वित्त मंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
ट्रेड यूनियनों ने शुक्रवार को प्रस्तावित अपनी हड़ताल रद्द करने से इनकार कर दिया है. इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार शाम को एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. पीएम मोदी के साथ इस बैठक में वित्त मंत्री अरुण जेटली, ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल और श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय शामिल थे.
ट्रेड यूनियनों ने चेतावनी दी है कि शुक्रवार को देशभर में बैंक, सरकारी कार्यालय और कारखाने बंद रहेंगे. हालांकि रेलवे कर्मचारियों ने अभी यह संकेत नहीं दिया है कि वे इस हड़ताल में शामिल होंगे. इसका मतलब है कि रेल सेवाओं पर असर पड़ने की संभावना नहीं है.
ट्रेड यूनियनें पिछले साल सितंबर से सरकार पर अपनी 12-सूत्रीय मांगों को माने जाने का दबाव डाल रही हैं. इनमें न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 18,000 रुपये किए जाने की मांग भी शामिल है. वे सरकार के विनिवेश के हालिया निर्णय - खासकर फार्मा, रक्षा के क्षेत्र में विदेशी निवेश की शर्तों में ढील दिए जाने का भी विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे राष्ट्रीय हितों से समझौता हो सकता है.
हड़ताल और कामगारों के हितों की सुरक्षा नहीं करने का आरोप ऐसे वक्त सामने आए हैं जब सरकार अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए कई बड़े सुधार कर रही है, और उस धारणा को भी बदलने की कोशिश में है जिसके अनुसार कहा जा रहा है कि सरकार केवल बड़े व्यापारों का ही हित देख रही है.
प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह ही अपने पार्टी के नेताओं से कहा था कि उन्हें गरीबों के कल्याण से जुड़ी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लोगों के बीच लेकर जाना चाहिए.
सरकार के सामने भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) की भी चुनौती है. गौरतलब है कि भारतीय मजदूर संघ सत्ताधारी बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से ही जुड़ा संगठन है. अगर यह भी हड़ताल में शामिल हो गया तो वामपंथी ट्रेड यूनियनों और विपक्ष को यह बोलने का मौका मिल जाएगा कि सरकार की नीतियां उनके करीबी संगठनों तक को अस्वीकार्य हैं. हालांकि भारतीय मजदूर संघ ने शुक्रवार की हड़ताल को लेकर अभी तक फैसला नहीं किया है. पिछले वर्ष बीएमएस ऐसी ही एक हड़ताल में शामिल नहीं हुआ था. सरकार द्वारा ट्रेड यूनियनों की 12 में से 9 मांगें मान लेने के आश्वासन के बाद संगठन ने खुद को हड़ताल से दूर रखा था.
ट्रेड यूनियनों ने चेतावनी दी है कि शुक्रवार को देशभर में बैंक, सरकारी कार्यालय और कारखाने बंद रहेंगे. हालांकि रेलवे कर्मचारियों ने अभी यह संकेत नहीं दिया है कि वे इस हड़ताल में शामिल होंगे. इसका मतलब है कि रेल सेवाओं पर असर पड़ने की संभावना नहीं है.
ट्रेड यूनियनें पिछले साल सितंबर से सरकार पर अपनी 12-सूत्रीय मांगों को माने जाने का दबाव डाल रही हैं. इनमें न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 18,000 रुपये किए जाने की मांग भी शामिल है. वे सरकार के विनिवेश के हालिया निर्णय - खासकर फार्मा, रक्षा के क्षेत्र में विदेशी निवेश की शर्तों में ढील दिए जाने का भी विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे राष्ट्रीय हितों से समझौता हो सकता है.
हड़ताल और कामगारों के हितों की सुरक्षा नहीं करने का आरोप ऐसे वक्त सामने आए हैं जब सरकार अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए कई बड़े सुधार कर रही है, और उस धारणा को भी बदलने की कोशिश में है जिसके अनुसार कहा जा रहा है कि सरकार केवल बड़े व्यापारों का ही हित देख रही है.
प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह ही अपने पार्टी के नेताओं से कहा था कि उन्हें गरीबों के कल्याण से जुड़ी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लोगों के बीच लेकर जाना चाहिए.
सरकार के सामने भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) की भी चुनौती है. गौरतलब है कि भारतीय मजदूर संघ सत्ताधारी बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से ही जुड़ा संगठन है. अगर यह भी हड़ताल में शामिल हो गया तो वामपंथी ट्रेड यूनियनों और विपक्ष को यह बोलने का मौका मिल जाएगा कि सरकार की नीतियां उनके करीबी संगठनों तक को अस्वीकार्य हैं. हालांकि भारतीय मजदूर संघ ने शुक्रवार की हड़ताल को लेकर अभी तक फैसला नहीं किया है. पिछले वर्ष बीएमएस ऐसी ही एक हड़ताल में शामिल नहीं हुआ था. सरकार द्वारा ट्रेड यूनियनों की 12 में से 9 मांगें मान लेने के आश्वासन के बाद संगठन ने खुद को हड़ताल से दूर रखा था.
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