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आंखोंदेखी: जब सलमान रुश्दी की किताब पर मुंबई में बिछ गई 12 लाशें, पढ़ें तब क्या क्या हुआ

सलमान रुश्दी की विवादित किताब "द सैटेनिक वर्सेज" को 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस किताब पर प्रतिबंध लगाया था.

आंखोंदेखी: जब सलमान रुश्दी की किताब पर मुंबई में बिछ गई 12 लाशें, पढ़ें तब क्या क्या हुआ
36 साल के प्रतिबंध के बाद फिर बाजार में उपलब्ध हुई सलमान रुश्दी की किताब
मुंबई:

मुंबई एक प्रतिक्रियावादी मिजाज का शहर है. दुनिया के किसी कोने में कोई घटना होती है तो अक्सर उसकी प्रतिक्रिया मुंबई में देखने को जरूर मिलती है. खिलाफत आंदोलन से लेकर बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगे इसकी मिसाल हैं. ऐसा ही कुछ साल 1989 में देखने मिला था. ब्रिटेन में लिखी गई किताब,ईरान से जारी हुआ फतवा,दिल्ली का प्रतिबंध, लेकिन इसकी कीमत मुंबई ने चुकाई. सलमान रुश्दी की लिखी एक किताब से मुंबई की सड़कों पर 12 लाशें बिछ गई थी.

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ब्रिटिश-भारतीय लेखक सलमान रुश्दी की विवादित किताब "द सैटेनिक वर्सेज" एक बार फिर बाजार में लौट आई है. दिल्ली के एक पुस्तक विक्रेता ने इसे अमेरिका से मंगवाकर बेचना शुरू कर दिया है. हाल ही में, दिल्ली हाई कोर्ट में इस किताब पर लगे प्रतिबंध को हटाने की याचिका दायर की गई थी. इस किताब के फिर से उपलब्ध होने से मुझे फरवरी 1989 का वह खूनी मंजर याद आ गया, जब इसकी वजह से मुंबई की सड़कों पर खून बहा. उस खौफनाक घटना का मैं चश्मदीद रहा हूं. उस वक्त मैं पांचवीं कक्षा का छात्र था और उस इलाके में रहता था जहां यह हिंसा हुई. वो मंजर आज भी मुझे याद है.

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1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस किताब पर प्रतिबंध लगाया था. यह किताब न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में विवादों के घेरे में रही. इसके कारण कई जगह प्रकाशकों पर हमले हुए और किताब की बिक्री करने वाली दुकानों में तोड़फोड़ की गई. लगभग ढाई साल पहले न्यूयॉर्क में सलमान रुश्दी पर एक जानलेवा हमला भी हुआ,जिसमें उनकी एक आंख की रोशनी चली गई.

सरकारी प्रतिबंध के बावजूद फरवरी 1989 में मुंबई के मुस्लिम समुदाय ने सड़कों पर उतरने का फैसला किया. तमाम मुस्लिम संगठनों ने नागपाड़ा के मस्तान तालाब से लेकर फ्लोरा फाउंटेन स्थित ब्रिटिश कूटनीतिक केंद्र तक मोर्चा निकालने की घोषणा की. इस प्रदर्शन के लिए उर्दू अखबारों में अपीलें प्रकाशित की गईं.

पुलिस और प्रदर्शनकारियों का टकराव

इस खबर से मुंबई पुलिस सतर्क हो गई. कहीं कानून-व्यवस्था न बिगड़े, इस डर से पुलिस ने मोर्चे का नेतृत्व करने वाले नेताओं को एक रात पहले ही हिरासत में ले लिया. यह कदम उल्टा साबित हुआ. नेताओं की गैरमौजूदगी में हजारों की भीड़ बेकाबू हो गई.दोपहर करीब 3 बजे, जब मोर्चा क्रॉफर्ड मार्केट के पास पहुंचा, तो पुलिस ने बैरिकेड्स लगाकर उन्हें रोकने की कोशिश की. वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों से वापस लौटने की अपील की और प्रस्ताव दिया कि केवल पांच प्रतिनिधि ब्रिटिश दूतावास जाकर ज्ञापन सौंप सकते हैं. लेकिन भीड़ गुस्से में उबल रही थी.

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कुछ ही देर में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर और बोतलें फेंकनी शुरू कर दीं. इसके जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया. मोहम्मद अली रोड पर भगदड़ मच गई. प्रदर्शनकारी पास की गलियों में छुपकर दोबारा पुलिस पर हमला करते। यह प्रदर्शन जल्दी ही दंगे में तब्दील हो गया.हिंसक भीड़ ने वाहनों को आग लगा दी. मस्जिद बंदर में मेरे घर के पास बनी पुलिस चौकी जलाकर राख कर दी गई. पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन वे सभी निष्क्रिय निकले. आखिरकार पुलिस ने फायरिंग का सहारा लिया.

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पुलिस फायरिंग में 12 लोग मारे गए. इनमें कुछ निर्दोष लोग भी शामिल थे, जिनका प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं था. मृतकों में केरल के दो लोग थे,जो उमरा के लिए जा रहे थे. उन्होंने होटल की खिड़की से बाहर झांकने की कोशिश की और गोली का शिकार हो गए. इसी तरह, एक दुकानदार जो घर लौट रहा था,उसे भी गोली लग गई. मुंबई के जेजे अस्पताल में घायलों और उनके परिजनों की भीड़ के कारण अराजक माहौल बन गया. लगातार घायलों को अस्पताल लाया जा रहा था, और उनका इलाज मुश्किल हो रहा था.रुश्दी की किताब फिर एक बार बाजार में आने की खबर आते ही इसके विरोध में से आवाजें उठनी शुरू हो गई है. सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती होगी की किताब के खिलाफ अगर कोई विरोध प्रदर्शन होता है तो शांतिपूर्ण तरीके से हो.

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