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This Article is From Apr 14, 2023

"जेल में रची थी उमेश मर्डर की साजिश, शाइस्ता भी थी शामिल": अतीक अहमद का कबूलनामा

यूपी पुलिस ने 12 अप्रैल को सीआरपीसी 161 से तहत अतीक अहमद का बयान लिया था. इस दौरान वह कई बार रोया. उसने कहा- 'अब तो हम मिट्टी में मिल गए हैं. सब मेरी गलती है. असद की कोई गलती नही थी.'

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पुलिस अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ से 4 दिनों तक पूछताछ करेगी.

लखनऊ:

उमेश पाल हत्याकांड (Umesh Pal Murder Case) में मुख्य आरोपी गैंगस्टर अतीक अहमद (Atique Ahmed) अपने बेटे असद अहमद के एनकाउंटर (Asad Ahmed Encounter) से पूरी तरह से टूट गया है. अतीक ने कबूल कर लिया है कि उसने ही हत्या की साजिश रची थी. पुलिस की रिमांड कॉपी के मुताबिक, आरोपी अतीक अहमद ने 12 अप्रैल 2023 को पुलिस को अपने बयान में बताया- 'मैंने उमेश पाल हत्याकांड की पूरी साजिश जेल में बैठकर रची.' गैंगस्टर ने यह भी कबूल किया कि इसके लिए उसकी पत्नी शाइस्ता ने मोबाइल और सिमकार्ड के इंतज़ाम किए थे.

यूपी पुलिस ने सीआरपीसी 161 से तहत अतीक अहमद का बयान लिया था. इस दौरान वह कई बार रोया. उसने कहा- 'अब तो हम मिट्टी में मिल गए हैं. सब मेरी गलती है. असद की कोई गलती नही थी. दुनिया का सबसे बड़ा गम बुजुर्ग पिता के कंधों पर जवान बेटे का शव होता है.'

शाइस्ता ने किया मदद
अतीक अहमद ने कहा, "मुझसे मिलने मेरी पत्नी जेल में आती थी. मैंने उसको समझाया कि दूसरे लोगों के नाम से सिम ले लो. नए मोबाइल ले लो. मेरे लिए एक मोबाइल और नया सिमकार्ड भेज देना. एक मोबाइल और सिम अशरफ को भी भेज देना. मैंने साबरमती जेल में किस सरकारी आदमी के जरिए मोबाइल भेजना है, उसका नाम भी शाइस्ता को बता दिया था. उसे यह भी बता दिया था कि अशरफ को केवल खबर कर देना, तो वह जेल के अपने आदमी के जरिए मोबाइल और सिम मंगवा लेगा."

फेस टाइम कॉल और व्हाट्सअप पर ही करते थे बात
यूपी पुलिस के सामने अतीक अहमद ने कबूल किया, "यह भी तय हुआ कि जेल में रहकर हम लोग फेसटाइम कॉल, नेट कॉल, व्हाट्सएप कॉल से बात करते रहेंगे. उमेश के कत्ल की तैयारी और पूरी साजिश तैयार करेंगे. क्योंकि फेसटाइम कॉल, नेट कॉल, व्हाट्सएप कॉल सर्विलांस से पकड़ नहीं आता है. शाइस्ता ने बताया कि उमेश के साथ दो पुलिस वाले हथियारबंद चलते हैं और मैंने कहा कोई बात नहीं, हथियारबंद तो राजू पाल के साथ भी रहते थे." 

शाइस्ता पर थी हथियार खरीदने और उसे ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी
अतीक अहमद ने आगे कहा, 'राजू पाल के टाइम में पुलिस वालों को छोड़ दिए थे. अब की बार पुलिस वालों को पहले मारेंगे. इसके बाद शाइस्ता से सारे लड़कों के बीच तालमेल रखने, हथियार की व्यवस्था करके लड़कों को देना और हत्या के बाद हथियार को वापस लेकर हिफाजत से रखवाना और लड़कों को फरारी कटवाने के बारे में गहराई से बातचीत हुई. मैंने ही शाइस्ता को बताया था कि कहां से हथियार मिलेंगे और कौन-कौन से लड़के कत्ल में रहेंगे. कत्ल के बाद हथियार लड़के कहां वापस रखेंगे और वहां से हथियार फिर हटा कर कहां रखने हैं. वह जगह भी मैंने शाइस्ता को बता दी थी. जगह के बारे में अशरफ को भी मालूम था. कत्ल के दौरान रुपये की व्यवस्था कहां-कहां से होगी यह भी बता दिया था.'


कोड वर्ड में होती थी ऑनलाइन चैटिंग
पुलिस और खुफिया एजेंसी को चकमा देने के लिए अतीक अहमद ने बाकायदा कोड वर्ड का इस्तेमाल किया था. अतीक का कोड था 'बड़े'. उसके भाई अशरफ को 'छोटे' कोड वर्ड से बुलाया जाता था. असद का कोड था 'ठाकुर'. अतीक अहमद ने बताया, 'लड़कों को किस कोड से पुकारा जाएगा या मोबाइल पर बात की जाएगी, इसकी भी प्लानिंग की गई थी. मैंने अपना कोड (बड़े) अशरफ का (छोटे), गुलाम का (गुल्लू), असद का (ठाकुर) और अन्य का पतले वगैरह के नाम से बनवाया. बम का जखीरा कहां रखा है, इस बारे में मैंने लड़कों को बता दिया था कि मैं तो जेल में बंद हूं. अशरफ को भी पता है, लेकिन वह भी जेल में है. अब इसकी जानकारी शाइस्ता वह असद से कर लेना.

ISI और लश्कर से है कनेक्शन
अतीक अहमद ने कबूल किया, 'मेरे पास हथियार की कोई कमी नहीं है. क्योंकि मेरे संबंध सीधे पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से हैं. पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए पंजाब की सीमा में हथियार गिराए जाते हैं. जिसको लोकल कनेक्शन इकट्ठा कर लेता है. उन्हीं खेतों से जम्मू-कश्मीर के दहशतगर्दी को भी हथियार मिलते हैं. आप मुझे ले चले, तो मैं उन रुपयों को और घटना में इस्तेमाल हथियार बरामद करा सकता हूं.' 

अशरफ का कबूलनामा
अतीक अहमद के छोटे भाई अशरफ ने भी बयान दिया है. उसने पुलिस को बताया, 'असलहे और कारतूस जिस जगह पर रखे हैं, उस जगह को यहां से बताना मुमकिन नहीं है. कुछ जगहों को मैं जानता हूं. कुछ जगहों को भाईजान अतीक जानते हैं. जिन ठिकानों पर हथियार रखे जाते हैं. वहां जो आदमी रहता है, वह सब स्थान हमें और भाईजान को मालूम है, लेकिन वह जगह खेतों में बने फार्महाउस जैसे हैं, वहां चल कर ही पता बताया जाना मुमकिन है. जेल में रहकर वहां का पता बताया जाना मुमकिन नहीं है. उमेश पाल की हत्या में प्रयोग किए गए सारे हथियार घटना के बाद वापस जगह पर पहुंचा दिए गए. केवल 0.48 बोर की पिस्टल वापस नहीं पहुंच सकी. क्योंकि घटना के बाद लड़के शहर छोड़ने की जल्दबाजी में थे. उस पिस्टल को करैली थाना क्षेत्र में मलिन बस्ती में कल्लू रहता है, उसके घर पर रख दिया गया है. उसका घर बता सकता हूं.'

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