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This Article is From Sep 20, 2022

हिजाब गरिमा का प्रतीक है, जैसे हिंदू महिला साड़ी के साथ सिर ढकती हैं : सुप्रीम कोर्ट में हुई जबरदस्त बहस

हिजाब बैन पर  दुष्यंत दवे ने कहा कि सरकार  की दलील है कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण सिर्फ उनके लिए है, जो धर्म का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है.  ये अभ्यास धार्मिक अभ्यास हो सकता है, लेकिन उस धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है. ये संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है, लेकिन सरकार की ये दलील सही नहीं है.

हिजाब बैन मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ये सुनवाई कर रही है. आज सुनवाई का 8वां दिन है. हिजाब बैन पर  दुष्यंत दवे ने कहा कि सरकार  की दलील है कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण सिर्फ उनके लिए है, जो धर्म का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है.  ये अभ्यास धार्मिक अभ्यास हो सकता है, लेकिन उस धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है. ये संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है, लेकिन सरकार की ये दलील सही नहीं है. जस्टिस धूलिया : क्या हम आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को अलग कर स्थिति से नहीं निपट सकते? दवे : लेकिन हाईकोर्ट ने केवल जरूरी धार्मिक प्रथा पर ही मामले को निपटा दिया है.

सुप्रीम कोर्ट - हम आवश्यक धार्मिक अभ्यास पर बहस क्यों कर रहे हैं?  और उनमें से कुछ को HC द्वारा नहीं लिया गया?
दवे: क्योंकि हाईकोर्ट ने केवल EFP पर टिप्पणी की और वह भी बिना उचित परिप्रेक्ष्य में कई मिसाल कायम करने वाले फैसलों को पढ़ें.

जस्टिस धूलिया: वो 5 फरवरी के सर्कुलर (कर्नाटक सरकार के) के साथ काम कर रहे थे और सर्कुलर में कहा गया था कि इन फैसलों में यह आवश्यक नहीं है और इसे समिति पर छोड़ दिया गया है इसलिए उस संदर्भ में हाईकोर्ट को धार्मिक अभ्यास आवश्यक से निपटना पड़ा.

दुष्यंत दवे ने कहा कि इस सवाल का फैसला करना होगा कि क्या कोई धार्मिक प्रथा धर्म का एक अभिन्न अंग है या नहीं, हमेशा इस बात पर सवाल उठेगा कि धर्म का पालन करने वाले समुदाय द्वारा इसे ऐसा माना जाता है या नहीं.

दवे: हर कोई सर्वशक्तिमान को अलग-अलग तरीकों से देखता है, जो लोग सबरीमाला जाते हैं, वे काले कपड़े पहनते हैं, यही परंपरा है.  प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव व्यक्तिगत और व्यक्तिवादी तरीके से धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लेने का अधिकार है. बस सीमा ये है कि आप किसी की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाएंगे.

दवे - सबरीमाला फैसले और हिजाब मामले में हाईकोर्ट के फैसले में अंतर है. 
जस्टिस गुप्ता: वहां सभी को मंदिर में प्रवेश का संवैधानिक अधिकार नहीं है. 
दवे : नहीं,.. अब फैसले के बाद यह तय हो गया है कि हर कोई मंदिरों में प्रवेश कर सकता है.
जस्टिस गुप्ता - सबरीमला मामला अभी 9 जजों की पीठ के पास लंबित है. हम उस पर नहीं जा रहे.  यूनिफॉर्म एक बेहतरीन लेवलर है.  एक ही जैसे कपड़े पहनने पर देखिए, चाहे छात्र अमीर हो या गरीब, सब एक जैसे दिखते हैं.
दुष्यंत दवे: लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं तो इससे किसके संवैधानिक अधिकार का हनन हुआ है? दूसरे छात्रों का या स्कूल का ?
दवे: सार्वजनिक व्यवस्था का पहलू यही एकमात्र आधार है, जिस पर हमारे खिलाफ तर्क दिया जा सकता है.
दवे: हिजाब गरिमा का प्रतीक है. मुस्लिम महिला गरिमापूर्ण  दिखती हैं जैसे हिंदू महिला साड़ी के साथ अपना सिर ढकती है तो वह गरिमापूर्ण दिखती हैं.
दवे: इससे किसी की शांति, सुरक्षा भंग नहीं होती और शांति को कोई खतरा नहीं है.

