
- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और कोई ताकत उसे निर्देश नहीं दे सकती.
- उन्होंने क्रिकेट के उदाहरण से बताया कि हर विवादास्पद बात पर प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं होता.
- उपराष्ट्रपति ने ऑपरेशन सिन्दूर का जिक्र करते हुए भारत की शांति एवं अहिंसा की नीति की तारीफ की.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और हमारे फैसले हमारे नेतृत्व द्वारा लिए जाते हैं. दुनिया की कोई भी बाहरी ताकत हमें यह नहीं बता सकती कि अपने मामलों को कैसे संचालित करना है. उपराष्ट्रपति ने अपने निवास पर IDES 2024 बैच के ट्रेनी अफसरों को संबोधित करते हुए ये बात कही और बाहरी दबावों से प्रभावित न होने का आह्वान किया.
उन्होंने क्रिकेट का रोचक उदाहरण देते हुए कहा कि क्या हर विवादास्पद बयान पर प्रतिक्रिया देना आवश्यक है? क्या हर बॉल खेलना जरूरी है?जो खिलाड़ी अच्छा स्कोर करता है, वह खराब गेंदों को छोड़ देता है. वो लुभावनी होती हैं, पर खेली नहीं जातीं. और जो खेलते हैं, उनके लिए विकेटकीपर और गली में खड़े खिलाड़ी तैयार रहते हैं.
ऑपरेशन सिन्दूर और भारत का संदेश
उपराष्ट्रपति ने वैश्विक युद्धों की तबाही का जिक्र करते हुए भारत की शांति और अहिंसा की नीति की सराहना की. ऑपरेशन सिन्दूर का जिक्र करके कहा कि हमने संतुलन से पाठ पढ़ाया और अच्छी तरह पढ़ाया. हमने बहावलपुर और मुरिदके को चुना और समाप्त किया. ऑपरेशन सिन्दूर अभी खत्म नहीं हुआ है, जारी है. कुछ लोग पूछते हैं कि इसे क्यों रोका? हम शांति, अहिंसा, बुद्ध, महावीर और गांधी की धरती हैं. जो जीवों को भी कष्ट नहीं देना चाहते, वो इंसानों को कैसे निशाना बना सकते हैं? हमारा उद्देश्य था, मानवता और विवेक को जगाना.
'विकास कार्यों में पारदर्शिता जरूरी'
विकास कार्यों में देरी पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि कई जगहों पर जब अधिकारियों से विकास कार्य की अनुमति मांगी जाती है तो उसमें देरी होती है. उन्होंने ऐसी प्रणाली विकसित करने का आह्वान किया जिससे लोगों को पहले से ही पता चल जाए कि किसी क्षेत्र में भवन की अधिकतम ऊंचाई क्या हो सकती है. तकनीक के युग में यह संभव है. इससे जनता को राहत मिलेगी, खर्च बचेगा और पारदर्शिता बढ़ेगी.
'कोचिंग का बाजारीकरण बंद होना चाहिए'
कोचिंग सेंटरों के बढ़ते प्रभाव पर उन्होंने कहा कि कोचिंग कौशल और आत्मनिर्भर बनाने के लिए होनी चाहिए, न कि सीमित सीटों के लिए बाजारीकरण और व्यवसायीकरण का जरिया. हमें गुरुकुल प्रणाली पर भरोसा करना चाहिए. युवाओं को अपने संकीर्ण दायरों से बाहर निकलना होगा. अवसर और भी हैं, और वे राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं.
'सिर्फ अर्थव्यवस्था बढ़ाना नहीं, विकास है लक्ष्य'
उन्होंने विकसित भारत की बात करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य केवल अर्थव्यवस्था को बढ़ाना नहीं बल्कि लोगों का विकास करना है. बीते 10 वर्षों में भारत ने असाधारण प्रगति की है. घरों में शौचालय, गैस, इंटरनेट, सड़क, स्कूल और विश्वस्तरीय रेलगाड़ियां- यह सब हमारी पीढ़ी ने कभी नहीं सोचा था. आज भारत दुनिया का सबसे आकांक्षी राष्ट्र बन चुका है.
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