जयपुर : राजस्थान में स्वाइन फ्लू से हर रोज़ 8 लोगों की मौत हो रही है। ये आंकड़े हैं फ़रवरी महीने के लिए। जनवरी में स्वाइन फ्लू के 180 केसेस सामने आए थे और 39 मौतें हुई थी, लेकिन एकदम से फ़रवरी के महीने में इसमें भारी उछाल आया है। सिर्फ फ़रवरी में 144 मौतें हुईं हैं और 3000 पॉजिटिव केस सामने आए हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर रोज़ 4 से लेकर 14 मौतें हो रही हैं और स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है, राजस्थान के अस्पतालों में आज भी 63 ऐसे मरीज़ हैं जो ICU में भर्ती हैं और इनमें से 27 वेंटिलेटर पर हैं।
सबसे ज़्यादा मौतें हो रही हैं 26 से लेकर 50 साल के लोगों में, इनमें 100 से ज़्यादा मौतें दर्ज हुई हैं, जबकि राहत की बात यह है कि बच्चों में स्वाइन फ्लू इस बार कम दिखाई दे रहा है।
लेकिन गर्भवती महिलाएं हाई रिस्क ग्रुप में हैं, जैसे 23 साल की संतोष, 8 महीने से गर्भवती है, 5 दिन से सर्दी जुकाम और बुखार है, प्राइवेट क्लिनिक में इलाज करवा रही थीं, जब कोई असर नहीं हुआ तो फिर सरकारी अस्पताल पहुंची है।
इलाज के लिए देर से पहुंचने से मरीज की जान को तो खतरा है ही, लेकिन राजस्थान में सुपर स्पेशलिटी मेडिकल केयर की कमी का भी एहसास हो रहा है।
राजस्थान में सुपर स्पेशलिटी ICU सिर्फ 6 बड़े मेडिकल कॉलेजों में हैं, यानी 5 से 6 ज़िलों के बीच एक बड़ा अस्पताल।
जिला चिकित्सालय में स्वाइन फ्लू का उपचार तो हो सकता है लेकिन यहां सभी सुविधा वाले ICU नहीं हैं। यहां तक कि इनके पास स्वाइन फ्लू जांच करने की सुविधा भी नहीं है। जिला अस्पताल में खून के नमूने लिए जाते हैं और फिर इन्हें बड़े अस्पतल में जांच के लिए भेजा जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार भी खुद मानती है कि स्वाइन फ्लू जैसी तेज़ी से फैलती बीमारी के सामने चिकित्सा व्यवस्था चरमरा रही है।
'यहां पूरे राजस्थान में एक इन्फेक्शियस डिजीजेज का अस्पताल होना चाहिए जो मेडिकल कॉलेजों से कनेक्टेड हो, साथ ही गंभीर मरीजों के लिए अलग से इंतजाम होने चाहिए, ये चीज़ें क्रिटिकल मरीज़ों को बचा सकती हैं।' ऐसा कहना था डॉ. अशोक पांगरिया का जो राजस्थान के स्वाइन फ्लू टास्क फ़ोर्स के अध्यक्ष हैं।
ज़ाहिर है स्वाइन फ्लू के प्रकोप ने राजस्थान में सुपर स्पेशलिटी और ICU की पोल तो खोल ही दी है, लेकिन साथ-साथ इस बात का खुलासा भी किया है कि सरकार ने स्वाइन फ्लू को पहले ही रोकने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए थे।
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