
- बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन (SIR) से जुड़े मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई.
- SC ने कहा कि EC सही कह रहा है कि आधार को नागरिकता प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
- कपिल सिब्बल ने कहा कि यदि कोई कहता है कि मैं भारतीय नागरिक हूं तो सिद्ध करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है.
बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन (SIR) से जुड़े मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई की. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग सही कह रहा है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. ज्यादा से ज्यादा यह किसी की पहचान का प्रमाण हो सकता है. साथ ही कहा कि नागरिकों और गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना और बाहर करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है. इस दौरान अदालत में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, गोपाल शंकरनारायणन, अभिषेक मनु सिंघवी और प्रशांत भूषण के साथ ही योगेंद्र यादव ने भी अपने तर्क रखे. वहीं चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने भी सुनवाई में हिस्सा लिया. आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में किसने क्या कहा.
सिलसिलेवार जानिए किस तरह आगे बढ़ी सुनवाई और किसने क्या कहा
- सिब्बल: पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में है.
- जस्टिस सूर्यकांत - पहले हम जांच करेंगे कि क्या अपनाई गई प्रक्रिया सही है और फिर हम इसकी वैधता पर विचार करेंगे.
- शंकर नारायणन: पिछली तारीख पर जस्टिस बागची ने कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर लोगों को बाहर रखा गया है, तो हम हस्तक्षेप करेंगे. अब आंकड़े सामने आ गए हैं, 65 लाख लोगों को बाहर रखा गया है.
सिब्बल: एक जिले में 12 लोगों को जीवित दिखाया गया है, जबकि वे मृत हैं, जबकि कुछ जगहों पर वास्तव में मृत लोगों को जीवित दिखाया गया है. - राकेश द्विवेदी: इन मृतकों को जीवित और जीवित को मृत दिखाने के लिए, वे BLO से संपर्क कर सकते हैं, अदालत में अर्जी दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
- शंकर नारायण: बड़े पैमाने पर लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया गया है, 65 लाख लोग बाहर किए गए हैं.
सिब्बल ने लगाया अधिकारियों ने मनमानी का आरोप
- इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये सवाल आंकड़ों पर निर्भर करेगा. वहीं कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें मृत दिखाया गया है, लेकिन वे जीवित हैं. BLO ने कोई काम नहीं किया है.
- जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि SIR के दौरान संवैधानिक प्रावधानों को खुलेआम दरकिनार कर BLO और अन्य संबंधित मतदाता निबंधन से जुड़े अधिकारियों ने मनमानी की है.
- चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह ड्राफ्ट रोल है. हमने नोटिस जारी किया है कि जिनको कोई आपत्ति है अपनी आपत्तियां बताएं, सुधार आवेदन जमा करें. ड्राफ्ट रोल में कुछ कमियां होना स्वाभाविक है.
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि कितने लोगों की पहचान मृतक के रूप में हुई है. आपके अधिकारियों ने जरूर कुछ काम किया होगा.
- चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ न कुछ त्रुटियां तो होंगी ही.
कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
सिब्बल: नए वोटर को मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए फॉर्म 6 भरना होता है. उसी फॉर्म में डेट ऑफ बर्थ के लिए दस्तावेजी सबूत की सूची में आधार कार्ड को दूसरे नंबर पर रखा गया है, लेकिन SIR में चुनाव आयोग आधार को स्वीकार नहीं कर रहा है.
- सिब्बल: अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं भारत का नागरिक हूं तो इसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है. एक नागरिक सिर्फ जानकारी दे सकता है, जिसे किसी नागरिक भारतीय होने पर संदेह है ये उस सरकारी विभाग को ही साबित करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट : पहले हम प्रक्रिया की जांच करेंगे. इसके बाद हम वैधता पर विचार करेंगे.
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा: हमें कुछ तथ्य और आंकड़े चाहिए होंगे
- चुनाव आयोग: ये केवल ड्राफ्ट रोल है, नागरिकों को आपत्ति दर्ज करने का मौका दिया गया.
- सुप्रीम कोर्ट: यदि वास्तव में मृत व्यक्ति को जीवित और जीवित व्यक्ति को मृत दिखाया गया है, तो हम चुनाव आयोग से जवाब-तलब करेंगे.
- सुप्रीम कोर्ट: पीड़ित पक्ष अदालत के समक्ष क्यों नहीं आते?
प्रक्रिया और अधिकार दोनों पर सवाल उठा रहे: जस्टिस सूर्यकांत
सिब्बल: वे 2003 के लोगों को दिए जा रहे किसी भी दस्तावेज से बाहर कर रहे हैं.
- जस्टिस सूर्यकांत: आप प्रक्रिया और अधिकार दोनों पर सवाल उठा रहे हैं.
- जस्टिस बागची: नियम 12 कहता है कि अगर आप 2003 के रोल में नहीं हैं, तो आपको दस्तावेज देने होंगे.
- जस्टिस सूर्यकांत: 62 में से 22 लाख स्थानांतरित हो गए. इसलिए इस विवाद में अंततः 35 लाख ही बचे हैं.