दवे : ऐसा क्यों है कि अचानक 75 साल बाद राज्य ने इस प्रकार का प्रतिबंध लगाने का विचार किया? इसके लिए राज्य के पास कोई न्यायसंगत कारण या औचित्य नहीं था. यह चौंकाने वाला फैसला था. दवे ने  बुली बाई सुल्ली डील्स का हवाला दिया.
दवे : उन ऐप्स को देखिए जिनके माध्यम से वर्चुअल स्पेस में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को बिक्री के लिए रखा गया था. ऐसा क्यों हुआ ? 

जस्टिस गुप्ता: वे महाराष्ट्र में थे, कर्नाटक में नहीं. कर्नाटक के बारे में बताएं? वैसे भी हम इस सब के बारे में दूसरे पक्ष (राज्य सरकार) से भी पूछेंगे.

दवे: कर्नाटक में कई बार अल्पसंख्यक समुदाय को टारगेट किया गया है.

दवे के इस बयान का सॉलिसीटर जनरल ने ऐतराज जताया कहा कि ये पब्लिक प्लेटफार्म नहीं है, आप कानून पर दलील रखें.

दवे- हम एक समुदाय के मन में डर नहीं बना सकते, भारत में 160 मिलियन मुस्लिम हैं

दवे- कर्नाटक सरकार का आदेश असंवैधानिक है, ये आदेश गैरकानूनी है. हाईकोर्ट का फैसला टिकने वाला नहीं है.  सुप्रीम कोर्ट को इस आदेश को रद्द करना चाहिए.

हिजाब बैन मामले में मुस्लिम पक्ष की दलीलें पूरी की.  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाकी वकील लिखित दलीलें दाखिल करें.

अब कर्नाटक सरकार की ओर से दलीलें शुरू हो गईं. SG तुषार मेहता ने बहस शुरू की.

दवे: केरल हाईकोर्ट का इसपर स्पष्ट फैसला है जो हमें सपोर्ट करता है. समर्थन कर रहा है, केन्द्रीय विद्यालयों में भी इसकी इजाजत है.

तुषार मेहता
- पहला : इससे पहले कोई छात्रा हिजाब बैन पर नहीं आई ना ही ये सवाल कभी उठा 
- दूसरा : सरकारी आदेश में कहीं नहीं लिखा कि हिजाब बैन है. ये सब धर्मों क लिए है 
- तीसरा: हिजाब पहनने के बाद दूसरे धर्म के छात्र भगवा गमछा पहनकर आने लगे

जस्टिस गुप्ता: एक सर्कुलर का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि ड्रैस अनिवार्य करना अवैध है.
मेहता: हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया था।    


एसजी मेहता: इसमें दो मुख्य बातें हैं....

 1) 2021 तक किसी भी छात्रा ने हिजाब नहीं पहना था,  न ही यह सवाल कभी उठा.

 2) केवल हिजाब को प्रतिबंधित करने वाले सर्कुलर का विरोध करना गलत होगा.  अन्य समुदाय भगवा शॉल लेकर आए, वो भी प्रतिबंधित है.


तुषार 
- हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि कम से कम 2004 तक किसी ने हिजाब नहीं पहना था 
- लेकिन अचानक दिसंबर 2021 में ये शुरू हो गया

लंच के बाद हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू. कर्नाटक सरकार की तरफ से SG तुषार मेहता दलील दे रहे हैं. 
मेहता- राज्य ने ऑर्डर को स्कूलों के लिए पास किया था छात्रों को नहीं

जस्टिस धूलिया: आप कह रहे हैं कि आपका जोर सिर्फ ड्रेस पर था.

 एसजी मेहता: हां हमने धर्म के किसी भी पहलू को नहीं छुआ.

 जस्टिस धूलिया : अगर ड्रेस नहीं होती तो आप आपत्ति नहीं करते?

 SG: तो  फिर, हमने आदेश की अंतिम पंक्ति में इसका जिक्र किया है।

एसजी मेहता ने हाईकोर्ट के फैसले को पढ़ा,जिसमें कहा गया है कि जहां कोई ड्रेस निर्धारित नहीं है, छात्र ऐसी पोशाक पहनेंगे जो समानता और एकता के विचार को बढ़ावा दें.

एसजी:  स्कूल में किसी विशेष धर्म की कोई पहचान नहीं है. आप केवल एक स्टूडेंट के रूप में वहां जा रहे हैं.

