शिवसेना बनाम शिवसेना केस : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी की, फैसला सुरक्षित

असली शिवसेना किसकी है? उद्धव ठाकरे सही हैं, या एकनाथ शिंदे? सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की नौ दिनों तक सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा

शिवसेना बनाम शिवसेना केस : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी की, फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना बनाम शिवसेना मामले की सुनवाई पूरी हो गई है.

नई दिल्ली :

शिवसेना बनाम शिवसेना केस में सवाल है कि असली शिवसेना किसकी है? उद्धव ठाकरे सही हैं या एकनाथ शिंदे? सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद आज फैसला सुरक्षित रखा. नौ दिनों तक चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया. सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट, एकनाथ शिंदे गुट और राज्यपाल की ओर से दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मुकेश आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सुनवाई की. 

पांच न्यायाधीशों की एक पीठ को इस मामले को संविधान की व्याख्या के अनुसार कानून के अन्य महत्वपूर्ण सवालों के साथ देखना है, जिनमें शामिल हैं- 

A. क्या स्पीकर को हटाने का नोटिस उन्हें नबाम रेबिया में न्यायालय द्वारा आयोजित भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची  के तहत अयोग्यता कार्यवाही जारी रखने से प्रतिबंधित करता है? 

B. क्या अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 32 के तहत याचिका हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्यता कार्यवाही पर निर्णय लेने के लिए आमंत्रित करती हैं, जैसा भी मामला हो? 

C. क्या स्पीकर के फैसले के अभाव में कोई अदालत किसी सदस्य को उसके कार्यों के आधार पर अयोग्य घोषित ठहरा सकती है?

D. सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान सदन में कार्यवाही की स्थिति क्या होगी? 

E. यदि स्पीकर का ये निर्णय कि दसवीं अनुसूची के तहत एक सदस्य को अयोग्य घोषित किया गया है, शिकायत की तारीख से संबंधित है, तो अयोग्यता याचिका के लंबित रहने के दौरान हुई कार्यवाही की स्थिति क्या है? 

F. दसवीं अनुसूची के पैरा 3 को हटाने का क्या प्रभाव है? (जिसने अयोग्यता कार्यवाही के खिलाफ बचाव के रूप में एक पार्टी में “विभाजन” को छोड़ दिया) 

G. विधायक दल के सदन के व्हिप और नेता को निर्धारित करने के लिए स्पीकर की शक्ति का दायरा क्या है?

H. दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के संबंध में परस्पर क्रिया क्या है? 

I. क्या अंतर-पार्टी प्रश्न न्यायिक समीक्षा के लिए उत्तरदायी हैं? इसका दायरा क्या है? 

J. किसी व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की राज्यपाल की शक्ति और क्या वह न्यायिक समीक्षा के योग्य है?

K. एक पार्टी के भीतर एकतरफा विभाजन को रोकने के संबंध में भारत के चुनाव आयोग की शक्तियों का दायरा क्या है? 

वह सरकार कैसे बहाल की जा सकती है जिसने विश्वास मत का सामना नहीं किया?

शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से भी सवाल पूछे. CJI ने कहा, आप उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल करने की मांग कैसे कर सकते हैं? लेकिन आपने इस्तीफा दे दिया था. जस्टिस एमआर शाह ने कहा, अदालत उस सरकार को कैसे बहाल कर सकती है जिसने विश्वास मत का सामना नहीं किया?

CJI ने कहा, यदि आप विश्वास मत खो चुके हैं तो यह एक तार्किक बात होगी. ऐसा नहीं है कि आपको सरकार ने बेदखल कर दिया है, आपने विश्वास मत का सामना ही नहीं किया? सिंघवी ने कहा, क्योंकि राज्यपाल ने गैरकानूनी तरीके से फ्लोर टेस्ट बुलाया था, आज भी गैरकानूनी सरकार चल रही है. यहां कोई चुनाव नहीं हुआ.

सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे की शिंदे गुट द्वारा विलय की दलीलों पर सवाल उठाया. CJI ने कहा, शिवसेना के बागी विधायकों को बीजेपी में विलय की क्या जरूरत थी. विलय होने के बाद उनकी पहचान नहीं रहती. वो तो अभी भी शिवसैनिक की राजनीतिक पहचान के साथ हैं. आपकी दलील समस्या पैदा करने वाली है, क्योंकि विलय के बाद शिवसेना के तौर पर उनकी राजनैतिक पहचान का खो जाना. आप ये कह रहे हैं कि आप यदि असंतुष्ट हैं तो पार्टी छोड़कर चले जाएं. लेकिन वो कह रहे हैं कि वो शिव सैनिक हैं इसलिए शिवसेना छोड़कर नहीं जाएंगे. 

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ठाकरे की ओर से सिंघवी ने कहा कि वैसे तो हर पार्टी में असंतुष्ट हैं, लेकिन उनसे निपटने के और भी समुचित उपाय हैं. लेकिन ये कैसे हो सकता है कि आप असंतुष्ट होकर सरकार को ही अस्थिर कर उसे गिरा दें? इसलिए व्हिप का उल्लंघन करने के बजाय आप सदस्यता छोड़ दें.