वाराणसी:
बनारस का अस्सी घाट अब मुंबई की चौपाटी की तरह हो गया है। यहां सिर्फ 'सुबहे बनारस में भोर का संगीत' ही नहीं बल्कि शाम को भी संगीत की धुन गूंजने लगी है। पर ये संगीत उन छोटे-छोटे बच्चों का है जो यहां गिरजा देवी के नाम पर शुरू हुए समर कैम्प में भाग ले रहे हैं।
अस्सी घाट पर इस तरह का ये पहला समर कैम्प है जहां बच्चों को नृत्य, गायन, पेंटिंग, जूडो, जैसे क्लास चल रहे हैं, जिसमें बड़ी संख्या में बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी हिस्सा ले रहे हैं। और ये सब अस्सी घाट पर जमी मिट्टी के हटने के बाद हुआ है। इसकी शुरुआत बीते नवम्बर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्सी घाट पर फावड़ा चलाकर किया था।
इस समर कैम्प की शुरुआत हर शाम इस गाने के बोल से होती है, 'गंगा रेती पर बंगला छवाय द मोरे राजा छवाय द मोरे राजा' ये दादरा गीत बनारस घराने का है, जिसे गिरजा देवी बड़े मन से गाती हैं। लिहाजा उन्ही का ये प्रिय गीत ये बच्चे उन्हीं के नाम पर शुरू हुए गंगा किनारे अस्सी घाट के समर कैम्प में न सिर्फ सीख रहे हैं बल्कि 12 जून को कैम्प के समापन के दिन उनके सामने गाकर भी सुनाएंगे।
अस्सी घाट पर ये अपनी तरह का पहला समर कैम्प है, जिसमें बच्चों को कई विधाओं की सीख दी जा रही है। समर कैम्प की आयोजक अंकिता खत्री कहती हैं, ये एक ग्रीष्मकालीन शिविर गिरजा देवी के नाम पर शुरू किया गया है और यहां करीब 300 महिलाएं व बच्चे भाग ले रहे हैं। ये सभी चित्रकला, नृत्य कला, गायन की ट्रेनिंग ले रहे हैं।
गंगा के द्वार पर अगर बच्चे गंगा के गीत के बोल सीख रहे हैं तो गंगा की लहरों के मौज से रचे-पगे गानों के बोल पर थिरक भी रहे हैं। ये गतिविधि तो अस्सी घाट के एक कोने पर हो रही है। दूसरे कोने पर मार्शल आर्ट के साथ बच्चे पेंसिल और कागज पर अपने बाल मन के स्केच को खींच रहे हैं।
सबसे ज्यादा कांफिडेंस तो बच्चों में एंकरिंग की क्लास से आ रहा है। एंकरिंग सीख रहे आठ साल के अर्श त्रिपाठी बताते है कि हम लोगों को अभी कांफिडेंस स्पीकिंग और डिक्शनरी के बारे में बताया जा रहा, ताकि हम लोग अपना कांफिडेंस डेवलप कर सकें और अगर माइक हम लोगों को मिले तो हम नर्वस ना हों।
अस्सी घाट पर मिट्टी हटने के बाद पहले सुबह की आरती के साथ भोर का राग शुरू हआ और अब इसमें शाम को ये समर कैम्प की गतिविधि जुड़ गई है। ये कैम्प 14 मई से शुरू हुआ है और 12 जून तक चलेगा। 5 जून से खुद गिरिजा देवी यहां आकर रोज़ बच्चों को सिखाएंगी।
अस्सी घाट के बदले रूप के बाद सिर्फ शहर ही नहीं बाहर के भी तमाम लोग यहां आने लगे हैं और शाम का नजारा मुंबई की चौपाटी जैसा हो गया है। इस कैम्प में सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी पूरी सिद्दत के साथ शामिल हो रहे हैं। इसे देखकर आप कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक हल्की सी जुम्बिश के बाद बनारस के इस अस्सी घाट पर न सिर्फ सुबह बल्कि शाम को भी जीवन का ऐसा संगीत बहने लगा है कि बस इंतज़ार इस बात का है कि ऐसी कोशिश बनारस के हर घाट पर हो, जहां ऐसा ही सुन्दर और मोहक संगीत सुनाई पड़े।