तुषार -गैर-आवश्यक धार्मिक प्रथा संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है.
  - इस्माइल फारूकी बनाम केंद्र में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण धार्मिक अभ्यास के साथ है जो धर्म का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है.
- एक अभ्यास धार्मिक अभ्यास हो सकता है लेकिन उस धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है.
- ये संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है

तुषार -ओमअभ्यास इतना आवश्यक होना चाहिए, जैसे सिखों के लिए कड़ा, पगड़ी आदि के मामले में 
- आप दुनिया के किसी भी हिस्से में उनके बिना एक सिख के बारे में नहीं सोच सकते

तुषार - याचिकाकर्ताओं द्वारा इस बात का कोई दावा नहीं किया गया था कि यह प्रथा धर्म के साथ ही शुरू हुई थी.
- अभ्यास को धर्म के साथ सह-अस्तित्व के रूप में दिखाया जाना चाहिए.

सॉलिसिटर जनरल ने तांडव की मिसाल आनंद मार्गियों के दावे वाले मामले को उद्धृत करते हुए कही.
-जस्टिस धूलिया ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वो ये बताएं कि हिजाब पहनना कैसे पब्लिक ऑर्डर को प्रभावित कर रहा था? 
-सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि धार्मिक परंपरा पर अमल इतना आवश्यक होना चाहिए, जैसे सिख कड़ा, केस पगड़ी आदि पहनते हैं. आप दुनिया के किसी भी हिस्से में उनके बिना एक सिख के बारे में नहीं सोच सकते.

तुषार - SG : याचिकाकर्ताओं द्वारा कोई दावा नहीं किया गया है कि हिजाब पहनना अनादि काल से एक प्रथा है, क्या यह इतना मजबूर है कि अगर इसे नहीं पहना जाता है तो उन्हें धर्म से बाहर कर दिया जाएगा.

एसजी: उन्हें यह दिखाना होगा कि  प्रथा आवश्यक धार्मिक हिस्सा के लिए सभी परीक्षणों को पूरा करता है.

जस्टिस धूलिया : कौन तय करता है कि जरूरी प्रथा क्या है?

सुप्रीम कोर्ट - यह संदेह से परे साबित होना चाहिए कि हिजाब पहनना सार्वजनिक व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य या नैतिकता के लिए खतरा है.
 तुषार : मान लीजिए आनंद मार्गी सड़क पर तांडव नृत्य करते हुए जुलूस निकालते हैं, तो वे इसे एक आवश्यक धर्म अभ्यास नहीं कह सकते.
 जस्टिस धूलिया: लेकिन क्या यह प्रासंगिक मामला उस श्रेणी में आता है.
मेहता: अगर मैं सड़क पर आकर कहता हूं कि सार्वजनिक रूप से पीना और डांस करना मेरे धर्म का हिस्सा है. कोई कहेगा कि यह सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के खिलाफ है. मुझे स्थानीय अधिकारियों द्वारा रोका जाएगा. कौन तय करेगा?
जस्टिस गुप्ता: मुझे नहीं लगता कि यह चरम उदाहरण उचित है.
मेहता: ठीक है, अगर कोई कहता है कि मुझे कोविड के दौरान रथ यात्रा करनी है, मैं कहूंगा कि यह आवश्यक अभ्यास है .
जस्टिस गुप्ता: मैं उस पीठ का हिस्सा था जिसने रथ यात्रा की अनुमति दी थी.

हिजाब पर SG ने ईरान का हवाला दिया 

SG-  हिजाब अनिवार्य प्रथा नहीं है. यहां तक कि जिन देशों में इस्लाम राजकीय धर्म है वहां महिलाएं हिजाब के खिलाफ बगावत कर रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट-कहां विरोध कर रहे हैं? 

 तुषार-यह ईरान में हो रहा है

SG: हो सकता है पवित्र कुरान ऐसा कहता है. मुझे स्वीकार है. मैंने इसे नहीं पढ़ा है. जब वे इस बात पर जोर देते हैं कि अदालत के ठीक सामने, केवल कुरान में उल्लेख करने से यह अपने आप में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं बन जाएगी, यह एक धार्मिक प्रथा बन सकती है.

एसजी एक अमेरिकी फैसले का जिक्र करते हुए कहते है- एक वकील टोपी पहनकर अदालत में यह कहते हुए आता है कि यह ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म का हिस्सा है, जज आपत्ति करता है. इस तरह के एक विनियमित मंच में कोर्ट द्वारा आयोजित प्रतिबंध को बरकरार रखा जाएगा यदि यह उचित है.

