उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मकान खरीदारों के पक्ष में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. न्यायालय ने कहा कि रीयल एस्टेट कंपनियों से जुड़े मामलों को देखने के लिये 2016 में बना विशेष कानून रेरा के बावजूद मकान खरीदार घरों को सौंपने में देरी को लेकर संबंधित कंपनी के खिलाफ पैसा वापसी और क्षतिपूर्ति जैसे मामलों को लेकर उपभोक्ता अदालत में जा सकते हैं. शीर्ष अदालत ने रीयल एस्टेट कंपनी मेसर्स इम्पेरिया स्ट्रक्चरर्स लि. की इस दलील को खारिज कर दिया कि रीयल एस्टेट (नियमन और विकास) कानून (रेरा) के अमल में आने के बाद निर्माण और परियोजना के पूरा होने से जुड़े सभी मामलों का निपटान इसी कानून के तहत होना है और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) को इससे जुड़ी उपभोक्ताओं की शिकायतों पर विचार नहीं करना चाहिए.
न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायाधीश विनीत सरन की पीठ ने विभिन्न फैसलों का उल्लेख किया और कहा कि हालांकि एनसीडीआरसी के समक्ष कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही है, लेकिन दिवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत आयोग दिवानी अदालत नहीं है.
न्यायाधीश ललित ने 45 पृष्ठ के आदेश में कहा, ‘‘इसमें दिवानी अदालत के सभी गुण हो सकते हैं, लेकिन फिर भी इसे दिवानी अदालत नहीं कहा जा सकता है...लेकिन रेरा कानून की धारा 79 उपभोक्ता आयोग या मंच को उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रावधानों के तहत शिकायतों की सुनवाई से प्रतिबंधित नहीं करती.''
न्यायालय ने मामले का निपटान करते हुए कहा कि 2016 के विशेष कानून के तहत मकान खरीदारों के हितों की रक्षा की व्यवस्था की गयी है, इसके बावजूद अगर कानून के तहत वे उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं तो उपभोकता मंच के पास मकान खरीदारों की शिकायतों की सुनवाई का अधिकार है.
शीर्ष अदालत का यह फैसला मेसर्स इम्पेरिया स्ट्रक्चरर्स लि. की अपील पर आया है. अपील में एनसीडीआरसी के फैसले को चुनौती दी गयी थी. उपभोक्ता मंच ने कंपनी की हरियाणा के गुड़गांव में आवासीय योजना ‘एसफेरा' के 10 मकान खरीदारों की शिकायतों पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था.
परियोजना 2011 में शुरू हुई और शिकायतकर्ताओं ने 2011-12 में बयाना राशि देकर मकान बुक कराया. बाद में वे एनसीडीआरसी के पास अर्जी देकर आरोप लगाया कि 42 महीने बीत जाने के बाद भी उन्हें अपने सपनों का घर प्राप्त करने की कोई संभावना नजर नहीं आती.
एनसीडीआरसी ने 2018 में अनिल पटनी समेत 10 मकान खरीदारों की शिकायतों को स्वीकार करते हुए कंपनी को 9 प्रतिशत सालाना साधारण ब्याज के साथ शिकायकर्ताओं को जमा वाले दिन से उन्हें भुगतान किये जाने तक पैसा वापस करने को कहा. साथ ही सभी शिकायतकर्ताओं को लागत मद में 50,000-50,000 रुपये का भुगतान करने को कहा.शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आदेश की प्रति प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर निर्देशों का पालन किया जाए. ऐसा नहीं करने पर राशि पर 12 प्रतिशत सालाना की दर से ब्याज लगेगा.''
पीठ ने एनसीडीआरसी के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा, ‘‘वादे के अनुसार निर्माण कार्य 42 महीनों में पूरा होना चाहिए था. अवधि परियोजना के रेरा कानून के तहत पंजीकरण से पहले ही समाप्त हो गयी थी. केवल इस आधार पर कि रेरा कानून के तहत पंजीकरण 31 दिसंबर, 2020 तक वैध है, इसका यह मतलब नहीं है कि संबंधित आवंटियों का कार्रवाई करने को लेकर अधिकार भी स्थगित है.''
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