सिविल सेवा के ‘इस्पाती’ ढांचे में जंग लगा, सुधार की जरूरतः पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव

सुब्बाराव ने कहा कि यह नकारात्मक दृष्टिकोण राह से भटके अधिकारियों के एक समूह द्वारा बनाया गया है लेकिन चिंता की बात यह है कि वह समूह अब छोटा नहीं रह गया है.

नई दिल्ली:

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने सिविल सेवा में सुधार और पुनर्निर्माण की वकालत करते हुए कहा है कि अंग्रेजों का बनाया हुआ ‘इस्पाती ढांचा' अब जंग खा चुका है.केंद्रीय वित्त सचिव सहित विभिन्न अहम पदों पर रहे सुब्बाराव ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में महिलाओं की कम संख्या को लेकर अपनी नई किताब ‘जस्ट ए मर्सिनरी? नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर' में भी यह बात लिखी है. उन्होंने इस संबंध में पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘नौकरशाही के इस्पाती ढांचे में निश्चित रूप से जंग लग गया है.''

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) हर साल आईएएस, भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) एवं अन्य सेवाओं के अधिकारियों का चयन करने के लिए सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करता है.

सुब्बाराव ने कहा, ‘‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारे आकार और विविधता वाले देश को अब भी आईएएस जैसी सामान्यवादी सेवा की जरूरत है. लेकिन इस सेवा में सुधार की जरूरत है, और कई मायनों में इसे नया रूप देने की भी आवश्यकता है.'' उन्होंने कहा, ‘‘इसका समाधान जंग लगे हुए ढांचे को फेंकना नहीं है, बल्कि उसकी मूल चमक को वापस ले आना है.'' उन्होंने कहा, ‘‘समय के साथ आईएएस ने अपनी प्रकृति और अपनी राह खो दी है. अयोग्यता, उदासीनता और भ्रष्टाचार आ गया है.''

सुब्बाराव ने कहा कि यह नकारात्मक दृष्टिकोण राह से भटके अधिकारियों के एक समूह द्वारा बनाया गया है लेकिन चिंता की बात यह है कि वह समूह अब छोटा नहीं रह गया है.

इसके साथ ही पूर्व आरबीआई गवर्नर ने राजनीतिक तटस्थता को सिविल सेवा आचार संहिता का मूल सिद्धांत बताते हुए कहा कि उस संहिता का व्यापक उल्लंघन वास्तव में सिविल सेवाओं के नैतिक पतन का एक प्रमुख कारण है.

उन्होंने सेवानिवृत्त सिविल सेवकों, न्यायाधीशों और सशस्त्र बलों के पूर्व अधिकारियों के चुनाव में खड़े होने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि राजनीति में शामिल होना देश के प्रत्येक नागरिक का लोकतांत्रिक अधिकार है और उन्हें उस विशेषाधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

हालांकि, इसी के साथ उन्होंने कहा, ‘‘सेवानिवृत्ति के बाद के राजनीतिक करियर को ध्यान में रखते हुए यह भी जोखिम है कि अधिकारी राजनीतिक लाभ के लिए अपनी ईमानदारी से समझौता करेंगे.''

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इस स्थिति से बचने के लिए सुब्बाराव ने कहा कि एक सार्वजनिक अधिकारी को सेवानिवृत्ति के तीन साल बाद ही चुनाव लड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए.



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)