सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में जासूसी कांड के केंद्र में रही महिला को आज सुझाव दिया कि राज्य सरकार की ओर से करायी जा रही जांच के खिलाफ उसे राज्य के हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी होगी। इससे पहले, केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि वह इस मसले पर जांच आयोग गठित नहीं कर रहा है।
जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस महिला की जासूसी के मामले की केंद्र और राज्य सरकार की जांच पर रोक लगाने के लिए पिता-पुत्री की संयुक्त याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सुझाव दिया। आरोप है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर गुजरात पुलिस ने पांच साल पहले इस महिला की जासूसी की थी।
इससे पहले, सॉलिसीटर जनरल मोहन परासरन ने कोर्ट में बयान दर्ज कराया कि, 'जांच आयोग की नियुक्ति का कोई प्रस्ताव नहीं है।' कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के इस दृष्टिकोण के मद्देनजर तो याचिका में अब कुछ भी बचता नहीं है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने न्यायाधीशों के इस दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की कि गुजरात सरकार की ओर से जांच आयोग गठित करने के मामले को राज्य के हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए स्पष्ट किया कि वह इस मामले के गुणदोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है। लेकिन याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने कहा, 'एक महिला के रूप में उसने जो कुछ भी कहा उसे लेकर हम कुछ चिंतित हैं और हम किसी अन्य पहलू पर गौर नहीं करना चाहते।'
कोर्ट चाहता था कि राज्य सरकार भी इस मसले पर दृष्टिकोण स्पष्ट करे और उसने राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता से बयान देने के लिए भी कहा। तुषार ने कहा कि उन्हें निर्देश लेने के लिए कुछ वक्त चाहिए जो शीर्ष अदालत ने उन्हें दे दिया।
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