रांची:
जिस किसी भी मां ने अमेरिका की कैरोलिना यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर इंफोर्मेशन सिस्टम के प्रोफेसर देबाशीष बनर्जी की कहानी सुनी होगी, उसका दिल भर आया होगा। आज देबाशीष दुनियाभर के बेटों के लिए मिसाल बन गए हैं।
यह कहानी करीब 30 साल पहले शुरू हुई थी। उस समय देबाशीष की मां बीमार थीं, उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हो गया था। तब उन्होंने अपनी मां को उम्मीद बंधाने के लिए उनसे वादा किया, 'मैं प्लेन उड़ाना सीख रहा हूं, देखना एक दिन मैं अपना प्लेन लेकर रांची में आऊंगा और तुम देखोगी।'
देबाशीष को उम्मीद थी कि उन्होंने मां को जो सपना दिखाया है, जो उम्मीद बंधाई है, उससे उनकी सेहत में सुधार होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कुछ ही समय बाद उनकी मां का निधन हो गया।
इसके बाद तीन दशक तक देबाशीष ने अमेरिका में खूब मेहनत की, लेकिन वे अपनी स्वर्गवासी मां से किया वादा नहीं भूले। उन्होंने पैसे इकट्ठा कर एक सेकेंड हैंड विमान खरीदा और अपनी मां से किया वादा निभाने के लिए खुद ही उसे उड़ाकर रांची पहुंच गए।
डॉ. देबाशीष ने इसी साल 31 मई को अमेरिका से सफर शुरू किया और कनाडा, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली ग्रीस, जॉर्डन, बहरीन, ओमान होते हुए अहमदाबाद आए। फिर पटना रुकते हुए उन्होंने मां को किया वादा पूरा करने के लिए रांची की उड़ान भरी और रांची एयरपोर्ट पर लैंड किया।
यहां पहुंचकर उन्होंने एनडीटीवी से बात की और मां को याद करते हुए कहा, 'मैंने सोचा कि मैंने उनसे वादा किया था। मुझे अपना वादा निभाना चाहिए। मैंने प्रोजेक्ट खत्म किया और मैं आया। फिर सोचा कि जब आधी दुनिया आ ही गए हैं तो पीछे क्या मुड़ना। आगे ही चलते रहेंगे, पूरी दुनिया घूम लेंगे।'
मां से 30 साल पहले किए वादे को निभाने के लिए जब देबाशीष रांची पहुंचे तो मां के प्रति उनके प्यार और समर्पण का जमाना गवाह बना। अपनी कहानी बताते हुए जिस तरह से देबाशीष भावुक होते हैं, उसी तरह से उनकी कहानी को सुनकर लोग भी भावुक हो जाते हैं।
लीजिए खुद देबाशीष से सुनें उनकी कहानी...
इनपुट : हरिबंस
यह कहानी करीब 30 साल पहले शुरू हुई थी। उस समय देबाशीष की मां बीमार थीं, उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हो गया था। तब उन्होंने अपनी मां को उम्मीद बंधाने के लिए उनसे वादा किया, 'मैं प्लेन उड़ाना सीख रहा हूं, देखना एक दिन मैं अपना प्लेन लेकर रांची में आऊंगा और तुम देखोगी।'
देबाशीष को उम्मीद थी कि उन्होंने मां को जो सपना दिखाया है, जो उम्मीद बंधाई है, उससे उनकी सेहत में सुधार होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कुछ ही समय बाद उनकी मां का निधन हो गया।
इसके बाद तीन दशक तक देबाशीष ने अमेरिका में खूब मेहनत की, लेकिन वे अपनी स्वर्गवासी मां से किया वादा नहीं भूले। उन्होंने पैसे इकट्ठा कर एक सेकेंड हैंड विमान खरीदा और अपनी मां से किया वादा निभाने के लिए खुद ही उसे उड़ाकर रांची पहुंच गए।
डॉ. देबाशीष ने इसी साल 31 मई को अमेरिका से सफर शुरू किया और कनाडा, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली ग्रीस, जॉर्डन, बहरीन, ओमान होते हुए अहमदाबाद आए। फिर पटना रुकते हुए उन्होंने मां को किया वादा पूरा करने के लिए रांची की उड़ान भरी और रांची एयरपोर्ट पर लैंड किया।
यहां पहुंचकर उन्होंने एनडीटीवी से बात की और मां को याद करते हुए कहा, 'मैंने सोचा कि मैंने उनसे वादा किया था। मुझे अपना वादा निभाना चाहिए। मैंने प्रोजेक्ट खत्म किया और मैं आया। फिर सोचा कि जब आधी दुनिया आ ही गए हैं तो पीछे क्या मुड़ना। आगे ही चलते रहेंगे, पूरी दुनिया घूम लेंगे।'
मां से 30 साल पहले किए वादे को निभाने के लिए जब देबाशीष रांची पहुंचे तो मां के प्रति उनके प्यार और समर्पण का जमाना गवाह बना। अपनी कहानी बताते हुए जिस तरह से देबाशीष भावुक होते हैं, उसी तरह से उनकी कहानी को सुनकर लोग भी भावुक हो जाते हैं।
लीजिए खुद देबाशीष से सुनें उनकी कहानी...
इनपुट : हरिबंस
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