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लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला... TMC के 6 समर्थकों की जमानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं “लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमले” हैं. शिकायतकर्ता के घर पर हमला चुनाव परिणामों के दिन केवल बदला लेने के उद्देश्य से किया गया था क्योंकि उसने भगवा पार्टी का समर्थन किया था.

लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला... TMC के 6 समर्थकों की जमानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट
(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी का समर्थन करने पर हिंदू परिवारों और उनकी महिलाओं को हिंसक रूप से निशाना बनाने पर TMC के 6 समर्थकों की जमानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं “लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमले” हैं. शिकायतकर्ता के घर पर हमला चुनाव परिणामों के दिन केवल बदला लेने के उद्देश्य से किया गया था क्योंकि उसने भगवा पार्टी का समर्थन किया था.

शेख जमीर हुसैन, शेख नूरई, शेख अशरफ, शेख करीबुल और जयंत डोन को जमानत देने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेशों को पलटते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर परिस्थिति है जो हमें आश्वस्त करती है कि यहां प्रतिवादियों सहित आरोपी व्यक्ति विपरीत राजनीतिक दल के सदस्यों को आतंकित करने की कोशिश कर रहे थे, जिसका आरोपी प्रतिवादी समर्थन कर रहे थे.

ऊपर बताए गए तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हमें लगता है कि वर्तमान मामला ऐसा है जिसमें आरोपियों के खिलाफ आरोप इतने गंभीर हैं कि वे अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देते हैं. घटना को जिस निंदनीय तरीके से अंजाम दिया गया, वह आरोपियों के प्रतिशोधी रवैये और विरोधी पक्ष के समर्थकों को किसी भी तरह से अपने अधीन करने के उनके घोषित उद्देश्य को दर्शाता है.

यह नृशंस अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमले से कम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दर्ज किया कि शिकायतकर्ता की पत्नी को बुरी तरह से बालों से खींचा गया और उसके कपड़े उतार दिए गए. आरोपी उस पर यौन हमला करने वाले थे, तभी महिला ने हिम्मत जुटाकर अपने शरीर पर मिट्टी का तेल डाला और आत्मदाह की धमकी दी, जिस पर आरोपी भाग गए.

पीठ ने कहा, अगर आरोपी प्रतिवादियों को जमानत पर रहने दिया जाता है, तो निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है. इस वजह से आरोपियों को दी गई जमानत रद्द की जानी चाहिए. पीठ ने ट्रायल कोर्ट को मुकदमे में तेजी लाने और छह महीने के भीतर इसे समाप्त करने के लिए कहा है. 

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि शिकायतकर्ता और अन्य सभी महत्वपूर्ण गवाहों को उचित सुरक्षा प्रदान की जाए ताकि वे बिना किसी डर या आशंका के ट्रायल में स्वतंत्र रूप से पेश हो सकें और गवाही दे सकें. सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर सीबीआई द्वारा इन निर्देशों के किसी भी उल्लंघन की सूचना दी जाती है, तो अदालत उचित कार्रवाई करेगी.

क्या है मामला? 

दरअसल, 2021 के विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद, मुस्लिम बहुल गांव गुमसिमा में, TMC कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी का समर्थन करने के लिए हिंदू परिवार पर हमला किया था. परिवार के मुखिया ने पहले पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उन्हें अपने धार्मिक अनुष्ठान करने की अनुमति नहीं दी जा रही है.

2 मई, 2021 को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद शाम को शेख माहिम की अगुवाई में 40-50 लोगों की हथियारबंद भीड़ ने हिंदू परिवार के घर पर बम फेंके, सामान लूट लिया और शिकायतकर्ता की पत्नी को निर्वस्त्र कर उसके साथ छेड़छाड़ की. महिला ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाला और आत्मदाह करने की धमकी दी, जिससे भीड़ ने उसकी जान बख्श दी. पूरा परिवार अपनी जान और सम्मान बचाने के लिए गांव छोड़कर चला गया. 3 मई, 2021 को परिवार ने शिकायत दर्ज कराने के लिए सदाईपुर थाने का दरवाजा खटखटाया.

थाने के प्रभारी अधिकारी ने शिकायत स्वीकार नहीं की और शिकायतकर्ता को अपनी और अपने परिवार की जान बचाने के लिए गांव छोड़ने की सलाह दी. पुलिस ने ऐसी कई शिकायतें दर्ज नहीं कीं. 19 अगस्त, 2021 को कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीबीआई को बलात्कार, हत्या या ऐसे अपराध करने के प्रयास से जुड़े सभी मामलों की जांच करने का आदेश दिया.  सीबीआई ने दिसंबर 2021 में ये मामले दर्ज किए थे. गुमसिमा आगजनी और बलात्कार और हत्या के प्रयास मामले में शामिल आरोपियों को 3 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था और उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था.

हाईकोर्ट ने 24 जनवरी, 2023 और 13 अप्रैल, 2023 को दो आदेशों के जरिए उन्हें जमानत दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने महसूस किया कि आरोपी व्यक्तियों में ट्रायल की कार्यवाही को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की आसन्न प्रवृत्ति है क्योंकि यह निर्विवाद है कि स्थानीय पुलिस ने हिंदू परिवार को हिंसा से सुरक्षा देने के बजाय उन्हें गांव से भागने की सलाह दी थी.

पीठ ने कहा कि स्थानीय पुलिस का यह दृष्टिकोण शिकायतकर्ता की उस आशंका को बल देता है कि आरोपी प्रतिवादियों का इलाके और यहां तक ​​कि पुलिस पर भी प्रभाव है. वहीं सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों को भी स्थानीय पुलिस से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा था और इस तरह जांच पूरी होने में लगभग डेढ़ साल लग गए.

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