सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
रोहतक में हत्या के मामले में आदेशों के बावजूद आरोपी पूर्व विधायक को गिरफ्तार ना करने पर कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुड़गांव के उस प्राइवेट अस्पताल को भी जमकर लताड़ा, जिसने विधायक के फरार होने के दौरान इलाज किया।
कोर्ट ने कहा कि आप बिना पैसे लिए किसी की डेड बॉडी भी उसके परिजनों को नहीं देते, लेकिन इस मामले में 30 लाख रुपये बकाया होने के बावजूद आरोपी को जाने दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला याचिकाकर्ता सीताराम की अदालत की अवमानना की अर्जी पर सुनाया है। याचिका में कहा गया था कि 26 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व एमएलए बलबीर सिंह बाली की जमानत को खारिज कर दिया था और उसे फौरन सेरेंडर करने के आदेश दिए थे। इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उसे जमानत दी थी। लेकिन आरोपी ने ना तो सरेंडर किया और ना ही उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने रोहतक पुलिस के एसपी को पेश होने के आदेश दिए और साथ ही गुड़गांव के एक अस्पताल से भी जवाब मांगा है। इसी अस्पताल में करीब डेढ़ साल तक आरोपी इलाज करा रहा था। कोर्ट को बताया गया कि ठीक होने के बावजूद जानबूझकर गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी ने ऐसा किया था।
इस बीच दबाव बढ़ने पर आरोपी ने सेरेंडर कर दिया। बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और अस्पताल को जमकर फटकार लगाई और पूरे मामले की सीबीआई जांच के आदेश जारी कर दिए। इस दौरान रोहतक के एसपी और अस्पताल के प्रतिनिधि भी कोर्ट में मौजूद रहे।
कोर्ट ने अस्पताल से मेडिकल बिल के बारे में जानकारी मांगी, तो बताया गया कि आरोपी के इलाज में करीब 36 लाख रुपये का बिल आया है, लेकिन उसने अब तक 6 लाख रुपये ही जमा किए हैं। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि आम केस में प्राइवेट अस्पताल मौत हो जाने पर बिना बिल चुकाए परिजनों को शव तक नहीं देते। लेकिन इस केस में आरोपी को ऐसे ही बिल चुकाए बिना जाने दिया गया। ऐसे में इस मामले की सीबीआई से ही जांच होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि आप बिना पैसे लिए किसी की डेड बॉडी भी उसके परिजनों को नहीं देते, लेकिन इस मामले में 30 लाख रुपये बकाया होने के बावजूद आरोपी को जाने दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला याचिकाकर्ता सीताराम की अदालत की अवमानना की अर्जी पर सुनाया है। याचिका में कहा गया था कि 26 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व एमएलए बलबीर सिंह बाली की जमानत को खारिज कर दिया था और उसे फौरन सेरेंडर करने के आदेश दिए थे। इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उसे जमानत दी थी। लेकिन आरोपी ने ना तो सरेंडर किया और ना ही उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने रोहतक पुलिस के एसपी को पेश होने के आदेश दिए और साथ ही गुड़गांव के एक अस्पताल से भी जवाब मांगा है। इसी अस्पताल में करीब डेढ़ साल तक आरोपी इलाज करा रहा था। कोर्ट को बताया गया कि ठीक होने के बावजूद जानबूझकर गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी ने ऐसा किया था।
इस बीच दबाव बढ़ने पर आरोपी ने सेरेंडर कर दिया। बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और अस्पताल को जमकर फटकार लगाई और पूरे मामले की सीबीआई जांच के आदेश जारी कर दिए। इस दौरान रोहतक के एसपी और अस्पताल के प्रतिनिधि भी कोर्ट में मौजूद रहे।
कोर्ट ने अस्पताल से मेडिकल बिल के बारे में जानकारी मांगी, तो बताया गया कि आरोपी के इलाज में करीब 36 लाख रुपये का बिल आया है, लेकिन उसने अब तक 6 लाख रुपये ही जमा किए हैं। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि आम केस में प्राइवेट अस्पताल मौत हो जाने पर बिना बिल चुकाए परिजनों को शव तक नहीं देते। लेकिन इस केस में आरोपी को ऐसे ही बिल चुकाए बिना जाने दिया गया। ऐसे में इस मामले की सीबीआई से ही जांच होनी चाहिए।
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