तेलंगाना (Telangana) की एक प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका संध्या की 17 अप्रैल को चुनावी ड्यूटी के कुछ ही दिनों बाद कोविड-19 से मौत हो गई. शिक्षिका को नागार्जुनसागर विधानसभा उपचुनाव के लिए चुनावी ड्यूटी पर बुलाया गया था. वो अपने पीछे पति कम्ममपति मोहन राव और 8 वर्षीय बेटी छोड़ गई हैं. उनकी कहानी उन 15 परिवारों की दुखद कहानियों में से एक है, जिनका जीवन राजनीति और चुनावों के बीच उग्र महामारी के कारण बर्बाद हो गया.
शिक्षिका संध्या को 20 अप्रैल को बुखार था. बाद में उनका COVID-19 टेस्ट पॉजिटिव आया. एक हफ्ते बाद, उन्हें हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया था लेकिन 8 मई को उनकी मौत हो गई. वह केवल 35 वर्ष की थीं. उनके पति का कहना है कि उनके और उनकी बेटी के लिए दुनिया खत्म गई है.
वो कहते हैं, "सिर्फ मेरी पत्नी नहीं, मेरी जान चली गई है. चुनाव क्यों हुए? सिर्फ एक विधायक के लिए, इतने लोग मारे गए. मेरा परिवार तबाह हो गया. चुनाव तो लॉकडाउन के बाद भी हो सकते थे या सभी का टीकाकरण होने के बाद भी हो सकता था."
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संध्या अपनी चुनावी ड्यूटी के लिए हलिया गई थीं, जहां मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने दो दिन पहले 14 अप्रैल को एक विशाल जनसभा की थी. इसके बाद, मुख्यमंत्री, टीआरएस पार्टी के उम्मीदवार और सैकड़ों लोग कोविड पॉजिटिव पाए गए थे.
तेलंगाना हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि राज्य में हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान COVID-19 से संक्रमित हुए लगभग 500 शिक्षकों को कोविड योद्धा के तौर पर पहचान और मुआवजा दिया जाना चाहिए. सभी संक्रमित शिक्षकों का परिवार अब महामारी के दौरान चुनाव कराने के सरकार के कदम पर सवाल उठा रहा है.
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अपनी पत्नी के साथ मतदान केंद्र पर पहुंचे मोहन राव का आरोप है कि मतदान के दिन कई कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया गया था. 30 से अधिक मतदानकर्मियों को एक ही बस में भरकर मतदान केंद्र तक पहुंचाया गया था. उन्होंने बताया कि मतदान के दौरान सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक एक छोटे से सरकारी स्कूल की कक्षा में पांच पोलिंग स्टाफ और चार पोलिंग एजेंट समेत कम से कम दस लोग बैठे थे.
उन्होंने आरोप लगाया कि बिना बैटरी वाला खराब थर्मामीटर नर्सों द्वारा लाया गया था, इसलिए किसी के तापमान की जांच नहीं की गई. मतदान के आखिरी घंटे में जब कोविड पॉजिटिव मरीज मतदान करने आए तो मतदान कर्मियों को पीपीई किट भी नहीं दिया गया.
पोलिंग ड्यूटी के दौरान संध्या का काम मतदाताओं की उंगलियों में अमिट स्याही लगाना, पहचान सत्यापित करना और 430 मतदाताओं का चिन्ह प्राप्त करना था. इसका अर्थ है कि वह प्रत्येक मतदाता के सामने कम से कम 1 से 2 मिनट तक रही.
उन्होंने कहा, "वो सोशल डिस्टेंसिंग के लिए कहती रही लेकिन यह कैसे संभव था? अगर आपको पहचान की जांच करनी है, स्याही लगानी है, 400 लोगों के हस्ताक्षर प्राप्त करना है? प्रत्येक व्यक्ति को एक से दो मिनट लगते हैं. यह एक छोटी सी कक्षा है जिसमें कोई वायु वेंटिलेशन नहीं था."
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने अब स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि राज्य की ओर से यह "आपराधिक लापरवाही" है जिसकी वजह से से कम 15 शिक्षकों की मौत हो गई और सैकड़ों चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड पॉजिटिव हो गए.
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