
अफगान के काबुल से प्लेन के पहिये के पास लैंडिंग गियर में छिपकर दिल्ली पहुंचे लड़के की कहानी ने ही लोगों को चौंका दिया है. उसका जिंदा बच पाना भाग्य का साथ ही है. हालांकि ये सफर छोटा था, लेकिन कई बार ये इससे कहीं ज्यादा भयानक, दर्दनाक और जानलेवा होता है. छोटी-सी जगह में चोरी-छिपे पड़े रहना, कई हजार फीट की ऊंचाई, माइनस 60 डिग्री तक की ठंड, हजारों किलोमीटर का सफर, कई घंटे की उड़ान.... आप कल्पना नहीं कर सकते, एक स्टोवे यानी प्लेन में छिपकर यात्रा करना मौत के कितने करीब पहुंचा देता है. पिछले 50 से 55 वर्षों में ऐसी 100 से ज्यादा घटनाएं सामने आ चुकी हैं और कुछेक ही जिंदा बच पाए हैं, जबकि ज्यादातर मामलों में मौत ही हुई है.
सोचिए मौत के इतने करीब पहुंचकर कैसा महसूस होता होगा!
चर्चा में रहीं ऐसी कुछ घटनाओं के आधार पर और जिंदा बच पाए सर्वाइवर्स के अनुभवों के आधार पर मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इस तरह की खतरनाक परिस्थितियों के बीच जानलेवा सफर में कैसा महसूस होता है और क्या-क्या झेलना पड़ता है.
शारीरिक और मानसिक अनुभव
- अत्यधिक ठंड: उड़ान के दौरान तापमान -54°C से -60°C तक पहुंच जाता है. व्यक्ति को धीरे-धीरे तेज ठंड महसूस (हाइपोथर्मिया) होने लगती है, जिससे शरीर का तापमान 27°C तक गिर सकता है.
- ऑक्सीजन की कमी: 35 से 40 हजार फीट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर समुद्र तल के स्तर का केवल 26% रह जाता है. सांस लेने में दिक्कत होती है और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती.
- दर्द-बेचैनी: बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अरमांडो सोकारस रामिरेज ने ऐसे एक सफर में कानों में तेज दर्द महसूस किया था. इसके अलावा, पूरे शरीर में दर्द भी हो सकता है.
- अचेतन अवस्था (Unconsciousness): ठंड और ऑक्सीजन की कमी के कारण शरीर सुस्त हो जाता है. हार्ट-बीट और सांस लेने की गति कम हो जाती है और व्यक्ति बेहोश हो जाता है. ये अवस्था 'हाइबरनेशन' जैसी हो सकती है.
- फ्रॉस्टबाइट (शीतदंश): शरीर के अंगों, खासकर हाथ-पैरों में, ब्लड सर्कुलेशन कम होने से फ्रॉस्टबाइट का गंभीर खतरा रहता है.
- मस्तिष्क पर असर: ठंडे तापमान और ऑक्सीजन की कमी के कारण मस्तिष्क तेजी से काम करना बंद कर देता है. हालांकि, ब्रेन डेड नहीं होता, लेकिन व्यक्ति अचेत हो जाता है.

सर्वाइवल के बाद की स्थिति
अगर व्यक्ति इस यात्रा से बच भी जाता है, तो उसे अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती कराना पड़ता है. उसे मस्तिष्क और अन्य अंग डैमेज हो सकते हैं. उसे चमत्कार जैसा एहसास होता है. इस तरह की परिस्थितियों में जीवित बचना एक 'चमत्कार' माना जाता है. वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के अनुसार, इन स्थितियों में किसी का जीवित रहना लगभग असंभव है. ये बेहद ही दर्दनाक और जानलेवा अनुभव होता है, जिसमें व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर खतरनाक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
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सर्वाइवर की आपबीती: मौत से साक्षात्कार!
