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सड़क पर हत्या, कोर्ट में बरी, कानून का राज कमज़ोर...गैंगस्टर राज पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली-NCR हरियाणा में क्या हो रहा है? फरीदाबाद, गुड़गांव में देखिए क्या हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि गवाह आपकी आंख और कान है. आप उनकी सुरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं?

सड़क पर हत्या, कोर्ट में बरी, कानून का राज कमज़ोर...गैंगस्टर राज पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में दिनदहाड़े हो रही हत्याओं, गैंगस्टर गतिविधियों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है
  • गवाहों की सुरक्षा, स्पीडी ट्रायल और विशेष कोर्ट के गठन पर जोर देते हुए केंद्र सरकार को पक्षकार बनाया है
  • आरोपी गैंगस्टर महेश खत्री की जमानत याचिका खारिज करते हुए बताया कि उस पर 55 आपराधिक मामले दर्ज हैं
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नई दिल्ली:

दिल्ली-एनसीआर में दिनदहाड़े हो रहे अपराधों और गैंगस्टर गतिविधियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि दिनदहाड़े सड़क पर हत्याएं हो रही हैं और सबूतों की कमी की वजह से आरोपी बेख़ौफ़ छूट जाते हैं. आम आदमी की नज़र में कानून का राज कमजोर होता जा रहा है. गैंगस्टरों के प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं होनी चाहिए, समाज को इनसे छुटकारा पाना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर के हालत पर जाहिर की चिंता

NCR के हालात पर चिंता जाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के बाहर फरीदाबाद, गुड़गांव जैसे इलाकों में क्या हो रहा है, देखिए. गवाह आपकी आंख और कान हैं, आप उनकी सुरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं? स्पीडी ट्रायल और विशेष अदालतों की जरूरत. साथ ही कोर्ट ने गैंगस्टरों के खिलाफ तेज़ सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट गठित करने और संरचना विकसित करने की वकालत की. केंद्र सरकार को भी इस मामले में पक्षकार बनाया गया है. अब इस मामले में अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी.

जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी

कोर्ट की यह टिप्पणियां गैंगस्टर महेश खत्री उर्फ भोली की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आईं. आरोपी ने ट्रायल में देरी का हवाला देते हुए जमानत मांगी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने बताया कि आरोपी पर 55 आपराधिक मामले दर्ज हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 288 मामले लंबित हैं, जिनमें से 180 में आरोप तय होना बाकी है.
25% मामलों में अभियोजन साक्ष्य की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन आरोप तय करने और ट्रायल शुरू होने में 3-4 साल का अंतर है.

कोर्ट का सुझाव

  • हाईकोर्ट विशेष अदालतें गठित करे.
  • केंद्र और दिल्ली सरकार फास्ट ट्रैक अदालतों की व्यवस्था करें.
  • न्यायिक अधिकारियों के अतिरिक्त पद सृजित किए जाएं.
  • बुनियादी ढांचा और सचिवीय सहयोग उपलब्ध कराया जाए.
  • वकीलों की उपस्थिति सुनिश्चित करने, सुनवाई टालने की सीमा तय करने और आरोप तय करने की समय-सीमा जैसे निर्देश भी समय पर जारी किए जाएं.

जस्टिस बागची और सूर्यकांत की टिप्पणियां

हर मुकदमे में देरी की जाती है ताकि गवाहों को प्रभावित किया जा सके और आरोपी बरी हो जाए. यही गेम प्लान होता है.
NIA के मामलों में भी हमने आपत्तियां जताई हैं. आंध्र प्रदेश की सराहना करनी चाहिए, जहां विशेष अदालतें बनाकर गंभीर मामलों की सुनवाई की जा रही है.

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