद पिछले 17 सालों से एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हैं. उनका दावा है कि वे वर्तमान में दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं, लेकिन चूंकि वे कानूनी रूप से अपनी शादी को संपन्न नहीं कर सकते हैं. इसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां दोनों याचिकाकर्ता अपने दोनों बच्चों के साथ माता-पिता और बच्चे का कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं.
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये अर्जी नवतेज जौहर और पुत्तास्वामी मामले में दिए गए कोर्ट के फैसले को आगे बढ़ाती है. ये उत्तराधिकार के मुद्दे पर जीवंत मसला है, क्योंकि समलैंगिक संबंधों के आधार पर जीवन यापन कर रहे लोग बुजुर्ग होते जा रहे हैं. उनके सामने भी अपने उत्तराधिकारी यानी विरासत सौंपने की चिंता है.
पीठ ने पूछा कि केरल उच्च न्यायालय ने इस बाबत क्या कहा था? इस पर वकील एन के कौल ने कहा कि बैंक का साझा खाता, सरोगेसी के जरिए संतान, ग्रेच्युटी सहित सभी मुद्दों को ध्यान में रखे जाने की बात कही गई है.
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