नई दिल्ली:
राजनीतिक पार्टियां भी अब सूचना के अधिकार के दायरे में आएंगी। केंद्रीय सूचना आयोग की पूरी बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई पर यह आदेश दिया है।
मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा और सूचना आयुक्तों एमएल शर्मा तथा अन्नपूर्णा दीक्षित की आयोग की पूर्ण पीठ ने कहा कि छह दल- कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकार के मानदंड को पूरा करते हैं। इन दलों से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई थी।
पीठ ने निर्देश किया, ‘इन दलों के अध्यक्षों, महासचिवों को निर्देश दिया जाता है कि छह सप्ताह के अंदर अपने मुख्यालयों पर सीपीआईओ और अपीलीय प्राधिकरण मनोनीत करें। नियुक्त किए गए सीपीआईओ इस आदेश के नतीजतन आरटीआई आवेदनों पर चार हफ्ते में जवाब देंगे।’ पीठ ने उन्हें आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत दिए गए अनिवार्य खुलासों से जुड़े खंडों के प्रावधानों का पालन करने का भी निर्देश दिया है।
मामला आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनिल बैरवाल की आरटीआई अर्जियों से जुड़ा है। उन्होंने इन दलों द्वारा प्राप्त चंदे आदि के बारे में जानकारी मांगी थी और दानदाताओं के नाम, पते आदि का ब्योरा पूछा था जिसे देने से राजनीतिक दलों ने मना कर दिया था और कहा था कि वे आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते।
मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा और सूचना आयुक्तों एमएल शर्मा तथा अन्नपूर्णा दीक्षित की आयोग की पूर्ण पीठ ने कहा कि छह दल- कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकार के मानदंड को पूरा करते हैं। इन दलों से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई थी।
पीठ ने निर्देश किया, ‘इन दलों के अध्यक्षों, महासचिवों को निर्देश दिया जाता है कि छह सप्ताह के अंदर अपने मुख्यालयों पर सीपीआईओ और अपीलीय प्राधिकरण मनोनीत करें। नियुक्त किए गए सीपीआईओ इस आदेश के नतीजतन आरटीआई आवेदनों पर चार हफ्ते में जवाब देंगे।’ पीठ ने उन्हें आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत दिए गए अनिवार्य खुलासों से जुड़े खंडों के प्रावधानों का पालन करने का भी निर्देश दिया है।
मामला आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनिल बैरवाल की आरटीआई अर्जियों से जुड़ा है। उन्होंने इन दलों द्वारा प्राप्त चंदे आदि के बारे में जानकारी मांगी थी और दानदाताओं के नाम, पते आदि का ब्योरा पूछा था जिसे देने से राजनीतिक दलों ने मना कर दिया था और कहा था कि वे आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते।