लौह अयस्क निर्यात पर बैन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है, लेकिन सुनवाई की शुरुआत में खासी बहस देखने को मिली. याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने CJI की कोर्ट को बताया कि साथी वकील प्रशांत भूषण ने उनके दस्तावेज चोरी कर गुपचुप तौर से याचिका की नकल तैयार कर कोर्ट में लौह अयस्क की तस्करी का नाम देकर दाखिल कर दी है. सीजेआई जस्टिस एनवी रमना ने टिप्पणी की कि जैसे आपने अर्जी दाखिल की है वैसे ही अन्य को भी तो याचिका दायर करने का अधिकार है. तो इसमें आपको दिक्कत क्या है? अब आप तो अपनी याचिका पर बौद्धिक संपदा की तरह कॉपीराइट यानी एकाधिकार चाहते हैं. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपकी याचिका से मिलती जुलती याचिका इसी कोर्ट में आने का ये मतलब कतई न निकालें कि आपकी याचिका खारिज हो जाएगी और उनकी मंजूर. सुनवाई शुरू हुई तो एमएल शर्मा बार-बार टोकाटाकी करने लगे तो कोर्ट ने उनको सुनवाई में बाधा डालने से मना किया.
फिर प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि कई राज्यों में लौह अयस्क का खनन पर रोक है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तीन अलग-अलग मामलों में फैसले देते हुए इनके खुले खनन और निर्यात पर भी पाबंदी लगाने को कहा था. दरअसल, राष्ट्रपति के पास जब घरेलू स्टील उद्योग पर संकट की मूल वजह लौह अयस्क के निर्यात को बताते हुए गुहार लगाई गई तो तत्कालीन राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से राय मांगी थी. कोर्ट ने निर्यात पर रोक सहित कई पाबंदी की राय दी थी. सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोर्ट के इस मंतव्य के बाद केंद्र ने लौह अयस्क निर्यात रोक दिया था. साथ ही सरकार ने जरूरी और लौह अयस्क की बनी बनाई सामग्री के एक्सपोर्ट पर तीस फीसदी निर्यात कर भी लगाने का सख्त प्रावधान किया था, लेकिन निजी कंपनियां गोलियों के रूप में लौह अयस्क का निर्यात करती हैं, कच्चे माल के रूप में नहीं. जबकि खनन पर रोक के बाद अपवाद के रूप में राज्य सरकार का कर्नाटक खनन निगम ही इस काम में लगा है.
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ "कॉमन कॉज" द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर केंद्र को लौह अयस्क के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने या लोहे के निर्यात पर 30% का निर्यात शुल्क लगाने का आदेश जारी करने की याचिका पर ये नोटिस जारी किया है. भूषण ने तर्क दिया कि लौह अयस्क को घरेलू उपयोग के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि देश के इस्पात उद्योग को इसकी आवश्यकता होती है और वे इसे उच्च कीमतों पर आयात करने के लिए मजबूर होते हैं. जनहित याचिका में भारत सरकार को विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 की धारा 11 और सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 135(1) के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए एक उपयुक्त रिट, आदेश या निर्देश जारी करने की भी प्रार्थना की गई है, और भारत के निर्यात कानूनों/नीतियों के प्रावधानों के उल्लंघन में लौह अयस्क पैलेटों का निर्यात करने वाली कंपनियों के खिलाफ कानून के अनुसार उचित जुर्माना लगाने की मांग भी की गई है.
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