- जस्टिस बागची: सारांश पुनरीक्षण सूची में शामिल होने का मतलब यह नहीं कि आपको गहन पुनरीक्षण सूची में पूरी तरह शामिल कर लिया गया है.
- जस्टिस सूर्यकांत: एक मृत व्यक्ति, एक स्थानांतरित व्यक्ति भी ड्राफ्ट रोल में होगा, यह अंतिम नहीं है.
- सिब्बल: करोड़ों लोगों के नाम सूची से बाहर होना खतरा है. अक्टूबर में चुनाव हैं, ऐसे समय में आयोग को क्या करना चाहिए? ECI ने कहा कि उनकी कोई जांच नहीं हुई है. 7.9 करोड़ में से 7.24 करोड़ फॉर्म भरे हुए हैं. 22 लाख मृत हैं या स्थानांतरित.
- जस्टिस सूर्यकांत: इसका मतलब है कि 7.24 करोड़ जीवित हैं और बाकी मृत या स्थानांतरित.
सुप्रीम कोर्ट की आधार पर बड़ी टिप्पणी
- जस्टिस सूर्यकांत: आधार को निर्णायक सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. चुनाव आयोग का कहना सही है कि इसे सत्यापित किया जाना चाहिए.
- सिब्बल: आधार निर्णायक प्रमाण नहीं, केवल पहचान का सबूत है. यह अभी ड्राफ्ट रोल है, समय रहते सुधार हो सकते हैं.
- सिंघवी: आधार और EPIC पर विचार करने का विरोध क्यों? चुनाव आयोग कहता है कि ये नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
- जस्टिस सूर्यकांत: आधार ऐक्ट में ऐसा कहा गया है.
- सिंघवी: नागरिकता का निर्धारण चुनाव आयोग का कार्य नहीं.
प्रशांत भूषण ने क्या कहा?
- प्रशांत भूषण: सभी को गणना फॉर्म भरने के लिए नहीं कहा गया. 2003 के मतदाताओं को दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. एक ही पते पर 300 मृत घोषित लोग जीवित पाए गए. चुनाव आयोग अब कहता है कि इन्हें नए मतदाता की तरह फॉर्म 6 भरना होगा. फॉर्म 6 में नागरिकता घोषणा देनी होती है, लेकिन अब नागरिकता प्रमाण मांगा जा रहा है.
- सुप्रीम कोर्ट: नागरिकता छीनने का कानून संसद बनाए
- सिंघवी: यह कार्य चुनाव आयोग का नहीं, सरकार/ट्रिब्यूनल का है.
- सिंघवी: आपने सबूत का बोझ उलट दिया है और अपील का समय नहीं छोड़ा है. मतदान सूची संशोधन की आड़ में नागरिकता साबित करने का बोझ लोगों पर डालना गलत है.
- सुप्रीम कोर्ट: 2003 तक कोई विवाद नहीं, लेकिन हालिया SIR में समय की कमी और संभावित अमान्यता के जोखिम हैं. चुनाव आयोग ने पूरे भारत में SIR शुरू किया है. पश्चिम बंगाल में भी इसके खिलाफ याचिकाएं हैं.
- चुनाव आयोग: हमारे पास SIR के दौरान नागरिकता प्रमाण मांगने का अधिकार है. यह संवैधानिक कर्तव्य है, लेकिन इससे नागरिकता खत्म नहीं होगी.
योगेंद्र यादव ने भी SIR पर सुनवाई में लिया हिस्सा
- यादव: बड़े पैमाने पर बहिष्कार, SIR के साथ और बढ़ेगा. यह विफलता नहीं, बल्कि सुनियोजित योजना है.
- जस्टिस सूर्यकांत: मान लें कुछ फर्जी मतदाता हैं, तो IR/SIR क्यों नहीं हो सकता?
- यादव: 2003 में क्या खास था, यह चुनाव आयोग बताए. भारत में पहली बार संशोधन में कोई बदलाव नहीं हुआ.
- योगेंद्र यादव: भारत में मतदाताओं का 99% नामांकित. बिहार में 97% है. SIR से घटकर यह 88% हो जाएगा. दुनिया में कहीं भी दस्तावेज जमा करने की अनिवार्यता नहीं रही है. 2003 में भी केवल घर-घर सत्यापन हुआ था.
इस दौरान योंगेंद्र यादव ने एक महिला को पेश किया, जिसे मृत घोषित किया गया है.
- चुनाव आयोग के वकील ने कहा: यह ड्रामा है.
- सुप्रीम कोर्ट: आपने अच्छा विश्लेषण किया है.
- जस्टिस बागची: गलती अनजाने में हुई हो सकती है, इसे सुधारा जा सकता है.
- जस्टिस सूर्यकांत: कुछ मुद्दों पर सुधारात्मक कदम जरूरी हैं.
- योगेंद्र यादव: 7.24 करोड़ में एक श्रेणी जोड़ी गई, जो हटाने की सिफारिश है. महिलाओं को अधिक हटाया गया है, यह महिला विरोधी पक्षपात है. यह मताधिकार से वंचित करने की सबसे बड़ी कवायद है. ड्राफ्ट रोल में मृत घोषित दो लोग कोर्ट में पेश किए गए.
सुनवाई कल भी जारी रहेगी.
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