
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन दुर्घटना से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि विवाहित पुत्री तभी आश्रित मानी जाएगी, जब वह यह सिद्ध कर सके कि वह मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर थी. यह फैसला उन मामलों के लिए नजीर बन सकता है जिनमें आश्रित मुआवजे को लेकर विवाद देखने को मिलता है.
यह मामला राजस्थान का है, जहां 55 वर्षीय महिला की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. मृतका की मां और विवाहित बेटी ने मुआवजे की मांग की थी. मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल ने दोनों को आश्रित मानते हुए कुल 15,97,000 रुपये का मुआवजा तय किया था. बाद में हाई कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर 19,22,356 रुपये कर दिया. हालांकि बीमा कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस पर विचार करते हुए कहा कि भारतीय सामाजिक परंपरा में यह सामान्य है कि बुजुर्ग माता-पिता अपने बेटों या विवाहित बेटियों पर आश्रित होते हैं. लेकिन अगर कोई विवाहित बेटी मुआवजे की दावेदार बनना चाहती है तो उसे यह साबित करना होगा कि वह माता-पिता की देखभाल कर रही थी और उन पर आर्थिक रूप से आश्रित थी. इसी तरह, किसी मृतक महिला की मां तभी मुआवजे की हकदार बन सकती है जब वह यह सिद्ध करे कि वह अपनी बेटी की आमदनी पर निर्भर थी.
कोर्ट ने कहा कि जिस तरह बच्चों की परवरिश माता-पिता का कर्तव्य होता है, उसी प्रकार बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करना भी बच्चों का नैतिक और सामाजिक दायित्व है, लेकिन यह आश्रित मुआवजे का स्वतः आधार नहीं हो सकता. कोर्ट ने इस मामले में मृतका की मां को मुआवजा देने का आदेश बरकरार रखा, लेकिन विवाहित बेटी का दावा खारिज कर दिया.
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