अस्सी घाट पर इस तरह का ये पहला समर कैम्प है जहां बच्चों को नृत्य, गायन, पेंटिंग, जूडो, जैसे क्लास चल रहे हैं, जिसमें बड़ी संख्या में बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी हिस्सा ले रहे हैं। और ये सब अस्सी घाट पर जमी मिट्टी के हटने के बाद हुआ है। इसकी शुरुआत बीते नवम्बर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्सी घाट पर फावड़ा चलाकर किया था।
इस समर कैम्प की शुरुआत हर शाम इस गाने के बोल से होती है, 'गंगा रेती पर बंगला छवाय द मोरे राजा छवाय द मोरे राजा' ये दादरा गीत बनारस घराने का है, जिसे गिरजा देवी बड़े मन से गाती हैं। लिहाजा उन्ही का ये प्रिय गीत ये बच्चे उन्हीं के नाम पर शुरू हुए गंगा किनारे अस्सी घाट के समर कैम्प में न सिर्फ सीख रहे हैं बल्कि 12 जून को कैम्प के समापन के दिन उनके सामने गाकर भी सुनाएंगे।
अस्सी घाट पर ये अपनी तरह का पहला समर कैम्प है, जिसमें बच्चों को कई विधाओं की सीख दी जा रही है। समर कैम्प की आयोजक अंकिता खत्री कहती हैं, ये एक ग्रीष्मकालीन शिविर गिरजा देवी के नाम पर शुरू किया गया है और यहां करीब 300 महिलाएं व बच्चे भाग ले रहे हैं। ये सभी चित्रकला, नृत्य कला, गायन की ट्रेनिंग ले रहे हैं।
गंगा के द्वार पर अगर बच्चे गंगा के गीत के बोल सीख रहे हैं तो गंगा की लहरों के मौज से रचे-पगे गानों के बोल पर थिरक भी रहे हैं। ये गतिविधि तो अस्सी घाट के एक कोने पर हो रही है। दूसरे कोने पर मार्शल आर्ट के साथ बच्चे पेंसिल और कागज पर अपने बाल मन के स्केच को खींच रहे हैं।
सबसे ज्यादा कांफिडेंस तो बच्चों में एंकरिंग की क्लास से आ रहा है। एंकरिंग सीख रहे आठ साल के अर्श त्रिपाठी बताते है कि हम लोगों को अभी कांफिडेंस स्पीकिंग और डिक्शनरी के बारे में बताया जा रहा, ताकि हम लोग अपना कांफिडेंस डेवलप कर सकें और अगर माइक हम लोगों को मिले तो हम नर्वस ना हों।
अस्सी घाट पर मिट्टी हटने के बाद पहले सुबह की आरती के साथ भोर का राग शुरू हआ और अब इसमें शाम को ये समर कैम्प की गतिविधि जुड़ गई है। ये कैम्प 14 मई से शुरू हुआ है और 12 जून तक चलेगा। 5 जून से खुद गिरिजा देवी यहां आकर रोज़ बच्चों को सिखाएंगी।
अस्सी घाट के बदले रूप के बाद सिर्फ शहर ही नहीं बाहर के भी तमाम लोग यहां आने लगे हैं और शाम का नजारा मुंबई की चौपाटी जैसा हो गया है। इस कैम्प में सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी पूरी सिद्दत के साथ शामिल हो रहे हैं। इसे देखकर आप कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक हल्की सी जुम्बिश के बाद बनारस के इस अस्सी घाट पर न सिर्फ सुबह बल्कि शाम को भी जीवन का ऐसा संगीत बहने लगा है कि बस इंतज़ार इस बात का है कि ऐसी कोशिश बनारस के हर घाट पर हो, जहां ऐसा ही सुन्दर और मोहक संगीत सुनाई पड़े।
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