अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करते पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता, प्रखर कवि और विरोधियों में भी सम्मान के पात्र रहे राजनेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के शीर्ष नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से 2015 सम्मानित किया जा चुका है. हालांकि एक मौका यह भी था जब अटल बिहारी वाजपेयी ने देश का यह सर्वोच्च सम्मान लेने से इनकार कर दिया था. बात तब की है जब 1999 में करगिल युद्ध के बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने जीत हासिल की थी और वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे. तब जीत का उत्साह पार्टी पर हावी था. 1998 के परमाणु परीक्षण और करगिल में पाकिस्तान को धूल चटाने के बाद मिली जीत के बाद पार्टी के कई नेताओं को लगा कि वाजपेयी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए.
अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे वरिष्ठ पत्रकार अशोक टंडन बताते हैं कि वाजपेयी को ये दलीलें दी गईं कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को भारत रत्न दिलवाया था. वाजपेयी से कहा गया कि उनका भारतीय राजनीति में ऐसा ही मुकाम है लिहाज़ा उन्हें ये सम्मान स्वीकार करना चाहिए, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया.
उन्होंने कहा कि उन्हें ये उचित नहीं लगता कि अपनी सरकार में खुद को ही सम्मानित किया जाए. वाजपेयी के इनकार के बाद वरिष्ठ मंत्रियों ने योजना बनाई कि जब वाजपेयी किसी विदेश दौरे पर जाएं तब उनकी अनुपस्थिति में सरकार उन्हें भारत रत्न देने का निर्णय कर दे, लेकिन वाजपेयी को इसकी भनक लग गई. उन्होंने सख़्ती से ऐसा करने से इनकार कर दिया.
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार देश का नेतृत्व किया है. वे पहली बार साल 1996 में 16 मई से 1 जून तक, 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक और फिर 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी के कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी हैं. भारतीय जनसंघ की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही है. वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. आजीवन राजनीति में सक्रिय रहे अटल बिहारी वजपेयी लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन भी करते रहे हैं. वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक रहे हैं और इसी निष्ठा के कारण उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था. सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उन्होंने अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया.
VIDEO: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन
अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे वरिष्ठ पत्रकार अशोक टंडन बताते हैं कि वाजपेयी को ये दलीलें दी गईं कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को भारत रत्न दिलवाया था. वाजपेयी से कहा गया कि उनका भारतीय राजनीति में ऐसा ही मुकाम है लिहाज़ा उन्हें ये सम्मान स्वीकार करना चाहिए, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया.
उन्होंने कहा कि उन्हें ये उचित नहीं लगता कि अपनी सरकार में खुद को ही सम्मानित किया जाए. वाजपेयी के इनकार के बाद वरिष्ठ मंत्रियों ने योजना बनाई कि जब वाजपेयी किसी विदेश दौरे पर जाएं तब उनकी अनुपस्थिति में सरकार उन्हें भारत रत्न देने का निर्णय कर दे, लेकिन वाजपेयी को इसकी भनक लग गई. उन्होंने सख़्ती से ऐसा करने से इनकार कर दिया.
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार देश का नेतृत्व किया है. वे पहली बार साल 1996 में 16 मई से 1 जून तक, 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक और फिर 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी के कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी हैं. भारतीय जनसंघ की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही है. वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. आजीवन राजनीति में सक्रिय रहे अटल बिहारी वजपेयी लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन भी करते रहे हैं. वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक रहे हैं और इसी निष्ठा के कारण उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था. सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उन्होंने अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया.
VIDEO: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन
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