बांग्लादेश में सेना ने तख्तापलट हो गया. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया. बांग्लादेश से निकलकर वो भारत पहुंची. उनका विमान गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर उतरा है. हालांकि, बताया जा रहा है कि वह भारत में नहीं रुकेंगी, उन्हें लंदन रवाना कर दिया जाएगा.
अगर शेख हसीना भारत में शरण लेतीं तो यह दूसरी बार होता जब उन्हें हिंदुस्तान में शरण दी जाएगी. इससे पहले शेख हसीना की इंदिरा गांधी ने उस वक्त मदद की थी, जब बांग्लादेश में उनके पिता शेख मुजीबुर की हत्या कर तख्तापलट कर दिया गया था. उस वक्त इंदिरा गांधी ने शेख हसीना को भारत में शरण दी थी. तो चलिए आपको बताते हैं इसकी पूरी कहानी:
15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश में हुआ था तख्तापलट
15 अगस्त 1975 शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश में तख्तापलट कर दिया गया था. उस वक्त शेख हसीना, उनके पति डॉक्टर वाजेद और बहन रेहाना ब्रसेल्स में बांग्लादेश के राजदूत सनाउल हक के यहां रुके हुए थे. तभी तड़के सुबह सनाउल हक के फोन की घंटी बजी और दूसरे छोर पर जर्मनी में बांग्लादेश के राजदूत हुमांयु रशीद चौधरी थे और उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में सैनिक विद्रोह हो गया है और शेख मुजीबर की हत्या कर दी गई है.
भारत में दी गई थी शरण
इसके बाद शेख हसीना उनके पति डॉक्टर वाजेद और उनकी बहन रेहाना के सामने ये सवाल उठ रहा था कि वो अब कहां जाएं. तभी हुमांयु रशीद चौधरी ने कहा वो भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से शेख हसीना को शरण देने के लिए कहेंगे. इस पर इंदिरा गांधी से बात की गई और उन्होंने शेख हसीना को शरण देने के लिए हां कर दिया. बता दें कि उस वक्त भारत में आपातकाल लगा हुआ था.
24 अगस्त 1975 को भारत आईं थी शेख हसीना
इसके बाद 24 अगस्त 1975 को एयर इंडिया की फ्लाइट से शेख हसीना और उनका परिवार दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पहुंचा था. उन्हें कैबिनेट के एक संयुक्त सचिव ने रिसीव किया था और पहले उन्हें रॉ के 56, रिंग रोड स्थित सेफ हाउज ले जाया गया था. इसके बाद 4 सितंबर को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उन्होंने प्रधानमंत्री निवास में मुलाकात की थी.
उनके पति डॉ. वाजेद को परमाणु ऊर्जा विभाग में दी गई थी फेलोशिप
इस मुलाकात के कुछ दिन बाद शेख हसीना को इंडिया गेट के नजदीक पंडारा पार्क के सी ब्लॉक में एक फ्लैट आवंटित किया गया था और उनसे कहा गया ता कि वो बाहरी लोगों से ज्यादा न मिले जुलें और घर से कम बाहर निकलें. इसके बाद 1 अक्टूबर 1975 को शेख हसीना के पति डॉक्टर वाजेद को परमाणु ऊर्जा विभाग में फेलोशिप भी दी गई थी.
मोरारजी देसाई ने भी की थी शेख हसीना की मदद
1977 में हुए चुनावों में इंदिरा गांधी की हार के बाद मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद संभाला था. रिपोर्ट्स के मुताबिक रॉ के अभियानों में तत्कालीन प्रधानमंत्री खास रुचि नहीं लेते थे लेकिन 'बंगंबधु शेख मुजीबुर रहमान' के मुताबिक मोरारजी देसाई शेख हसीना और उनके पति से अगस्त 1977 में मिले थे, जब शेख हसीना ने उनकी बहन रेहाना को दिल्ली बुलाने में मदद मांगी थी. मोरारजी देसाई ने रेहाना के दिल्ली आने की व्यवस्था कराई थी. रेहाना दिसंबर के दूसरे हफ्ते में दिल्ली आई थीं.
धीरे-धीरे शेख हसीना की सुरक्षा से खींच लिए गए थे हाथ
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शेख हसीना की मदद के बाद धीरे-धीरे मोरारजी देसाई उनकी सुरक्षा से हाथ खींचने लगे थे. धीरे-धीरे उनपर दबाव डाला जाने लगा था कि वो खुद ही भारत छोड़ कर चले जाएं. पहले उनका बिजली का भुगतान रोका गया और फिर उनको दी जा रही वाहन की सुविधा को भी वापस ले लिया गया था. हालांकि, 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी सरकार में आ गई थीं और इसके बाद शेख हसीना को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था.
भारत में लगभग 6 साल रहने के बाद 17 मई 1981 को शेख हसीना अपनी बेटी के साथ ढाका चली गई थीं. ढाका में लगभग 15 लाख लोगों ने उनका स्वागत किया था.
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