फाइल फोटो
नई दिल्ली:
नोटबंदी को लेकर मीडिया के कवरेज पर कई सवाल उठाये जा रहे हैं. यह कहा जा रहा है कि नोटबंदी को लेकर मीडिया का रोल बेहतर नहीं रहा और नोटबंदी से होने वाले फायदे के बारे में नहीं लिखा गया. क्या इस आरोप में कोई सच्चाई है कि मीडिया ने ऐसा किया है या मीडिया ने वह दिखाया जो सच है? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में क्या दिखाया गया उसका आकलन करना काफी मुश्किल है लेकिन चलिए कुछ ऐसे बड़े अंग्रेजी अख़बारों के शीर्षक के ऊपर नज़र डालते हैं जिनमें पिछले कुछ दिनों से नोटबंदी से जुड़ी ख़बरों ने अपनी जगह बनाई है.
8 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया तब 9 नवंबर को लगभग सभी बड़े अख़बारों का शीर्षक शानदार था. कोलकाता से छपने वाले अंग्रेजी अखबार “द टेलीग्राफ” का शीर्षक था “500 और हज़ार के नोट का उन्मूलन हो गया” इसके साथ-साथ इससे जुड़े हर पहलू को ध्यान से लिखा गया था. लोगों को क्या करना चाहिए, आगे पुराने नोटों को कैसे बदला जा सकता है, इन सब पर भी ध्यान से लिखा गया था. दिल्ली से छपने वाले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का शीर्षक था “द ग्रेट कैश क्लीन अप”. इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर सिर्फ यही खबर छाई हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस ने इस कदम को अद्वितीय बताया था. टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने शीर्षक में लिखा 'ब्लैक आउट : 500 और 1000 रुपये के नोट अब और मान्य नहीं हैं.' टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस खबर को टेरर फंडिंग के खिलाफ 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया था. दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने शीर्षक में 'द ब्लैक बक स्टॉप्स हियर' लिखा था.
10 नवंबर और 15 नवंबर के बीच नोटबंदी की वजह से आम आदमी को हो रही समस्या के बारे में लिखा गया. ATM के बहार लंबी कतार, बैंक में कैश की कमी, किसान और छोटे व्यापारियों के साथ-साथ दूसरे लोगों को हो रही दिक़्क़तों पर ज्यादा ध्यान दिया गया था. 15 नवंबर को बड़े-बड़े अख़बारों का शीर्षक कुछ अलग था. 'द टेलीग्राफ' ने कैश की कमी के वजह से हो रही समस्या को अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी, जैसे कैश की कमी की वजह से कैसे किसान बुवाई नहीं कर पा रहे हैं, नोटबंदी की वजह से कैसे छोटे-छोटे कारोबारियों का व्यापार ठप हो गया है. 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने लिखा था कि लोग बैंकों के बहार संघर्ष कर रहे हैं और नेता हाउस के अंदर युद्ध के लिए तैयार हो रहे हैं यानी विपक्ष इस निर्णय के खिलाफ संसद के अंदर सरकार को घेरने के लिए तैयारी कर रहा है. इंडियन एक्सप्रेस ने नोटबंदी से जुड़ी दूसरी खबर के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान को भी जगह दी थी जिसमें उन्होंने विपक्ष पर हमला बोला था.
प्रधानमंत्री ने कहा था, 'कांग्रेस वालों ने तो अपने ख़ुशी के लिए 19 महीने देश को जेल-खाना बना दिया था. मैंने तो ग़रीबों की खुशी के लिए 50 दिन थोड़ी सी तकलीफ़ झेलने की प्रार्थना की है.' प्रधानमंत्री के द्वारा इस्तेमाल कड़क चाय वाली बातों को लगभग सभी अख़बारों में जगह दी गई थी. प्रधानमंत्री ने कहा था बोले कि मेरी कड़क चाय ग़रीबों को पसंद आती है लेकिन अमीर का मुंह बन जाता है. हिंदुस्तान टाइम्स ने कैश निकालने के नियम को लेकर जो बदलाव हुआ था उसे अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी, जिसमें यह बताया गया था कि करंट अकाउंट धारक एक हफ्ते में 50000 हज़ार रुपया तीन महीने तक उठा सकते हैं और एटीएम से पैसा उठाने से कोई चार्ज नहीं लगेगा. फिर 16 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ और संसद के अंदर नोटबंदी को लेकर रोज़ हंगामा होना शुरू हो गया. इस खबर को भी अख़बारों में जगह मिली. इसके साथ-साथ नोटबंदी को लेकर आम जनता को जो परेशानियां हो रही थीं उस पर भी अख़बारों ने पूरी डिटेल के साथ जगह दी. अख़बारों की इस रिपोर्टिंग को संज्ञान में लेते हुए लोगों की समस्या को दूर करने के लिए सरकार की तरफ से भी कई कदम भी उठाये गए.
