
'11वां सीपीए भारत क्षेत्र सम्मेलन' राज्यपाल के सम्बोधन के साथ बेंगलुरू में सम्पन्न हुआ. लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज इस बात पर जोर दिया कि सभी विधानमंडल अपनी कार्यवाही और चर्चा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मानक स्थापित करें. सदनों में नियोजित गतिरोध पर चिंता व्यक्त करते हुए ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों के साथ व्यापक संवाद की आवश्यकता पर बल दिया. बिरला ने कहा इन सम्मेलनों के माध्यम से हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में विधानमंडल नियोजित गतिरोध के बिना कार्य कर सकें.

'जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए सदनों के अंदर गतिरोध करने होंगे खत्म'
11वें सीपीए भारत क्षेत्र सम्मेलन में चार संकल्प लिए गए. लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए सदनों के अंदर गतिरोध और व्यवधान को समाप्त किए जाने, संसद के सहयोग से राज्यों की विधायी संस्थाओं की अनुसंधान एवं सन्दर्भ शाखाओं को मजबूत करने, विधायी संस्थाओं में डिजिटल टेक्नोलॉजी का अधिक से अधिक उपयोग करने की बात कही गई.
'आधुनिक समय में संसद और विधानसभाओं की भूमिका अहम'
लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि, "विज्ञान और तकनीक के समय में संसद और विधानसभाओं की भूमिका और भी व्यापक हो गई है. साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अधिकार और संवैधानिक सुधार जैसे विषय अब हमारी चर्चाओं के नए केंद्र बन रहे हैं. इन जटिल चुनौतियों के समाधान के लिए समिति आधारित विचार-विमर्श, विशेषज्ञों से संवाद और स्थानीय प्रतिनिधियों की भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है."

'युवाओं, महिलाओं और वंचित वर्गों को नेतृत्व के अवसर देने होंगे'
बिरला ने कहा, "हमें युवाओं, महिलाओं और वंचित वर्गों को नेतृत्व के अवसर देने होंगे, जिससे संवाद समावेशी बने और समाज का हर वर्ग अपने विचार और अनुभव साझा कर सके. जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है कि जनता यह महसूस करे कि विधानमण्डल उनकी आवाज का सशक्त मंच है, न कि केवल राजनीतिक टकराव का स्थान. वैचारिक या राजनैतिक मतभेदों के आधार पर सदन रोकने के स्थान पर हमारा संकल्प सदन चलाने का होना चाहिए."
'पीठासीन की भूमिका सबसे अहम'
पीठासीन अधिकारियों की भूमिका पर लोक सभा अध्यक्ष ने विचार व्यक्त किया कि, "हम सब जो पीठासीन हैं, हमारी भूमिका विशेष महत्व रखती है. हमारी निष्पक्षता, धैर्य और न्यायपूर्ण आचरण ही सदन की गरिमा को बनाए रखते हैं. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सदन में प्रत्येक सदस्य को अपनी बात रखने का अवसर मिले, सभी माननीय सदस्यों को नियमों की जानकारी हो और उन नियमों का पालन न्यायसंगत ढंग से हो, तथा व्यक्तिगत विचारों के बजाय संवैधानिक मूल्यों को वरीयता दी जाए."
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