
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है. उपराष्ट्रपति की इस टिप्पणी की बड़ी चर्चा हो रही है. क्योंकि कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने का फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से अब राष्ट्रपति के पास किसी भी विधेयक को पास करने के लिए तीन महीने का समय निर्धिरित किया गया है.
गुरुवार को उपराष्ट्रपति निवास में राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है.'
जानिए, क्या है अनुच्छेद 142, जिसे धनखड़ ने बताया परमाणु मिसाइल
संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो. अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिले अधिकार के तहत कई फैसले दिए है.
2014 में दो पक्षों ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करके उन्हें तलाक देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' प्रदान करने के लिए आवश्यक महसूस होने वाले किसी भी आदेश को जारी करने या पारित करने का अधिकार देता है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “हाल ही में जजों ने राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया और उसे कानून की तरह माना गया, जबकि वे संविधान की ताकत को भूल गए. अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर मिसाइल' बन गया है, जो चौबीसों घंटे न्यायपालिका के पास उपलब्ध है.”
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