
इंसानियत और प्रेम किसी भी मजहब या जाति की दीवार से ऊपर होता है. बीकानेर के मुस्लिम परिवार की ये प्रेम से भरी हुई अनोखी कहानी जहन में चल रहे 'युद्धों' के इस दौर में एक सुकून भरा झोंका तो है ही.इस कहानी में एक मां की ममता अपने बेटे सद्दाम (हिरण) के लिए आंखों से बहती दिख रही है, एक मजबूरी भी दिख रही है कि इसे अब जाना ही होगा, ताकि उसे प्राकृतिक वातावरण मिल सके. एक बेबसी भी दिख रही है कि अगर मेरा बस चलता तो इसे आंचल में छिपा लेती कहीं ना जाने देती. खैर, राजस्थान के बीकानेर से आई यह कहानी भावनाओं से भरी है. एक मुस्लिम परिवार ने हिरण के एक मासूम बच्चे को अपने बेटे की तरह पाला, उसे प्यार दिया और नाम दिया ‘सद्दाम', लेकिन जब वक्त आया उसे जंगल में छोड़ने का तो ये विदाई बेहद भावुक कर देने वाली थी. परिवार की आंखों में आंसू और चेहरे पर बिछड़ने की बेबसी थी.
11 महीने पहले लावारिस हालत में मिला था हिरण का बच्चा
बीकानेर के ग्रामीण इलाके में रहने वाले एक परिवार को करीब 11 महीने पहले हिरण का एक मासूम बच्चा लावारिस हालत में मिला था. किसी अनहोनी के चलते बिछड़ा ये हिरण कुछ ही दिनों में इस घर का हिस्सा बन गया. तीन बच्चों वाले इस परिवार ने उसे चौथे बच्चे की तरह पाला और उसे नाम दिया ‘सद्दाम'. दिन बीते, महीनों गुजरे और सद्दाम इस परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गया, लेकिन इस परिवार की यह अनोखी कहानी जब बिश्नोई समाज तक पहुंची तो उन्होंने परिवार से संपर्क किया और हिरण को वापस जंगल में छोड़ने की बात कही, ताकि वह अपनी प्राकृतिक दुनिया में लौट सके और फिर वो दिन आया, जब सद्दाम को उसके असली घर भेजने की घड़ी आ गई, लेकिन ये विदाई आसान नहीं थी. उस हिरण को अपनी गोद में खिलाने वाली मां की आंखों में आंसू थे, उसका गला भर आया था. वह दूर तक अपने प्यारे ‘सद्दाम' को विदा करने गई.
सद्दाम से जुदाई का दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी मां
सद्दाम से जुदाई का दर्द इस मां की आंखों में साफ झलक रहा था. बिश्नोई समाज के लोगों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि सद्दाम को बाकी हिरणों के बीच सही माहौल में रखा जाएगा, ताकि उसका नैसर्गिक विकास हो सके, लेकिन भावनाओं के इस ज्वार में सिर्फ यही मां ही नहीं थी बिश्नोई समाज के लोग भी भावुक हो गए.
विश्नोई समाज ने परिवार के योगदान को सराहा
इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसने हजारों लोगों को भावुक कर दिया. बिश्नोई समाज ने इस परिवार के योगदान को सराहा और उन्हें आर्थिक सहायता भी देने की कोशिश की हालांकि परिवार ने पहले इसे स्वीकार करने से मना कर दिया, लेकिन बाद में बहुत आग्रह पर यह सहायता ली. मां आखिर तक कहती रही वह अपने बच्चो को बेचना नहीं चाहती तो पैसे क्यों ले.
करुणा और प्रेम में मजहब, जाति या सरहद की दीवार नहीं होती
यह कहानी सिर्फ इंसानियत की नहीं, बल्कि करुणा और प्रेम की भी है. जहां मजहब, जाति या सरहद की कोई दीवार नहीं… बस एक मासूम प्राणी से निस्वार्थ प्रेम है. सद्दाम तो अब अपने परिवार के पास लौट गया, लेकिन इस परिवार के प्यार की कहानी हमेशा लोगों के दिलों में रहेगी.
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