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This Article is From Aug 02, 2018

क्या महिलाएं भी हो सकती हैं व्यभिचार के लिए जिम्मेदार? मामला सात जजों की पीठ को भेजने का विचार

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा- 157 साल पुराने कानून को पांच जजों की पीठ बरकरार रख चुकी है, इसके लिए सात जजों की संविधान पीठ के गठन पर विचार होगा

क्या महिलाएं भी हो सकती हैं व्यभिचार के लिए जिम्मेदार? मामला सात जजों की पीठ को भेजने का विचार
सुप्रीम कोर्ट.
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
याचिकाकर्ता की दलील सहमति से बनाए गए संबंधों के सिविल नतीजे भी
अन्य व्यक्ति से यौन संबंध तलाक का भी आधार, लेकिन कार्रवाई सिर्फ पुरुष पर
केंद्र सरकार ने हलफ़नामा दायर कर याचिका को खारिज करने की मांग की थी
नई दिल्ली: व्यभिचार को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने संकेत दिया कि इस मामले को सात जजों की संविधान पीठ में भेजा जा सकता है.

पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि 157 साल पुराने कानून को पांच जजों की पीठ पहले की बरकरार रख चुकी है इसलिए इसके लिए सात जजों की संविधान पीठ के गठन पर विचार किया जाएगा. चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता की इस दलील को माना कि सहमति से बनाए गए संबंधों के सिविल नतीजे भी निकलते हैं और किसी अन्य व्यक्ति से यौन संबंध बनाना तलाक का भी आधार बनता है लेकिन ये धारा सिर्फ पुरुष पर लगती है महिला पर नहीं.

इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर याचिका को खारिज करने की मांग की थी. केंद्र ने कहा कि ये कानून महिलाओं को सरक्षंण देता है जो लिंग आधारित भेदभाव है. इस मुद्दे पर भारत के कानून आयोग द्वारा विचार-विमर्श किया जा रहा है. केंद्र ने कहा था कि धारा 497 विवाह संस्था की रक्षा, सुरक्षा और सरंक्षण करती है. 497 को रद्द करना अंतर्निहित भारतीय आचारों के लिए हानिकारक साबित होगा जो संस्था और विवाह की पवित्रता को सर्वोच्च महत्व देता है.

यह भी पढ़ें : व्यभिचार के मामले में महिला के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? संविधान पीठ करेगी सुनवाई

दरअसल IPC 497 के तहत व्यभिचार यानी Adultary के मामलों में क्या महिला के खिलाफ भी हो सकती कानूनी है कार्रवाई? जनवरी में इस मामले की सुनवाई को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया था.

कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक समानता लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर फिर से विचार करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1954 में चार जजों की बेंच और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमति नहीं, जिसमें IPC 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करता.

यह भी पढ़ें : केंद्र ने SC से कहा, व्यभिचार संबंधी कानून खत्म करने से वैवाहिक संस्था नष्ट हो जायेगी

सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने IPC के सेक्शन 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा जब संविधान महिला और पुरुष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक केसों में ये अलग क्यों? कोर्ट ने कहा कि जीवन के हर तौर तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है तो इस मामले में अलग से बर्ताव क्यों? जब अपराध को महिला और पुरुष दोनों की सहमति से किया गया हो तो महिला को सरंक्षण क्यों दिया गया?

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