तुषार - कैप धर्म की पहचान नहीं करती है, लेकिन हिजाब धर्म की पहचान है.
जस्टिस गुप्ता- अगर लैदर की बेल्ट वर्दी का हिस्सा है और कोई कहता है कि हम लैदर नहीं पहन सकते, तो क्या आप अनुमति देंगे?
SG-अगर वर्दी कहती है कि शॉर्ट पैंट आप इसे इतना छोटा नहीं पहन सकते कि यह अशोभनीय हो.  वर्दी और अनुशासन को हर कोई समझता है.

एसजी: मैं अपने तर्कों को संक्षेप में बताऊंगा. वर्दी निर्धारित करने के लिए एक वैधानिक शक्ति है. नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए स्कूलों को निर्देश जारी करने के लिए सरकार में एक वैधानिक शक्ति है. उस शक्ति के प्रयोग का एक अच्छा और उचित औचित्य था. तुषार मेहता ने कहा कि ईश्वर से डरने की क्या जरूरत है ईश्वर से तो प्यार करना चाहिए. मैं किसी धर्म के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन हिंदू धर्म और ईसाइयत सहित दूसरे धर्म में महिलाएं वाहन चलाती हैं। एक मिसाल है कि एक मुस्लिम महिला इंटरनेशनल फ्लाइट पायलट है, लेकिन घर से एयरपोर्ट तक उसे ड्राइव करने की इजाजत नहीं. उसके पति उसे अपनी गाड़ी से छोड़ कर आते हैं. कभी-कभी हमारे पवित्र ग्रंथों में लिखा कुछ होता है और हम उनकी व्याख्या कुछ अपने ढंग से करते हैं. 
एसजी : मैं किसी समुदाय की आलोचना नहीं कर रहा हूं. कुछ देशों में महिलाएं गाड़ी नहीं चला सकतीं. आखिरकार, कानून यह है कि आपने आवश्यक धार्मिक अभ्यास कैसे स्थापित किया है. जब आप कोर्ट में आते हैं तो आपको एक अलग दहलीज पार करनी पड़ती है.

कर्नाटक सरकार की तरफ से AG पी नवदगी ने बहस की शुरू की. 

जस्टिस धूलिया ने हाईकोर्ट पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा - जब वो इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, तो फैसले ने सरकार द्वारा रखे गए छात्रों के शोध पत्रों पर व्यापक रूप से भरोसा किया. लेकिन जब दूसरे पक्ष ने भी इसे रखा तो इसे अविश्वसनीय घोषित कर दिया गया. हाईकोर्ट को इसमें नहीं जाना चाहिए था. उन्होंने एक छात्र के टर्म पेपर पर भरोसा किया है, और वे मूल टेक्स पर नहीं गए हैं. इधर, दूसरा पक्ष एक और कमेंट्री कर रहा है. कौन तय करेगा कि कौन सी टिप्पणी सही है? 

एजी नवदगी ने कहा, " यह धारणा बनाने की कोशिश की गई थी कि शिरूर मठ हर धार्मिक प्रथा की रक्षा करता है. लेकिन करीब से देखने से पता चलता है कि आवश्यक धार्मिक अभ्यास की अवधारणा शिरूर मठ में उत्पन्न हुई थी. राज्य धर्म से संबंधित धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है. लेकिन स्वयं धर्म को नहीं. 

जस्टिस धूलिया ने सवाल किया कि उत्तराखंड में बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के नियमन के लिए एक्ट है. वो सिर्फ मंदिरों की आमदनी और रखरखाव देखती है. मंदिरों में पूजा कैसे हो इस पर विचार नहीं करता. ये ही धर्म निरपेक्षता है. कानून ये नहीं कह सकता कि पूजा किसी खास तौर तरीके से कैसे हो. 

इस पर कर्नाटक के एडवोकेट जनरल ने कहा कि बिलकुल सही. सरकार सिर्फ धर्म निरपेक्षता से आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक कार्यकलापों को नियमित कर सकती है. स्कूल चलाना धर्म निरपेक्ष कार्य है. हालांकि, विशुद्ध धार्मिक और धर्म से संबंधित कार्यकलापों के बीच कोई सीमा रेखा होनी है. हम ये नहीं कह रहे कि सरकार बताए कि पूजा कैसे हो. लेकिन ये तो बता ही सकती है कि पूजा के लिए इंतजाम कैसे किए जाएं मसलन अर्चक, पुजारियों की नियुक्ति. लेकिन उस पर भी विवाद है. सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.

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