उत्तराखंड के केदारनाथ के पास बादल फटने के बाद आए सैलाब के बाद लोगों को राहत पहुंचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. केदारनाथ से लोगों को निकालने का काम लगातार जारी है, लेकिन केदारनाथ धाम जाने वाले पुराने रास्ते इस वक्त वरदान साबित हो रही है. केदारनाथ धाम जाने के लिए कई ऐसे रास्ते हैं, जिनसे ग्रामीण और पुराने यात्री आया-जाया करते थे. ऐसा ही कालीमठ से चौमासी का पुराना ट्रैक रूट है, जहां से लोगों को निकालने का काम चल रहा है. यह रूट आज भी गांव वाले और घोड़े खच्चर वाले उपयोग में लाते हैं.
आखिर क्या है चौमासी खम बुग्याल केदारनाथ रूट
कई प्राचीन ट्रैकिंग रूट में यह चौमासी केदारनाथ ट्रैकिंग रूट आता है, जिसको ग्रामीण न सिर्फ पहले उपयोग में लाते थे, बल्कि 2013 के त्रासदी के बाद भी इसी चौमासी खम बुग्याल रूट से लोग बचकर वापस आए थे. केदारनाथ की 2013 की तरह सीधी में जब, सब कुछ बह गया था आने-जाने के रास्ते नहीं थे, हवाई सेवा ठप से होते हुए सैकड़ों लोगों ने अपनी जान बचाई थी. ठीक उसी तरह 31 जुलाई 2024 को भारी बारिश से केदारनाथ का पैदल रूट पूरी तरह से कई जगह टूट गया था. इसके बाद वहां के स्थानीय लोग, ग्रामीण और घोड़े खच्चर वाले इस रास्ते होते हुए वापस आए हैं. हालांकि, प्रशासन को काफी समय बाद इस रूट का ध्यान आया. इसके बाद प्रशासन ने यहां से 500 से ज्यादा लोग एसडीआरएफ की मदद से केदारनाथ से पैदल होते हुए निकले हैं.
वरदान से कम नहीं ये रूट...
चौमासी कालीमठ रूट लगभग 7 से 8 घंटे का ट्रैकिंग रूट है, जो हरे-भरे बुग्याल के साथ रंग-बिरंगे फूलों से लदा हुआ है. इस रूट पर प्राकृतिक जल स्रोत भी हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह रूट बेहद ही सुरक्षित है और इस रूट पर ना 2013 में और ना 2024 में कोई भूस्खलन आया था, जिसकी वजह से ट्रैफिक रूट बाधित हुआ. केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत के मुताबिक, केदारनाथ से त्रियुगीनारायण वाले रूट से नहीं भेजना चाहिए, क्योंकि उसे रास्ते में पानी की बहुत कमी है और वह बेहद खतरनाक ट्रेक रूट है. पूर्व विधायक के मुताबिक, रामबाड़ा से चौमासी कालीमठ रूट ही नहीं, बल्कि 4 अन्य रूट भी हैं, जिनसे नीचे आया जा सकता है और इसको सरकार को वैकल्पिक मार्ग के रूप में विकसित करना चाहिए.
...ताकि आपदा में बच सके लोगों की जान
चौमासी के ग्राम प्रधान मुलायम सिंह कहते हैं कि मानसून सीजन हो या अन्य चौमासी खम बुग्याल केदारनाथ ट्रैकिंग रूट सुरक्षित रूट है, केदारनाथ से कालीमठ का आने का. ग्राम प्रधान कहते हैं कि 2013 की आपदा के बाद और उसे समय लोग यहां से ही सुरक्षित अपने घरों को आए थे. इसलिए प्रशासन और सरकारों को इस रूट का संज्ञान लेना चाहिए, ताकि लोगों की जान भी बच सके और इस क्षेत्र का विकास भी हो सके और गांव वालों को रोजगार भी मिले.
9 ट्रैकिंग रूट को विकसित किया जाना था, लेकिन...
साल 2024 में केदारनाथ धाम जाने के लिए 9 ऐसे ही प्राचीन ट्रैकिंग रूट के लिए हिटो केदार एक्सपीडिशन चलाया गया, जिसमें साल 2013 की केदारनाथ की त्रासदी से सबक लेते हुए इन नो ट्रैकिंग रूट को विकसित किया जाना था. लेकिन 2016 के बाद से लेकर वर्तमान तक इन पुराने ट्रैकिंग रूट पर सरकारों ने ध्यान नहीं दिया. चौमासी कालीमठ रूट उनमें से एक रूट था, जिसमें बेहद ही सुरक्षित तरीके से कालीमठ से होते हुए केदारनाथ धाम तक 50 से ज्यादा ट्रैक्टर्स इस रास्ते होते हुए केदारनाथ पहुंचे थे. अब ऐसे में भविष्य में इस तरह की आपदा और उसके बाद होने वाले रेस्क्यू ऑपरेशन से सरकारों को बचाना है, तो सबसे पहले प्राचीन रूट को डेवलेप करना होगा, ताकि भविष्य में लोगों को जल्दी से रेस्क्यू किया जा सके.
सिर्फ 7 घंटे में भीमबली से कालीमठ
देवेंद्र, रुद्रप्रयाग के निवासी हैं. वह केदारनाथ के पैदल रूट भीमबली में जल संस्थान में काम करते थे और उसे भारी बारिश की वजह से हुए लैंडस्लाइड के कारण फंस गए थे. देवेंद्र भी चौमासी खम बुग्याल कालीमठ रूट से होते हुए वापस आए. उनका कहना है कि यह रूट बेहद ही सुरक्षित है. देवेंद्र कहते हैं कि सुबह 9 बजे भीमबली से चले थे और और 7 घंटे में वह यहां पर कालीमठ सुरक्षित पहुंच गए. उनका कहना है कि इस रास्ते में कोई परेशानी नहीं है और आराम से आ जा सकते हैं.
उत्तराखंड में केदारनाथ रेस्क्यूर ऑपरेशन में अबतक 9099 को लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है, जबकि अभी भी केदारनाथ में 600 और 100 से ज्यादा लोग लिनचोली में फंसे हुए हैं. 3 अगस्त को 1865 लोग रेस्क्यू किए गए, जिसमें हेलीकॉप्टर से 105 लोगों को रेस्क्यू किया गया, लेकिन मौसम की खराबी की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन बार-बार रुक रहा है. 31 जुलाई को हुई भारी बारिश से तबाही के बाद 1 अगस्त से केदारनाथ में रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है. इस दौरान लगातार पैदल मार्ग और हवाई मार्ग से रेस्क्यू ऑपरेशन किया जा रहा है.
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