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This Article is From May 03, 2024

सहनशीलता अच्छे विवाह की नींव, छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज पुलिस की आती है जैसे कि पुलिस सभी बुराइयों का रामबाण इलाज हो. पीठ ने कहा कि मामला पुलिस तक पहुंचते ही पति-पत्नी के बीच सुलह के उचित अवसर नष्ट हो जाते हैं.

सहनशीलता अच्छे विवाह की नींव, छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सहनशीलता, समायोजन और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं और छोटे-मोटे झगड़े और छोटे-मोटे मतभेद साधारण मामले होते हैं जिन्हें इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए कि इससे वह चीज नष्ट हो जाए जिसके बारे में कहा जाता है कि वह स्वर्ग में बनती है.

न्यायालय ने यह बात एक महिला द्वारा पति के खिलाफ दायर किए गए दहेज उत्पीड़न के मामले को रद्द करते हुए कही. इसने कहा कि कई बार विवाहित महिला के माता-पिता एवं करीबी रिश्तेदार बात का बतंगड़ बना देते हैं और स्थिति को संभालने तथा शादी को बचाने के बजाय उनके कदम छोटी-छोटी बातों पर वैवाहिक बंधन को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं.

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज पुलिस की आती है जैसे कि पुलिस सभी बुराइयों का रामबाण इलाज हो. पीठ ने कहा कि मामला पुलिस तक पहुंचते ही पति-पत्नी के बीच सुलह के उचित अवसर नष्ट हो जाते हैं.

न्यायालय ने कहा, 'एक अच्छे विवाह की नींव सहनशीलता, समायोजन और एक-दूसरे का सम्मान करना है. एक-दूसरे की गलतियों को एक निश्चित सहनीय सीमा तक सहन करना हर विवाह में अंतर्निहित होना चाहिए. छोटी-मोटी नोक-झोंक, छोटे-मोटे मतभेद साधारण मामले होते हैं और इन्हें इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए कि इससे वह चीज नष्ट हो जाए जिसके बारे में कहा जाता है कि वह स्वर्ग में बनती है.''

इसने कहा कि वैवाहिक विवादों में सबसे ज्यादा पीड़ित बच्चे होते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘पति-पत्नी अपने दिल में इतना ज़हर लेकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि अगर शादी टूट जाएगी, तो उनके बच्चों पर क्या असर होगा.''

इसने कहा, 'हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि पूरे मामले को ठंडे दिमाग से संभालने के बजाय, आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से एक-दूसरे के लिए नफरत के अलावा कुछ और नहीं मिलेगा. पति और उसके परिवार द्वारा पत्नी के साथ वास्तविक दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले हो सकते हैं. इस तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न का स्तर अलग-अलग हो सकता है.'

न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक विवादों में पुलिस तंत्र का सहारा अंतिम उपाय के रूप में लिया जाना चाहिए. इसने कहा, 'सभी मामलों में, जहां पत्नी उत्पीड़न या दुर्व्यवहार की शिकायत करती है, भादंसं की धारा 498ए को यांत्रिक रूप से लागू नहीं किया जा सकता. कोई भी प्राथमिकी भादंसं की धारा 506 (2) और 323 के बिना पूरी नहीं होती. दूसरे के लिए परेशानी का कारण बन सकने वाला हर वैवाहिक आचरण क्रूरता की श्रेणी में नहीं आ सकता. पति-पत्नी के बीच रोजमर्रा की शादीशुदा जिंदगी में मामूली गुस्सा और मामूली झगड़े भी क्रूरता की श्रेणी में नहीं आ सकते.''

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त करते हुए की जिसमें आपराधिक मामले को रद्द करने के पति के आग्रह को खारिज कर दिया गया था. पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार, व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की तथा उसे मानसिक एवं शारीरिक तौर पर आघात पहुंचाया.

प्राथमिकी में कहा गया कि महिला के परिवार ने उसकी शादी के समय एक बड़ी रकम खर्च की थी और पति तथा उसके परिवार को काफी धन दिया था. हालांकि, शादी के कुछ समय बाद पति और उसके परिवार ने उसे इस झूठे बहाने से परेशान करना शुरू कर दिया कि वह एक पत्नी और बहू के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल है. उन्होंने उस पर अधिक दहेज के लिए भी दबाव डाला.

पीठ ने कहा कि प्राथमिकी और आरोपपत्र को पढ़ने से पता चलता है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट हैं, जिनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं दिया गया है. इसने कहा, 'उपरोक्त कारणों से, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यदि अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और न्याय का मखौल उड़ाने से कम नहीं होगा.'

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