अक्टूबर 1996 में ऐसी यात्रा में बचे प्रदीप सैनी हीथ्रो एयरपोर्ट के रनवे पर फ्लाइट लैंड होने के कुछ घंटे बाद डगमगाते और पूरी तरह भ्रम की हालत में पाए गए. उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसे गंभीर हाइपोथर्मिया (बहुत तेज ठंड लगना) के इलाज दिया गया. उन्होंने द डेली मिरर को दिए गए इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें ब्रिटेन के एक रिवरहाउस/डिटेंशन सेंटर में होश आया. वे बोले- 'जहां तक मुझे याद है, मुझे वहीं बताया गया कि मेरा भाई मर गया है. उसका शव 5 दिन बाद सरे में में मिला.'
प्रदीप ने कहा, 'शोर भयानक था. जब पहिये ऊपर आए तो वे इतने गर्म दिखाई दे रहे थे कि वे हमें जला रहे थे. व्हील हाउस हिल रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे भूकंप आ गया हो. मेरे पूरा शरीर सुन्न हो गया था.' ये सब झेलने और सफर में अपने छोटे भाई को खो देने के चलते वे 6 साल तक डिप्रेशन से जूझते रहे. उन्हें निर्वासन यानी वापस भारत भेजने की धमकी भी दी गई. हालांकि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें ब्रिटेन में रहने की अनुमति मिल गई.
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कुछ चर्चित मामलों पर नजर
2015: जोहान्सबर्ग से लंदन की उड़ान
एक 24 वर्षीय व्यक्ति जोहान्सबर्ग से लंदन की 11 घंटे की उड़ान के दौरान विमान के लैंडिंग गियर स्पेस में छिपकर जीवित बच गया. दूसरा व्यक्ति जो उसी विमान में था, उसका शव हीथ्रो हवाई अड्डे के पास एक छत पर मिला. विशेषज्ञों ने माना कि इतने कम तापमान और ऑक्सीजन की कमी में जीवित रहना असंभव है. डॉक्टर जैक क्रेइंडलर के अनुसार, अगर वह ऑक्सीजन के बिना बच गया तो उसके जेनेटिक बनावट का अध्ययन किया जाना चाहिए. कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि उसने बचने के लिए अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर रखा होगा, पर इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है.
1969: हवाना से मैड्रिड की उड़ान
1969 में, 22 वर्षीय अरमांडो सोकारस रामिरेज़ हवाना से मैड्रिड की उड़ान में विमान के पहिए के डिब्बे में छिपकर बच गए. उन्होंने बताया कि उन्हें बहुत ठंड, नींद और कानों में बहुत दर्द महसूस हुआ. इस उड़ान की ऊंचाई 29,000 फीट थी, जो जोहान्सबर्ग से लंदन की उड़ान से कम थी, इसलिए वहां का तापमान और ऑक्सीजन स्तर थोड़ा बेहतर था. उन्हें शीतदंश/बहुत ज्यादा ठंड (frostbite) हुआ , लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ.
2014: सैन जोस से हवाई की उड़ान
2014 में, 15 वर्षीय याह्या अब्दी सैन जोस से हवाई के लिए एक बोइंग 767 की 5 घंटे की उड़ान में जीवित बच गए. इस उड़ान की ऊंचाई 38,000 फीट थी, जो बेहद खतरनाक थी. अमेरिकी विमानन विशेषज्ञ जॉन नैन्स के अनुसार, अगर यह सच है तो यह एक चमत्कार है.
ऐसे और भी कई मामले
- 2000 में, फिदेल मारुही ताहिती से लॉस एंजिल्स की 4,000 मील की यात्रा में जीवित बच गए.
- 2002 में, विक्टर अल्वारेज मोलिना क्यूबा से मॉन्ट्रियल, कनाडा की 4 घंटे की उड़ान में जीवित बच गए.
- 2010 में, एक 20 वर्षीय रोमानियाई व्यक्ति वियना से हीथ्रो की उड़ान में बच गया, लेकिन यह उड़ान 25,000 फीट से कम ऊंचाई पर थी.
- 2012 में, जोस माताडा का शव लंदन में एक आवासीय इलाके में मिला, माना जाता है कि वह अंगोला से आ रही उड़ान से गिरे थे.
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