यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम (UP Madrasa Education Board Act) को ‘असंवैधानिक' करार देने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahbad HC) के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट के प्रावधानों को समझने में भूल की है. हाई कोर्ट का ये मानना कि ये एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, ग़लत है. सुप्रीम कोर्ट ने HC के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओ पर केंद्र, यूपी सरकार, यूपी मदरसा एजुकेशन बोर्ड को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने यूपी और केंद्र सरकार को 31 मई तक जवाब दखिल करने को कहा और जुलाई के दूसरे हफ्ते में इस मामले पर अगली सुनवाई होगी.
क्यों आया यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम?
यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 राज्य में 'मदरसा शिक्षा बोर्ड' की स्थापना के लिए बनाया गया था. एक्ट में कहा गया कि 'शिक्षा संहिता के पैरा 55 में यूपी के अरबी-फारसी परीक्षाओं के रजिस्ट्रार को राज्य के अरबी-फारसी मदरसों को मान्यता देने और उनकी परीक्षाएं आयोजित करने का हक दिया गया था. दरअसल, पहले इन मदरसों का प्रबंधन शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता था. 1995 में अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग का गठन हुआ, इसके बाद मदरसों से जुड़े सभी कार्य उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग से हटाकर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधीन कर दिए गए.
यूपी के 16 मदरसों पर था संकट
यूपी मदरसा एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से 16000 मदरसों के 17 लाख छात्रों को बड़ी राहत मिली है. फिलहाल 2004 के कानून के तहत मदरसों में पढ़ाई चलती रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक अंतरिम रोक लगाई. एक्ट को असंवैधानिक करार देने वाले फैसले पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है. ये कहना सही नहीं कि ये कानून धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है. खुद यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में एक्ट का बचाव किया था. हाई कोर्ट ने 2004 के ऐक्ट को असंवैधानिक करार दिया था. इसके बाद से ही ये सवाल उठने लगा था कि यूपी के 16 मदरसों का क्या होगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट अब हाई कोर्ट के एक्ट को धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताने वाले फैसले का परीक्षण करेगा. फैसला सुनाते समय सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि इन मुद्दों ने योग्यता को करीब से उठाया है. मदरसा बोर्ड का उद्देश्य और ल़क्ष्य प्रकृति में नियामक है. इलाहाबाद हाई कोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है कि बोर्ड की स्थापना से धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन होगा. यह मदरसा शिक्षा को बोर्ड को सौंपी गई नियामक शक्तियों के साथ मिला देता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि जनहित याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मदरसों को गणित, विज्ञान, इतिहास, भाषा जैसे मुख्य विषयों में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाती है, तो इसका उपाय मदरसा अधिनियम 2004 के प्रावधानों को रद्द करना नहीं होगा. राज्य ने कहा है कि यह सुनिश्चित करना एक वैध सार्वजनिक हित है कि सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले जो उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त योग्य बनाती है.
हाई कोर्ट के पास एक्स रद्द करने का अधिकार नहीं
खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार और केंद्र ने हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया, जबकि यूपी सरकार ने हाई कोर्ट में एक्ट का बचाव किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वो पलट गई और एक्ट का विरोध किया. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा इस साल मार्च में यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मदरसा अजीजिया इजाजुतूल उलूम के मैनेजर अंजुम कादरी की तरफ से हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई.
125 साल पुराना एक्ट...
मामले की सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीली दी कि हाई कोर्ट का अधिकार नहीं बनता कि इस एक्ट को रद्द करे. 17 लाख छात्र इस फैसले से प्रभावित हुए. वहीं, करीब 25000 मदरसे प्रभावित हुए. ये लगभग 125 साल पुराना एक्ट है, 1908 से मदरसा रजिस्टर हो रहे हैं. सिंघवी ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि मैं हिंदू धर्म या इस्लाम आदि पढ़ाता हूं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं धार्मिक शिक्षा देता हूं. इस मामले में अदालत को अरुणा रॉय फैसले पर गौर करना चाहिए. राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहना होगा, उसे सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ समान व्यवहार करना चाहिए. राज्य अपने कर्तव्यों का पालन करते समय किसी भी तरह से धर्मों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता. चूंकि शिक्षा प्रदान करना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक है."
कुरान एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाता है...
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी भी मदरसों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए उन्होंने कहा कि ये मदरसे विभिन्न विषय पढ़ाते हैं, कुछ सरकारी स्कूल हैं, कुछ निजी, यहां आशय यह है कि यह पूरी तरह से राज्य द्वारा सहायता प्राप्त स्कूल है, कोई धार्मिक शिक्षा नहीं. यहां कुरान एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाता है. हुजैफा अहमदी ने कहा कि धार्मिक शिक्षा और धार्मिक विषय दोनो अलग हैं, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगानी चाहिए.
देश भर में कई अच्छे गुरुकुल, तो क्या...?
गुरुकुल परंपरा का जिक्र करते हुए सिंघवी ने कहा, "आज देशभर के कई लोकप्रिय गुरुकुल हैं, क्योंकि वे अच्छा काम कर रहे हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश में कुछ बहुत अच्छे गुरुकुल हैं... तो क्या हमें उन्हें बंद कर देना चाहिए और कहना चाहिए कि यह हिंदू धार्मिक शिक्षा है? क्या यह 100 साल पुराने कानून को खत्म करने का आधार हो सकता है?"
ऐसे शुरू हुआ मदरसों पर संकट...
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 22 मार्च को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को ‘असंवैधानिक' और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया था. उच्च न्यायालय ने साथ ही राज्य सरकार को वर्तमान छात्रों को औपचारिक स्कूल शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने को कहा था. अदालत ने यह आदेश अंशुमान सिंह राठौर नाम के व्यक्ति की याचिका पर दिया. याचिका में उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी. उत्तर प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे हैं. इनमें 16500 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, उनमें से 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है. इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं.
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