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Surya Grahan: साल का आखिरी सूर्य ग्रहण आज, कितने बजे लगेगा, कितनी देर रहेगा, कहां-कहां दिखेगा? जानिए हर एक बात

Surya Grahan Today: हिंदू धर्म में ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है. मान्यता है कि ग्रहण के दौरान वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है.

Surya Grahan: साल का आखिरी सूर्य ग्रहण आज, कितने बजे लगेगा, कितनी देर रहेगा, कहां-कहां दिखेगा? जानिए हर एक बात
  • आज साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लगने वाला है. ये आंशिक सूर्य ग्रहण 21 सितंबर रात 10:39 बजे शुरू होगा.
  • ये ग्रहण ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अंटार्कटिका में देखा जा सकेगा, भारत में रात होने के चलते ये नहीं दिखेगा.
  • सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन करने और नए कार्य की मनाही रहती है. इस दौरान तर्पण करना शुभ माना जाता है.
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Surya Grahan Today: आज 21 सितंबर 2025 को साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लगेगा. यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा. भारतीय समयानुसार यह ग्रहण रात 10 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगा. मध्यकाल रात 1 बजकर 11 मिनट पर आएगा और समाप्ति सुबह 3 बजकर 23 मिनट पर होगी. हालांकि, यह खगोलीय घटना भारत में दिखाई नहीं देगी, क्योंकि उस समय भारत में रात होगी.

कहां-कहां दिखाई देगा सूर्यग्रहण

यह ग्रहण मुख्य रूप से दक्षिणी गोलार्ध के क्षेत्रों जैसे ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अंटार्कटिका और कुछ प्रशांत द्वीपों में दिखाई देगा. चूंकि भारत में ग्रहण दिखाई नहीं देगा, इसलिए सूतक नहीं लगेगा, जो आमतौर पर ग्रहण से 12 घंटे पहले लगता है.

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ग्रहण के दौरान क्‍या करें, क्‍या न करें?

धार्मिक दृष्टि से सूर्य ग्रहण को अशुभ माना जाता है. इस समय भोजन नहीं करना, नए कार्य की शुरुआत न करना, पूजा और ध्यान करना शुभ माना जाता है. ग्रहण के दौरान तुलसी, जल, अक्षत और अन्य पवित्र वस्तुओं से तर्पण करना अत्यंत लाभकारी होता है.

सूर्यग्रहण का किन राशियों पर कैसा प्रभाव?

ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य ग्रहण का प्रभाव विभिन्न राशियों पर अलग-अलग पड़ता है. इस ग्रहण का प्रभाव विशेष रूप से सिंह, कन्या और मीन राशियों पर पड़ सकता है, जिनके लिए स्वास्थ्य और वित्तीय मामलों में सतर्क रहना आवश्यक है. अन्य राशियों के जातकों को भी ग्रहण के दौरान अनावश्यक कार्यों से बचना चाहिए.

क्‍यों लगता है सूर्यग्रहण?

सूर्य ग्रहण एक अद्भुत खगोलीय घटना है. सूर्य ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है और सूर्य का कुछ या पूरा हिस्सा ढक जाता है. वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से सूर्य ग्रहण तब होता है, जब राहु और केतु सूर्य को अपना ग्रास बना लेते हैं, जिससे कुछ समय के लिए सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता.

तीन तरह के होते हैं सूर्य ग्रहण 

  • पहला है पूर्ण सूर्य ग्रहण, जिसमें चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक देता है और दिन के समय कुछ समय के लिए अंधेरा छा जाता है.
  • दूसरा है आंशिक सूर्य ग्रहण, जिसमें चंद्रमा केवल सूर्य के कुछ हिस्से को ढकता है.
  • तीसरा है वृत्ताकार सूर्य ग्रहण, जिसमें चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढकने में छोटा रह जाता है और सूर्य के किनारों पर चमक दिखाई देती है.
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हिंदू धर्म में ग्रहण को नहीं माना जाता शुभ 

हिंदू धर्म में ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है. मान्यता है कि ग्रहण के दौरान वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है, जिसके चलते इस समय कई धार्मिक और सामाजिक कार्य वर्जित होते हैं. सूतक काल लगते ही सभी मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और ग्रहण समाप्त होने के बाद गंगाजल से शुद्धिकरण कर पुनः पूजा आरंभ होती है.  

ग्रहण में भी खुले रहते हैं इन मंदिरों के कपाट 

देश में कुछ ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो ग्रहण काल में भी खुले रहते हैं. इन मंदिरों से जुड़ी मान्यताएं और कथाएं इन्हें और भी विशेष बनाती हैं.मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर ग्रहण काल में भी भक्तों के लिए खुला रहता है. मान्यता है कि कालों के काल महाकाल स्वयं मृत्यु और काल के स्वामी हैं. ऐसे में उन पर ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. हालांकि इस दौरान शिवलिंग को स्पर्श करना मना होता है और आरती का समय बदला जाता है, लेकिन भक्तों को दर्शन की अनुमति रहती है.

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राजस्थान के बीकानेर स्थित लक्ष्मीनाथ मंदिर भी ग्रहण काल में खुला रहता है. कथा है कि एक बार ग्रहण के दौरान भगवान को न भोग लगाया गया और न आरती हुई. तब भगवान ने एक हलवाई को स्वप्न में आकर भूख की व्यथा सुनाई. तभी से इस मंदिर में ग्रहण के दौरान भी कपाट खुले रखने की परंपरा शुरू हुई.

राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर भी ग्रहण काल में बंद नहीं होता. मान्यता है कि जिस प्रकार भगवान श्रीनाथ ने गिरिराज पर्वत उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था, वैसे ही वे भक्तों को ग्रहण के दुष्प्रभाव से सुरक्षित रखते हैं. इस दौरान केवल दर्शन होते हैं, बाकी पूजा-विधि टाल दी जाती है.

केरल के कोट्टायम जिले में स्थित थिरुवरप्पु श्रीकृष्ण मंदिर की विशेष मान्यता है. यहां भगवान को समय पर भोग न लगाने पर मूर्ति क्षीण होने लगती है. एक बार सूर्य ग्रहण के दौरान कपाट बंद कर दिए गए तो भगवान की कमरपेटी भूख के कारण गिर गई. तब से यहां सूतक काल लागू नहीं होता और मंदिर ग्रहण के समय भी खुला रहता है.

दिल्‍ली में कालकाजी, बिहार में विष्‍णुपद मंदिर 

दिल्ली का प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालकाजी मंदिर ग्रहण काल में भी खुला रहता है. मान्यता है कि मां कालका के अधीन सभी ग्रह और नक्षत्र हैं, इसलिए ग्रहण का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता. यही कारण है कि दिल्ली में जहां अन्य सभी मंदिर बंद हो जाते हैं, वहीं कालकाजी मंदिर दर्शन के लिए खुला रहता है.

देवभूमि उत्तराखंड का कल्पेश्वर तीर्थ भी ग्रहण काल में बंद नहीं होता. मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने अपनी जटाओं से गंगा के प्रवाह को नियंत्रित किया था. इसलिए यहां ग्रहण काल में भी श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खुले रहते हैं.

बिहार के गया में स्थित विष्णुपद मंदिर भगवान विष्णु के चरण चिन्हों पर बना है. यहां पितरों के तर्पण का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस मंदिर में ग्रहण काल में भी कपाट बंद नहीं होते. भक्त इस समय भी भगवान के चरणों के दर्शन कर सकते हैं.

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