प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
फेसबुक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सोशल मीडिया की जवाबदेही पर अहम टिप्पणियां की हैं. SC ने दिल्ली विधानसभा की समिति के फेसबुक को समन को रद्द करने से इनकार किया. अदालत ने दोटूक लहजे में कहा कि फेसबुक को दिल्ली विधानसभा की समिति के सामने पेश होना होगा, लेकिन समिति उसे कानून- व्यवस्था और कानूनी कार्यवाही के मुद्दों पर जवाब नहीं मांगेगी जो केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है.
फेसबुक मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 8 कमेंट
- तकनीकी युग ने डिजिटल प्लेटफॉर्म का निर्माण किया है. ये प्लेटफार्म रेलवे प्लेटफॉर्म जैसे नहीं हैं जहां ट्रेनों के आगमन और प्रस्थान को नियंत्रित किया जाता है.ये डिजिटल प्लेटफॉर्म कभी-कभी अनियंत्रित हो सकते हैं और चुनौतियां पेश कर सकते हैं.
- फेसबुक जैसी संस्थाओं को उन लोगों के प्रति जवाबदेह रहना होगा जो उन्हें ऐसी शक्ति सौंपते हैं.
- जहां फेसबुक ने आवाजहीनों को आवाज देकर और राज्य की सेंसरशिप से बचने का एक साधन प्रदान करके बोलने की आजादी को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हम इस तथ्य को नहीं भूल सकते हैं कि यह एक साथ हानिकारक संदेशों, आवाजों और विचारधाराओं के लिए एक मंच बन गया है.
- उदार लोकतंत्र का सफल संचालन तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब नागरिक सूचित फैसला लेने में सक्षम हों.
- फेसबुक एक " आसान दृष्टिकोण" नहीं ले सकता है कि वह केवल तीसरे पक्ष की सामग्री पोस्ट करने वाला एक मंच है जिसकी जानकारी उत्पन्न करने, नियंत्रित करने या संशोधित करने में कोई भूमिका नहीं है.
- हमारे देश की विशाल आबादी इसे फेसबुक के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य बनाती है. हम संभवतः स्थानीय संस्कृति, भोजन, कपड़े, भाषा, धर्म, परंपराओं में पूरे यूरोप की तुलना में अधिक विविध हैं और इसका इतिहास है जिसे अब आमतौर पर अनेकता में एकता कहा जाता है.इसे किसी भी कीमत पर या किसी भी तरह की स्वतंत्रता के तहत फेसबुक जैसे दिग्गज द्वारा अज्ञानता या किसी भी महत्वपूर्ण भूमिका की कमी का दावा करते हुए बाधित नहीं किया जा सकता.
- फेसबुक एक ऐसा मंच है जहां ऐसे राजनीतिक मतभेद परिलक्षित होते हैं.वे इस मुद्दे से हाथ नहीं धो सकते क्योंकि यह उनका काम है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली विधानसभा की समिति को केंद्रीय कानूनों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किए बिना शांति और सद्भाव से संबंधित किसी भी मामले पर जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है.
- SC ने अपने फैसले में कहा, 'हमें ये कहने में कोई कठिनाई नहीं है कि हम याचिकाकर्ता के विशेषाधिकार भाग के संबंध में तर्क से प्रभावित नहीं हैं. समिति के समक्ष पेश नहीं होने के विकल्प पर विवाद नहीं हो सकता. याचिकाकर्ता की याचिका अपरिपक्व है क्योंकि समन जारी करने के अलावा और कुछ नहीं हुआ है.