वाघा बॉर्डर:
पाकिस्तान की जेल में करीब 31 साल काटने के बाद भारतीय कैदी सुरजीत सिंह गुरुवार को आजाद हो गए और सीमा पार कर अपने देश में लौट आए, जहां उनका परिवार से भावपूर्ण मिलन हुआ।
69 साल के सुरजीत सिंह को गुरुवार सुबह लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा किया गया और वह वहां से वाघा सीमा पहुंचे, जहां भारत में प्रवेश करने पर उनके परिवार के सदस्यों और गांववालों ने फूलमालाएं पहनाकर और शाल ओढ़ाकर स्वागत किया।
सुरजीत ने संवाददाताओं से कहा, आज 30 साल बाद मैं अपने बच्चों से मिल रहा हूं। मैं बहुत खुश हूं। सुरजीत ने कहा कि उन्हें पाकिस्तान की जेल में कोई कठिनाई नहीं हुई और उन्हें आवश्यक चीजें जैसे खाना और कपड़ा मिलता था।
उन्होंने सरबजीत सिंह का उल्लेख करते हुए कहा कि वह ठीक हैं। वह उनसे सप्ताह में एक बार मिल पाते थे। यह पूछे जाने पर कि क्या सरबजीत सिंह ने अपने परिवार वालों को कोई संदेश भेजा है, इस पर सुरजीत ने कहा, नहीं।
1980 के दशक में पाकिस्तान में जासूसी करने के आरोप में पकड़े गए सिंह ने आजीवन कारावास की सजा काटी है। उन्हें 1985 में पाकिस्तानी सेना कानून के तहत मौत की सजा दी गई थी। उनकी मौत की सजा को 1989 में पाक राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया था।
पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी सिंह के साथ वाघा बॉर्डर तक आए, जहां उन्हें भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया गया। उनकी रिहाई ऐसे समय पर हुई है, जब मंगलवार को ऐसी खबरें आई थी कि पाकिस्तान सरबजीत सिंह को रिहा करने वाला है। लेकिन बाद में पाकिस्तान ने स्पष्ट किया कि प्रशासन ने सुरजीत को रिहा करने के लिए कहा है, न कि सरबजीत को।
सफेद कुर्ता-पायजामा और काली पगड़ी पहने सुरजीत सिंह का भारतीय अधिकारियों ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। भारतीय सरजमीं पर पहुंचने पर उन्होंने पत्नी, हरबंस कौर, बेटे कुलविंदर सिंह समेत अपने परिवार के सभी सदस्यों और अपने गांव फिड्डे के लोगों को गले लगाया।
उन्होंने कहा, मैं अपने बच्चों से मिलने के लिए बेताब था और मैं फिरोजपुर जिले में स्थित अपने गांव जाने से पहले स्वर्ण मंदिर जाने का इच्छुक हूं। मैं रिहा होकर बहुत खुश हूं, क्योंकि मैं तीन दशक के बाद अपने परिवार के सदस्यों से मिल सका।
69 साल के सुरजीत सिंह को गुरुवार सुबह लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा किया गया और वह वहां से वाघा सीमा पहुंचे, जहां भारत में प्रवेश करने पर उनके परिवार के सदस्यों और गांववालों ने फूलमालाएं पहनाकर और शाल ओढ़ाकर स्वागत किया।
सुरजीत ने संवाददाताओं से कहा, आज 30 साल बाद मैं अपने बच्चों से मिल रहा हूं। मैं बहुत खुश हूं। सुरजीत ने कहा कि उन्हें पाकिस्तान की जेल में कोई कठिनाई नहीं हुई और उन्हें आवश्यक चीजें जैसे खाना और कपड़ा मिलता था।
उन्होंने सरबजीत सिंह का उल्लेख करते हुए कहा कि वह ठीक हैं। वह उनसे सप्ताह में एक बार मिल पाते थे। यह पूछे जाने पर कि क्या सरबजीत सिंह ने अपने परिवार वालों को कोई संदेश भेजा है, इस पर सुरजीत ने कहा, नहीं।
1980 के दशक में पाकिस्तान में जासूसी करने के आरोप में पकड़े गए सिंह ने आजीवन कारावास की सजा काटी है। उन्हें 1985 में पाकिस्तानी सेना कानून के तहत मौत की सजा दी गई थी। उनकी मौत की सजा को 1989 में पाक राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया था।
पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी सिंह के साथ वाघा बॉर्डर तक आए, जहां उन्हें भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया गया। उनकी रिहाई ऐसे समय पर हुई है, जब मंगलवार को ऐसी खबरें आई थी कि पाकिस्तान सरबजीत सिंह को रिहा करने वाला है। लेकिन बाद में पाकिस्तान ने स्पष्ट किया कि प्रशासन ने सुरजीत को रिहा करने के लिए कहा है, न कि सरबजीत को।
सफेद कुर्ता-पायजामा और काली पगड़ी पहने सुरजीत सिंह का भारतीय अधिकारियों ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। भारतीय सरजमीं पर पहुंचने पर उन्होंने पत्नी, हरबंस कौर, बेटे कुलविंदर सिंह समेत अपने परिवार के सभी सदस्यों और अपने गांव फिड्डे के लोगों को गले लगाया।
उन्होंने कहा, मैं अपने बच्चों से मिलने के लिए बेताब था और मैं फिरोजपुर जिले में स्थित अपने गांव जाने से पहले स्वर्ण मंदिर जाने का इच्छुक हूं। मैं रिहा होकर बहुत खुश हूं, क्योंकि मैं तीन दशक के बाद अपने परिवार के सदस्यों से मिल सका।
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