प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
मुस्लिम महिला बिल यानी ट्रिपल तलाक बिल को आज यानी गुरुवार को लोकसभा में पेश करने के लिए लिस्ट कर दिया गया है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद लोकसभा में प्रश्नकाल के बाद इस बिल को पेश करेंगे. मगर ट्रिपल तलाक बिल को लेकर राजनीतिक खेमेबाज़ी तेज हो गई है और विधेयक में बदलाव की मांग भी उठने लगी है. अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के मुताबिक, इस बिल में इंस्टैंट ट्रिपल तलाक को क्रिमिनिलाइज करने के लिए कड़े प्रावधान शामिल किये गये हैं. बिल में इंस्टैंट ट्रिपल तलाक के दोषियों को तीन साल तक की सजा और जुर्माना का प्रस्ताव भी शामिल है. बिल में इंस्टैंट ट्रिपल तलाक को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है. इसमें पीड़ित मुस्लिम महिला को मैंन्टेनेंस (निर्वाह भत्ता) का अधिकार और नाबालिग बच्चों की कस्टडी देने का भी प्रस्ताव है.
वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने कहा है कि विधेयक में एक बार में तीन तलाक़ के दोषियों के लिए 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान गलत है. उनके मुताबिक, बिल में दोषियों के लिए 2 हफ़्ते तक की सजा का प्रावधान होना चाहिए. प्रारूप में ये संज्ञेय और गैरज़मानती है, जिसे असंज्ञेय और ज़मानती किया जाना चाहिए और पीड़ित महिला को अपने पति के घर में रहने का अधिकार होना चाहिए.
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केटीएस तुलसी ने एनडीटीवी से कहा, "अगर सज़ा का प्रावधान ज़्यादा रखा जाता है तो पीड़ित महिला के खिलाफ उसका पति अत्याचार बढ़ा सकता है, हिंसक हो सकता है. ऐसे में ये ज़रूरी होगा कि ऐसे अपराधों में बेल का प्रावधान शामिल किया जाए".
उधर समाजवादी पार्टी ने मांग की है कि सरकार को विधेयक लाने से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत सभी पक्षों से बातचीत करनी चाहिए. पर्सनल लॉ बोर्ड बिल के प्रारूप को खारिज़ कर चुका है और सरकार ने उनसे बात भी नहीं की. कानून में सबकी चाहतों को तरजीह मिलनी चाहिए.
तत्काल तीन तलाक देना अब हुआ गैरकानूनी, होगी 3 साल की जेल, जानें बिल की 10 बातें
नरेश अग्रवाल ने एनडीटीवी से कहा, "लॉ बोर्ड ने कहा है कि सरकार ने उनसे बात भी नहीं की है. लॉ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक बिल को खारिज कर दिया है, जब तक कानून सबकी इच्छा से नहीं बनता है तब तक वो सफल साबित नहीं हो सकता है. जबकि कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक बार में ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी करार दे चुका है ऐसे में नया कानून लाने की क्या ज़रूरत है?"
ट्रिपल तलाक बिल के ड्राफ्ट पर आज कैबिनेट में होगी चर्चा, शीतकालीन सत्र में होगा पेश
तीन तलाक की कुछ ख़ास बातें-
साफ है कि ट्रिपल तलाक बिल के मौजूदा प्रारूप को लेकर उठ रहे इन सवालों से साफ है कि इस संवेदनशील बिल पर राजनीतिक सहमति बनाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा. अब देखना होगा कि आज सरकार इस मसले का कैसे हल निकाल पाती है.
VIDEO: ट्रिपल तलाक बिल में बदलाव की मांग, विपक्षी दलों ने भी उठाए सवाल
वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने कहा है कि विधेयक में एक बार में तीन तलाक़ के दोषियों के लिए 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान गलत है. उनके मुताबिक, बिल में दोषियों के लिए 2 हफ़्ते तक की सजा का प्रावधान होना चाहिए. प्रारूप में ये संज्ञेय और गैरज़मानती है, जिसे असंज्ञेय और ज़मानती किया जाना चाहिए और पीड़ित महिला को अपने पति के घर में रहने का अधिकार होना चाहिए.
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केटीएस तुलसी ने एनडीटीवी से कहा, "अगर सज़ा का प्रावधान ज़्यादा रखा जाता है तो पीड़ित महिला के खिलाफ उसका पति अत्याचार बढ़ा सकता है, हिंसक हो सकता है. ऐसे में ये ज़रूरी होगा कि ऐसे अपराधों में बेल का प्रावधान शामिल किया जाए".
उधर समाजवादी पार्टी ने मांग की है कि सरकार को विधेयक लाने से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत सभी पक्षों से बातचीत करनी चाहिए. पर्सनल लॉ बोर्ड बिल के प्रारूप को खारिज़ कर चुका है और सरकार ने उनसे बात भी नहीं की. कानून में सबकी चाहतों को तरजीह मिलनी चाहिए.
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नरेश अग्रवाल ने एनडीटीवी से कहा, "लॉ बोर्ड ने कहा है कि सरकार ने उनसे बात भी नहीं की है. लॉ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक बिल को खारिज कर दिया है, जब तक कानून सबकी इच्छा से नहीं बनता है तब तक वो सफल साबित नहीं हो सकता है. जबकि कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक बार में ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी करार दे चुका है ऐसे में नया कानून लाने की क्या ज़रूरत है?"
ट्रिपल तलाक बिल के ड्राफ्ट पर आज कैबिनेट में होगी चर्चा, शीतकालीन सत्र में होगा पेश
तीन तलाक की कुछ ख़ास बातें-
- सरकार आज तुरंत तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को गैर कानूनी तथा दंडनीय अपराध बनाने के लिए लोकसभा में बिल रखेगी.
- सभी बीजेपी सांसदों को सदन में रहने को कहा गया है. पार्टी ने व्हिप जारी की है.
- सरकार की कोशिश इसे पास कराने की है.
- अधिकांश विपक्षी पार्टियां तीन साल की सज़ा के प्रावधान के खिलाफ हैं.
- कुछ दलों को लगता है कि इससे महिलाओं की हत्या के मामले भी बढ़ सकते हैं.
- एक दलील यह भी कि पति को अगर सज़ा हो गई तो वो भरण पोषण का भत्ता नहीं दे सकेंगे.
- बीजेडी जैसे न्यूट्रल दल भी सजा के पक्ष में नहीं हैं, पर वो एक सीमा से अधिक इसका विरोध नहीं करना चाहते क्योंकि सरकार ने इसे महिलाओं के अधिकारों से जोड़ दिया है.
- ऐसे में संभावना है कि तीन तलाक बिल को संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेजने की बात हो. वैसे सरकार का मक़सद राजनीतिक संदेश भेजना भी लगता है.
साफ है कि ट्रिपल तलाक बिल के मौजूदा प्रारूप को लेकर उठ रहे इन सवालों से साफ है कि इस संवेदनशील बिल पर राजनीतिक सहमति बनाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा. अब देखना होगा कि आज सरकार इस मसले का कैसे हल निकाल पाती है.
VIDEO: ट्रिपल तलाक बिल में बदलाव की मांग, विपक्षी दलों ने भी उठाए सवाल
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