सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय गान, यानी 'जन गण मन' से जुड़े एक अहम आदेश में बुधवार को कहा कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान ज़रूर बजेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय गान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा और सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रीय गान के सम्मान में खड़ा होना होगा.
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सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश एक जनहित याचिका पर आया है जिसे मध्यप्रदेश निवासी श्याम नारायण चौकसे ने दायर की थी. दिलचस्प बात यह है कि चौकसे ने सबसे पहले राष्ट्रगान से जुड़े इस मुद्दे पर करीब 13 साल पहले जबलपुर हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी और उस वक्त 2003 में इस याचिका की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा ने की थी जिन्होंने बुधवार को चौकसे की याचिका के समर्थन में फैसला सुनाया है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस मिश्रा उस वक्त जबलपुर हाइकोर्ट में उस डिविज़न बेंच का हिस्सा थे जिन्होंने मिश्रा की याचिका पर आदेश दिया था कि जब तक करण जौहर अपनी फिल्म 'कभी खुशी कभी ग़म' से राष्ट्रीय गान को हटा नहीं देते, उस फिल्म को सभी थिएटरों से हटा दिया जाए.
यह काफी रोचक बात है कि अपनी फिल्मों से चाहे अनचाहे विवादों में रहने वाले करण जौहर यहां भी इस याचिका की वजह बने हुए थे. 2002 में जौहर की फिल्म 'कभी खुशी कभी ग़म' रिलीज़ हुई जिसमें एक सीन के दौरान राष्ट्रीय गान को बजाया गया. चौकसे ने हिंदी अखबार दैनिक भास्कर से हुई बातचीत में बताया कि किस तरह जब वह इस दृश्य के दौरान बजने वाले राष्ट्रीय गीत के लिए खड़े हुए तो थिएटर में बैठी जनता ने उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया. मैनेजर से शिकायत करने के बाद भी चौकसे की नहीं सुनी गई. इसके बाद राष्ट्रीय गीत के प्रति सम्मान जगाने की उनकी मुहिम की शुरुआत हुई. उन्होंने जबलपुर हाइकोर्ट में याचिका लगाई जिसमें कहा गया कि करण जौहर ने अपनी फिल्म में राष्ट्रीय गान का गलत इस्तेमाल किया है. साथ ही जब हॉल में यह धुन बजी तब कोई भी इसके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ. हाइकोर्ट की बेंच ने चौकसे के पक्ष में आदेश देते हुए कहा कि जौहर को अपनी फिल्म से यह सीन हटाना होगा लेकिन निर्माता-निर्देशक ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर स्टे ले लिया.
इसके बाद भी चौकसे ने हार नहीं मानी. वह कई सालों से इस मुद्दे पर अपनी जानकारी जुटाते रहे. यहां तक की उन्होंने 2014 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में 52 सेकंड की जगह सिर्फ 20 सेंकड तक ही राष्ट्रगान बजने के मामले में भोपाल में याचिका लगाई थी. सितंबर 2016 में उन्होंने फिर इस मामले में याचिका लगाई जिसमें कहा गया कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रीय गान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रीय गान को इस्तेमाल न किया जाए. याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रीय गान को अंत तक गाया जाना चाहिए, और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए.
चौकसे की सालों की उठापटक काम आ गई और सुप्रीम कोर्ट ने पहली ही सुनवाई में अपना आदेश सुना दिया जिसमें राष्ट्रीय गान को फिल्म शुरू होने से पहले बजाए जाने को अनिवार्य कर दिया गया. साथ ही कहा गया कि राष्ट्रीय गान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसके अलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं होगा, तथा राष्ट्रीय गान को वैरायटी सॉन्ग के तौर पर भी नहीं गाया जाएगा.
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सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश एक जनहित याचिका पर आया है जिसे मध्यप्रदेश निवासी श्याम नारायण चौकसे ने दायर की थी. दिलचस्प बात यह है कि चौकसे ने सबसे पहले राष्ट्रगान से जुड़े इस मुद्दे पर करीब 13 साल पहले जबलपुर हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की थी और उस वक्त 2003 में इस याचिका की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा ने की थी जिन्होंने बुधवार को चौकसे की याचिका के समर्थन में फैसला सुनाया है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस मिश्रा उस वक्त जबलपुर हाइकोर्ट में उस डिविज़न बेंच का हिस्सा थे जिन्होंने मिश्रा की याचिका पर आदेश दिया था कि जब तक करण जौहर अपनी फिल्म 'कभी खुशी कभी ग़म' से राष्ट्रीय गान को हटा नहीं देते, उस फिल्म को सभी थिएटरों से हटा दिया जाए.
यह काफी रोचक बात है कि अपनी फिल्मों से चाहे अनचाहे विवादों में रहने वाले करण जौहर यहां भी इस याचिका की वजह बने हुए थे. 2002 में जौहर की फिल्म 'कभी खुशी कभी ग़म' रिलीज़ हुई जिसमें एक सीन के दौरान राष्ट्रीय गान को बजाया गया. चौकसे ने हिंदी अखबार दैनिक भास्कर से हुई बातचीत में बताया कि किस तरह जब वह इस दृश्य के दौरान बजने वाले राष्ट्रीय गीत के लिए खड़े हुए तो थिएटर में बैठी जनता ने उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया. मैनेजर से शिकायत करने के बाद भी चौकसे की नहीं सुनी गई. इसके बाद राष्ट्रीय गीत के प्रति सम्मान जगाने की उनकी मुहिम की शुरुआत हुई. उन्होंने जबलपुर हाइकोर्ट में याचिका लगाई जिसमें कहा गया कि करण जौहर ने अपनी फिल्म में राष्ट्रीय गान का गलत इस्तेमाल किया है. साथ ही जब हॉल में यह धुन बजी तब कोई भी इसके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ. हाइकोर्ट की बेंच ने चौकसे के पक्ष में आदेश देते हुए कहा कि जौहर को अपनी फिल्म से यह सीन हटाना होगा लेकिन निर्माता-निर्देशक ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले पर स्टे ले लिया.
इसके बाद भी चौकसे ने हार नहीं मानी. वह कई सालों से इस मुद्दे पर अपनी जानकारी जुटाते रहे. यहां तक की उन्होंने 2014 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में 52 सेकंड की जगह सिर्फ 20 सेंकड तक ही राष्ट्रगान बजने के मामले में भोपाल में याचिका लगाई थी. सितंबर 2016 में उन्होंने फिर इस मामले में याचिका लगाई जिसमें कहा गया कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रीय गान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रीय गान को इस्तेमाल न किया जाए. याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रीय गान को अंत तक गाया जाना चाहिए, और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए.
चौकसे की सालों की उठापटक काम आ गई और सुप्रीम कोर्ट ने पहली ही सुनवाई में अपना आदेश सुना दिया जिसमें राष्ट्रीय गान को फिल्म शुरू होने से पहले बजाए जाने को अनिवार्य कर दिया गया. साथ ही कहा गया कि राष्ट्रीय गान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसके अलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं होगा, तथा राष्ट्रीय गान को वैरायटी सॉन्ग के तौर पर भी नहीं गाया जाएगा.
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