25 नवंबर को बड़े अंग्रेज़ी अख़बारों में मनमोहन सिंह छाए हुए थे. 24 नवंबर को मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में सरकार के नोटबंदी के निर्णय पर कई सवाल उठाए थे. 'द टेलीग्राफ' ने अपने पहले पन्ने पर मनमोहन सिंह की आलोचना को जगह देते हुए “मनमोहन का मिसाइल” लिखा था जबकि टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने नोटबंदी पर सरकार के द्वारा उठाये गए कुछ बदलाव को प्रमुखता दी थी. 26 नवंबर के इंडियन एक्सप्रेस में विपक्ष को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा की गई आलोचना को प्रमुखता दी गई थी जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि विपक्ष इसलिए नाराज़ है क्योंकि उनको अपने पैसे को ठिकाने लगाने के लिए समय नहीं मिला. 27 नवंबर को टेलीग्राफ ने फिदेल कास्त्रो की मौत की खबर काफी विस्तार से छापी थी. 28 नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस ने पंजाब जेल से भागे खालिस्तान मिलिटेंट को अपने पहले पन्ने पर जगह देने के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने भारत बंद को लेकर विपक्ष के ऊपर जो हमला बोला था उसे भी जगह दी थी. 29 नवंबर को “द टेलीग्राफ” ने कोलकाता में हुए भारत बंद की विफलता को अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी.
इस तरह पिछले कुछ दिनों में नोटबंदी को लेकर उन सभी खबरों को जगह मिली जो मिलनी चाहिए थी. सरकार की तारीफ के साथ-साथ आलोचना भी हुई. जो भी आलोचना हुई वह सरकार के नोटबंदी निर्णय के खिलाफ नहीं थी बल्कि नोटबंदी से लोगों को हो रही परेशानियों पर थी. यानी सवाल सरकार की रणनीतियों पर उठाया गया था. इस आलोचना की वजह से सरकार को अपनी गलती सुधारने का मौक़ा भी मिला और लोगों की समस्या दूर करने के लिए सरकार ने नए-नए कदम भी उठाये.
8 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया तब 9 नवंबर को लगभग सभी बड़े अख़बारों का शीर्षक शानदार था. कोलकाता से छपने वाले अंग्रेजी अखबार “द टेलीग्राफ” का शीर्षक था “500 और हज़ार के नोट का उन्मूलन हो गया” इसके साथ-साथ इससे जुड़े हर पहलू को ध्यान से लिखा गया था. लोगों को क्या करना चाहिए, आगे पुराने नोटों को कैसे बदला जा सकता है, इन सब पर भी ध्यान से लिखा गया था. दिल्ली से छपने वाले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का शीर्षक था “द ग्रेट कैश क्लीन अप”. इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर सिर्फ यही खबर छाई हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस ने इस कदम को अद्वितीय बताया था. टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने शीर्षक में लिखा 'ब्लैक आउट : 500 और 1000 रुपये के नोट अब और मान्य नहीं हैं.' टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस खबर को टेरर फंडिंग के खिलाफ 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया था. दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने शीर्षक में 'द ब्लैक बक स्टॉप्स हियर' लिखा था.
