दिल्ली में आए दिन भरभराकर इमारतें गिरती हैं और हर साल दर्जर्नों लोग हादसों के शिकार हो जाते हैं। कई घायल हाते हैं, तो कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। बीते सालों हुए ललिता पार्क, चांदनी चौक, चांदनी महल, बल्ली मारान के हादसे हम नहीं भूल सकते हैं।
ललिता पार्क में तो पलक झपकते 70 लोग मौत मुंह में समा गए थे। बीते हफ़्ते उत्तरी दिल्ली के इंद्रलोक में भी ऐसे ही एक हादसे में 10 लोग मारे गए। सवाल यह उठता है कि इन हादसों के लिए ज़िम्मेदार कौन है।
जवाब एमसीडी के तीन साल पहले के दस्तावेजों में मिल जाएगा। जब एमसीडी ने खुद माना कि भवन निर्माण विभाग में तैनात अधिकतर इंजीनियर दागी हैं। आरटीआई कार्यकर्ता आरएच बंसल बताते हैं कि 3 साल पहले एमसीडी ने एक आरटीआई के जबाब में बताया कि एमसीडी में करीब 235 लोगों के खिलाफ अलग-अलग तरह के मामले चल रहे हैं।
एनडीटीवी ने जब पता लगाने कि कोशिश की तो पता चला कि हालात आज भी वही हैं। एमसीडी के मुताबिक उसके अलग−अलग विभागों में करीब 700 इंजीनियर तैनात हैं, जिनमें से करीब 250 इंजीनियरों पर अलग-अलग केस चल रहे हैं। इनमें अधिकतर मामले रिश्वत लेने के हैं। अवैध मकानों को बनाने की इजाज़त देने और संरक्षण देने के लिए ये रिश्वत लेने का आरोप है।
आरटीआई कार्यकर्ता आरएच बंसल ने इसकी शिकायत सीवीसी से करते हुए कहा है कि ऐसे इंजीनियरों को संवेदनशील जगहों से हटाया जाए।
सीवीसी ने इस पर एमसीडी के विजिलेंस विभाग से रिपोर्ट मांगी, लेकिन आज तक जवाब नहीं मिला। आरएच बंसल का कहना है कि एमसीडी इस मामले में चुप्पी साधे बैठी है। अगर यही हाल रहा तो हादसे कैसे रुकेगें।
इस बीच, एमसीडी इस मसले पर सख़्त कदम उठाने की बात कर रही है। स्टैंडिंग कमेटी उत्तरी नगर निगम के चेयरमैन मोहन भारद्वाज का कहना है कि वह इस मामले की जांच कराएंगे कि आखिर सीवीसी को जबाब क्यों नहीं दिया गया।
हाल ही में एमसीडी ने एक सर्वे में पाया कि अवैध और कमज़ोर इमारतों के लिहाज़ से सबसे संवेदनशील उत्तरी नगर निगम में 144 इमारतें खतरनाक हैं, लेकिन इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक यह है कि कार्रवाई का ज़िम्मा कई दाग़ी इंजीनियरों के ही कंधों पर है।
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