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कम बर्फबारी, बड़ा जलसंकट... हिमालयी ग्लेशियरों का घटना करोड़ों लोगों के लिए क्यों है चिंता का विषय, जानिए

डॉ. पंकज चौहान ने इस स्टडी में पाया कि तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी वजह से बर्फबारी टिक नहीं पा रही है. इसका मतलब यह है कि नवंबर-दिसंबर-जनवरी में पड़ने वाली बर्फ गिर तो रही है, लेकिन लंबे समय तक ग्लेशियर पर टिक नहीं रही और तेजी से पिघल जा रही है.

कम बर्फबारी, बड़ा जलसंकट... हिमालयी ग्लेशियरों का घटना करोड़ों लोगों के लिए क्यों है चिंता का विषय, जानिए
  • उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों की सेहत खराब हो रही है, मुख्य कारण कम और टिकाऊ बर्फबारी है.
  • हिमालय के लगभग दस हजार ग्लेशियर पीने के पानी का बड़ा स्रोत हैं, जो तेजी से पिघल रहे हैं.
  • वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान बढ़ने से बर्फ गिरने के बाद ग्लेशियर पर टिक नहीं पाती है.
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उत्तराखंड में मौजूद हिमालय के ग्लेशियरों की सेहत खराब हो रही है. इसकी मुख्य वजह कम बर्फबारी है. दूसरी वजह यह है कि जो बर्फबारी हो रही है, वह भी ग्लेशियर पर टिक नहीं पा रही है. अब वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि अगर यही हाल लगातार बना रहा, तो उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर—जिनमें गंगोत्री, मिलम, खतलिंग, पिंडारी, काफनी जैसे कई ग्लेशियर शामिल हैं, खतरे में आ जाएंगे.

ग्लेशियर पीने के पानी का सबसे बड़ा स्रोत

हिमालय को थर्ड पोल कहा जाता है. हिमालय में लगभग 10 हजार छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं और यह पीने के पानी का सबसे बड़ा स्रोत है. हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियरों को हर साल पड़ने वाली बर्फ उनकी सेहत सुधारती है. लेकिन पिछले कुछ समय से ग्लेशियरों की सेहत खराब हो रही है. यानी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, उनका आकार घट रहा है और ग्लेशियर की न सिर्फ चौड़ाई बल्कि लंबाई भी कम हो रही है.

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हिमालय में, खासकर उत्तराखंड के क्षेत्र में गंगोत्री, मिलम, खतलिंग, पिंडारी, चोराबारी, डोकरानी जैसे बड़े ग्लेशियर हैं और ये सब तेजी से पिघल रहे हैं. हिमालय पर स्टडी और रिसर्च करने वाले वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. पंकज चौहान ने उत्तराखंड के पिंडारी एवं काफनी ग्लेशियर पर स्टडी की है. डॉ. पंकज चौहान ने इस स्टडी में पाया कि तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी वजह से बर्फबारी टिक नहीं पा रही है. इसका मतलब यह है कि नवंबर-दिसंबर-जनवरी में पड़ने वाली बर्फ गिर तो रही है, लेकिन लंबे समय तक ग्लेशियर पर टिक नहीं रही और तेजी से पिघल जा रही है.

सर्दियों का सीजन घट रहा...  वैज्ञानिक

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. पंकज चौहान ने NDTV से खास बातचीत में जानकारी दी कि गर्मियों का सीजन बढ़ रहा है और सर्दियों का सीजन घट रहा है. डॉ. पंकज चौहान ने बताया कि दिसंबर और जनवरी में पड़ने वाली बर्फ अब मार्च और अप्रैल में पड़ रही है, जबकि मार्च-अप्रैल में तापमान—धरती का और हवा का—बढ़ा हुआ होता है. ऐसे में बर्फ ग्लेशियर पर टिक नहीं पा रही और बहुत तेजी से पिघल रही है. स्नोफॉल पड़ने का शिफ्टिंग रेट 10 से 15 फीसदी हो गया है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का ऐसा असर हो रहा है, जिसकी वजह से 2500 मीटर तक होने वाली बारिश अब 3000 मीटर से ऊपर तक पड़ रही है. 

डॉ. चौहान कहते हैं कि बारिश का 3000 मीटर तक होना मतलब तापमान बढ़ रहा है और तापमान बढ़ने से ट्री लाइन ऊंचाई वाले उन क्षेत्रों में पहुंच रही है जहां बुग्याल (घास के बड़े-बड़े मैदान) हैं. उनकी जगह चौड़ी पत्ते वाले पेड़ उग रहे हैं. डॉ. पंकज चौहान ने बताया कि प्रकृति ने तय किया है कि ग्लेशियर कहां होने चाहिए, घास के बड़े मैदान कहां होने चाहिए और पेड़ कहां होने चाहिए, लेकिन तापमान बढ़ने के कारण सारा सिस्टम बिगड़ रहा है.

डॉ. पंकज चौहान ने NDTV को जानकारी दी कि तापमान बढ़ना और जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पिघलेंगे और ग्लेशियरों पर छोटी-बड़ी झीलें बनेंगी, जो आने वाले समय में निचले इलाकों के लिए खतरनाक हो सकती हैं. डॉ. पंकज चौहान ने बताया कि जहां ग्लेशियर मौजूद हैं, वहां जमीन के नीचे का तापमान माइनस से नीचे होना चाहिए, लेकिन जमीन के अंदर का तापमान 1 डिग्री मिल रहा है, जो इस बात का प्रमाण है कि तापमान तेजी से बढ़ रहा है. वैज्ञानिक डॉ. पंकज चौहान ने जानकारी दी कि ग्लेशियरों पर बर्फ पड़ रही है, लेकिन उसे जमने का समय नहीं मिल पा रहा है. इसके अलावा सेंट्रल हिमालय में पिंडारी और वेस्टर्न हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. गंगोत्री ग्लेशियर 25 से 30 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पिघल रहा है.

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