10 नवंबर और 15 नवंबर के बीच नोटबंदी की वजह से आम आदमी को हो रही समस्या के बारे में लिखा गया. ATM के बहार लंबी कतार, बैंक में कैश की कमी, किसान और छोटे व्यापारियों के साथ-साथ दूसरे लोगों को हो रही दिक़्क़तों पर ज्यादा ध्यान दिया गया था. 15 नवंबर को बड़े-बड़े अख़बारों का शीर्षक कुछ अलग था. 'द टेलीग्राफ' ने कैश की कमी के वजह से हो रही समस्या को अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी, जैसे कैश की कमी की वजह से कैसे किसान बुवाई नहीं कर पा रहे हैं, नोटबंदी की वजह से कैसे छोटे-छोटे कारोबारियों का व्यापार ठप हो गया है. 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने लिखा था कि लोग बैंकों के बहार संघर्ष कर रहे हैं और नेता हाउस के अंदर युद्ध के लिए तैयार हो रहे हैं यानी विपक्ष इस निर्णय के खिलाफ संसद के अंदर सरकार को घेरने के लिए तैयारी कर रहा है. इंडियन एक्सप्रेस ने नोटबंदी से जुड़ी दूसरी खबर के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान को भी जगह दी थी जिसमें उन्होंने विपक्ष पर हमला बोला था.
प्रधानमंत्री ने कहा था, 'कांग्रेस वालों ने तो अपने ख़ुशी के लिए 19 महीने देश को जेल-खाना बना दिया था. मैंने तो ग़रीबों की खुशी के लिए 50 दिन थोड़ी सी तकलीफ़ झेलने की प्रार्थना की है.' प्रधानमंत्री के द्वारा इस्तेमाल कड़क चाय वाली बातों को लगभग सभी अख़बारों में जगह दी गई थी. प्रधानमंत्री ने कहा था बोले कि मेरी कड़क चाय ग़रीबों को पसंद आती है लेकिन अमीर का मुंह बन जाता है. हिंदुस्तान टाइम्स ने कैश निकालने के नियम को लेकर जो बदलाव हुआ था उसे अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी, जिसमें यह बताया गया था कि करंट अकाउंट धारक एक हफ्ते में 50000 हज़ार रुपया तीन महीने तक उठा सकते हैं और एटीएम से पैसा उठाने से कोई चार्ज नहीं लगेगा. फिर 16 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ और संसद के अंदर नोटबंदी को लेकर रोज़ हंगामा होना शुरू हो गया. इस खबर को भी अख़बारों में जगह मिली. इसके साथ-साथ नोटबंदी को लेकर आम जनता को जो परेशानियां हो रही थीं उस पर भी अख़बारों ने पूरी डिटेल के साथ जगह दी. अख़बारों की इस रिपोर्टिंग को संज्ञान में लेते हुए लोगों की समस्या को दूर करने के लिए सरकार की तरफ से भी कई कदम भी उठाये गए.
25 नवंबर को बड़े अंग्रेज़ी अख़बारों में मनमोहन सिंह छाए हुए थे. 24 नवंबर को मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में सरकार के नोटबंदी के निर्णय पर कई सवाल उठाए थे. 'द टेलीग्राफ' ने अपने पहले पन्ने पर मनमोहन सिंह की आलोचना को जगह देते हुए “मनमोहन का मिसाइल” लिखा था जबकि टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने नोटबंदी पर सरकार के द्वारा उठाये गए कुछ बदलाव को प्रमुखता दी थी. 26 नवंबर के इंडियन एक्सप्रेस में विपक्ष को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा की गई आलोचना को प्रमुखता दी गई थी जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि विपक्ष इसलिए नाराज़ है क्योंकि उनको अपने पैसे को ठिकाने लगाने के लिए समय नहीं मिला. 27 नवंबर को टेलीग्राफ ने फिदेल कास्त्रो की मौत की खबर काफी विस्तार से छापी थी. 28 नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस ने पंजाब जेल से भागे खालिस्तान मिलिटेंट को अपने पहले पन्ने पर जगह देने के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने भारत बंद को लेकर विपक्ष के ऊपर जो हमला बोला था उसे भी जगह दी थी. 29 नवंबर को “द टेलीग्राफ” ने कोलकाता में हुए भारत बंद की विफलता को अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी.
इस तरह पिछले कुछ दिनों में नोटबंदी को लेकर उन सभी खबरों को जगह मिली जो मिलनी चाहिए थी. सरकार की तारीफ के साथ-साथ आलोचना भी हुई. जो भी आलोचना हुई वह सरकार के नोटबंदी निर्णय के खिलाफ नहीं थी बल्कि नोटबंदी से लोगों को हो रही परेशानियों पर थी. यानी सवाल सरकार की रणनीतियों पर उठाया गया था. इस आलोचना की वजह से सरकार को अपनी गलती सुधारने का मौक़ा भी मिला और लोगों की समस्या दूर करने के लिए सरकार ने नए-नए कदम भी उठाये.
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