जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन को केंद्र सरकार ने सही ठहराया है। इसके खिलाफ के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि नया सिस्टम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मजबूती देने के लिए है ना कि इसे कमजोर करने के लिए।
सॉलीसीटर जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि सरकार कोई टकराव नहीं चाहती, बल्कि देश में बेहतरीन सिस्टम बनाना चाहती है। हालांकि सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
यह याचिकाएं पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बिश्वजीत भट्टाचार्य, अधिवक्ताओं- आरके कपूर और मनोहर लाल शर्मा, एनजीओ सीपीआईएल की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण तथा सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड की ओर से दायर की गई हैं।
याचिकाओं मे न्यायिक नियुक्ति आयोग बिल को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है। जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि यह बिल संविधान के मूल स्वरूप के खिलाफ है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता में दखल देता है। इस कमीशन की नियुक्ति के लिए संसद में लाए गए 121वें संविधान संशोधन विधेयक और एनजेएसी विधेयक 2014 असंवैधानिक हैं, क्योंकि वे संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करते हैं।
सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन की ओर से इस मामले में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि जुडिशल अपॉइंटमेंट अमेंडमेंट बिल संविधान के बेसिक फीचर के खिलाफ है। सिर्फ फुल टाइम बॉडी ही पारदर्शी तरीके से नियुक्ति कर सकती है, लेकिन मौजूदा कमिशन न तो फुल टाइम है और न ही पारदर्शी है। ऐसे में ब्रिटेन की तरह फुलटाइम बॉडी ही जुडिशल अपॉइंटमेंट के लिए सही होगी।
दरअसल संसद ने न्यायिक नियुक्ति आयोग बिल को पास किया है। इस बिल के प्रभावी होने से जजों की नियुक्ति के लिए पुराना कॉलेजियम सिस्टम खत्म हो जाएगा।
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