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This Article is From Aug 20, 2015

उपहार कांड : सीबीआई को बहस के लिए और वक्त नहीं, लेकिन रिव्यू पिटीशन दायर कर सकती है

उपहार कांड : सीबीआई को बहस के लिए और वक्त नहीं, लेकिन रिव्यू पिटीशन दायर कर सकती है
फाइल फोटो
नई दिल्ली: उपहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को और समय देने से इनकार कर दिया है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से 15 मिनट का समय मांगा था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि पहले ही काफी समय दिया जा चुका है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि CBI चाहे तो फ़ैसले के ख़िलाफ़ रिव्यू पिटिशन दे सकती है।

कल ही इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं पर 30-30 करोड़ का जुर्माना लगाया था। अंसल बंधुओं को ये ज़ुर्माना दिल्ली सरकार को अदा करना है।

18 साल पहले हुए इस हादसे में 59 लोग मारे गए थे और 100 से ज़्यादा घायल हुए थे। अब पीड़ित परिवार मायूस हैं कि जिस हादसे में उनके घरों के चिराग बुझ गए, उनके दोषियों को सिर्फ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया।

न्यायमूर्ति एआर दवे, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की खंडपीठ ने सुशील और गोपाल अंसल द्वारा जेल में बिताई गई अवधि तक ही उनकी सजा सीमित करते हुए उन्हें निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर दिल्ली सरकार के पास 60 करोड़ रुपये जमा कराएं। दिल्ली सरकार इस धनराशि का इस्तेमाल कल्याणकारी योजना के लिए करेगी।

इस अग्निकांड में दोषी ठहराए गए सुशील अंसल अब तक पांच महीने से अधिक समय जेल में बिता चुके थे, जबकि उनके भाई गोपाल अंसल चार महीने से अधिक समय जेल में रह चुके थे।

पीठ ने सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का यह अनुरोध ठुकरा दिया कि दोषियों को सजा की शेष अवधि के लिए जेल भेजा जाए।

कोर्ट ने जब साल्वे से उनकी राय पूछी तो उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई से उन्हें निर्देश है कि वह उनकी हिरासत के लिए जोर दें।’’ उपहार अग्निकांड के पीड़ितों के संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने भी कहा कि दोषियों को सिर्फ जेल ही नहीं भेजा जाए, बल्कि उनकी सजा भी बढ़ाई जाए।

दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क क्षेत्र में स्थित उपहार सिनेमा में 'बॉर्डर' फिल्म के प्रदर्शन के दौरान 13 जून, 1997 को हुए अग्निकांड में बालकनी में बड़ी संख्या में दर्शक फंस गए थे। इस अग्निकांड में 59 व्यक्ति मारे गए थे और इस दौरान हुई भगदड़ में एक सौ से अधिक जख्मी हो गए थे।

इससे पहले, न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र (अब सेवानिवृत्त) की पीठ ने 5 मार्च, 2014 को अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया था लेकिन उन्हें दी जाने वाली सजा को लेकर दोनों जज एकमत नहीं थे। न्यायमूर्ति ठाकुर ने 2008 के दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय से सहमति व्यक्त की थी, जिसने अंसल बंधुओं को एक-एक साल की कैद की सजा सुनाई थी।

लेकिन न्यायमूर्ति मिश्रा ने सुशील अंसल की उम्र को ध्यान में रखते हुए उनकी सजा जेल में बिताई गई अवधि तक सीमित कर दी थी, मगर उन्होंने दूसरे भाई गोपाल की सजा बढ़ाकर दो साल कर दी थी। इसके बाद, इस मामले को तीन-सदस्यीय खंडपीठ के पास फैसले के लिए भेजा गया था। (इनपुट भाषा से)

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