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क्या है जमात-ए-इस्लामी, प्रतिबंध के बाद भी कैसे जम्मू कश्मीर के चुनाव को प्रभावित करने की कर रहा है तैयारी?

जमात ने 1987 के बाद से चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है. जमात के पूर्व अमीर (प्रमुख) तलत मजीद ने बतौर निर्दलीय पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. संगठन पर कश्मीर में अलगावाद फैलाने का आरोप लगता रहा है.

क्या है जमात-ए-इस्लामी, प्रतिबंध के बाद भी कैसे जम्मू कश्मीर के चुनाव को प्रभावित करने की कर रहा है तैयारी?
नई दिल्ली:

जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami) जम्मू कश्मीर में सक्रिय एक सामाजिक राजनीतिक संगठन है. जिसके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.  यह संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद से अलग है. इस संगठन ने अंतिम बार साल 1987 के विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में हिस्सा लिया था. उसके बाद से लगातार इसके तरफ से चुनाव का बहिष्कार होता रहा है. साल 2019 में देश विरोध गतिविधियों के कारण केंद्र सरकार ने इस संगठन पर यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगा दिया था.  27 फरवरी 2024 को केंद्र सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध को अगले 5 साल तक के लिए बढ़ा दिया था.

विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेना चाहती है जमात-ए-इस्लामी
जमात-ए-इस्लामी ने लंबे समय तक चुनाव का बहिष्कार किया था. उसके ऊपर कश्मीर में अलगावाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगता रहा था. हालांकि यूएपीए के तहत प्रतिबंधित होने के बाद हाल के दिनों में संगठन की दिलचस्पी कश्मीर के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने की रही है. पिछले महीने जमाते इस्लामी के नेता अब्दुल हमीद गनई उर्फ हमीद फैयाज ने कहा था कि उनके संगठन की बातचीत केंद्र सरकार के साथ विधानसभा चुनाव में शामिल होने को लेकर हो रही है. साथ ही दावा किया गया था कि लोकसभा के चुनाव में उनके संगठन के समर्थकों ने मताधिकार का प्रयोग किया था. 

1987 के विधानसभा चुनाव के बाद से जमात ने क्यों चुना अलग रास्ता?
साल 1987 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में इस गठबंधन को 75 में से 66 सीटों पर जीत मिली थी. 40 सीटों पर नेशनल कॉन्फ़्रेंस और 26 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी. मुस्लिम युनाइटेड फ़्रंट को 4 और बीजेपी को 2 सीटें मिलीं थी. इस चुनाव के बाद मुस्लिम युनाइटेड फ़्रंट की तरफ से धांधली का आरोप लगाया गया था. जमात ए इस्लामी की तरफ से इस चुनाव का विरोध किया गया और बाद में इस संगठन ने कश्मीर में हर चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर दिया था. 

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जमात-ए-इस्लामी का पीडीपी के साथ अच्छे रहे हैं रिश्ते
कश्मीर में चुनाव के बहिष्कार के बाद भी जमात ए इस्लामी की कई जगहों पर पकड़ रही है. ऐसा माना जाता है कि चुनावों में जमात-ए-इस्लामी का अपरोक्ष समर्थन पीडीपी को मिलता रहा है. कई मौकों पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटाने की भी मांग की है. हाल ही में महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि मैं चाहती हूं कि भारत सरकार जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटाए. सरकार देश में जहर फैलाने वाले, रैलियां निकालने वाले, मस्जिदों पर पथराव करने वाले, मुसलमानों की पीट-पीट कर हत्या करने वाले सांप्रदायिक संगठनों पर प्रतिबंध नहीं लगाती है तो जमात-ए-इस्लामी  पर बैन क्यों लगाया गया है?

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प्रतिबंध के बाद भी स्वतंत्र उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी में जमात
प्रतिबंध के बावजूद संगठन की तैयारी है कि इस चुनाव में अपने समर्थक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जाए. संगठन  अपने तीन पूर्व सदस्यों को स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में मैदान में उतारने की तैयारी है. पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से जमात-ए-इस्लामी के निर्दलीय उम्मीदवार तलत मजीद ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. गौरतलब है कि पहले यह संगठन 18 सितंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान में अपने सात उम्मीदवारों को निर्दलीय के रूप में मैदान में उतारने की योजना बना रहा था, उनमें से तीन आखिरी समय में पीछे हट गए.

कारागार में बंद अलगाववादी कार्यकर्ता सर्जन बरकती की ओर से उसकी बेटी सुगरा बरकती ने नामांकन पत्र दाखिल किया. जमात के पूर्व अमीर (प्रमुख) तलत मजीद ने बतौर निर्दलीय पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. मजीद ने कहा कि वर्ष 2008 के बाद से भू राजनीति में आए बदलाव के मद्देनजर उन्होंने महसूस किया कि पूर्व के अड़ियल रवैये को छोड़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘ वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए मुझे लगा कि अब समय आ गया है कि हम राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लें. मैं 2014 से ही अपने विचार खुलकर व्यक्त कर रहा हूं और आज भी उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हूं.''

मजीद ने कहा कि जमात और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे संगठनों की मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में निभाने के लिए भूमिका है. उन्होंने कहा, ‘‘ जब हम कश्मीर की बात करते हैं तो वैश्विक स्थिति को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं. कश्मीरी होने के नाते हैं हमें वर्तमान में रहना चाहिए और (बेहतर) भविष्य की ओर देखना चाहिए.''

जमात के एक और पूर्व नेता सायर अहमद रेशी भी कुलगाम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. रेशी ने मतदातओं से अपील की है कि वे अपनी अंतर आत्मा की आवाज के आधार पर मतदान करें. उन्होंने कहा, ‘‘किसी व्यक्ति को आशीर्वाद देना या अपमानित करना अल्लाह पर निर्भर है... लेकिन मैं लोगों से अपील करूंगा कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट दें.' रेशी ने कहा, ‘‘हम सुधारों के लिए एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू करेंगे.'' उन्होंने स्वीकार किया कि युवाओं को खेलों से परिचित कराकर उन्हें हिंसा से दूर किया गया है, लेकिन उन्होंने कहा कि युवाओं को नौकरियों की जरूरत है.

सर्जन बरकती 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद फैली हिंसा से चर्चा में आया था और इस चुनाव में शोपियां जिले से अपनी किस्मत आजमा रहा है. सर्जन की ओर से उसकी बेटी सुगरा बरकती ने नामांकन पत्र दाखिल किया. सर्जन इस समय आतंकवाद के आरोपों में कारागार में है. केंद्र सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं. निर्वाचन आयोग के कार्यक्रम के तहत मतदान तीन चरणों 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को कराए जाएंगे और मतों की गिनती चार अक्टूबर को होगी.

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